Kashi Ki Masjid


Historical Mosque
in
Kaashi Banaaras

यह एक ऐसा इतिहास है जिसे पन्नो से तो हटा दिया गया है लेकिन निष्पक्ष इन्सान और हक परस्त लोगों के दिलो में से चाहे वो किसी भी कौम का इन्सान हो, मिटाया नहीं जा सकता, और क़यामत तक इंशा अल्लाह ! मिटाया नहीं जा सकेगा.
मुसलमान बादशाह के हुकूमत
में
दुसरे मजहब के लिए इंसाफ
हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैह की हुकूमत में काशी बनारस में एक पंडित की लड़की थी जिसका नाम शकुंतला था, उस लड़की को एक मुसलमान जाहिल सेनापति ने अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा और उस के बाप से कहा कि तेरी बेटी को डोली में सजा कर मेरे महल पे दीन में भेज देना |
पंडित ने यह बात अपनी बेटी से कही उनके पास कोई रास्ता नहीं था और पंडित से बेटी ने कहा कि महीने का समय ले लो कोई भी रास्ता निकल जायेगा.
पंडित ने सेनापति से जाकर कहा किमेरे पास इतने पैसे नहीं है कि मै दिन में सजा कर लड़की को भेज सकू मुझे महीने का समय दो.
सेनापति ने कहा ठीक है ! ठीक महीने के बाद भेज देना |
पंडित ने अपनी लड़की से जाकर कहा समय मिल गया है अब ???
लड़की ने मुग़ल सहजादे का लिबास पहना और अपनी सवारी को लेकर दिल्ली की तरफ निकल गयी |
कुछ दीन के बाद दिल्ली पहुँची  वो दिन जुमा का दिन था और जुमा के दिन हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैह नमाज़ के बाद जब मस्जिद से बहर निकलते तो लोग अपनी फरियाद एक चिट्ठी में लिख कर मस्जिद के सीढियों के दोनों तरफ खड़े रहते और हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैह वो चिट्ठिया उनके हाथ से लेते जाते और फिर कुछ दिनों में फैसला (इंसाफ) फरमाते |
वो लड़की भी इस क़तार में जाकर खड़ी हो गयी | उस के चहरे पे नकाब था और लड़के का लिबास (ड्रेस) पहना हुआ था जब उसके हाथ से चिट्ठी लेने की बारी आई तब हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैह ने अपने हाथ पर एक कपडा डाल कर उसके हाथ से चिट्ठी ली.
तब वो बोली महाराज मेरे साथ यह नाइंसाफी क्यों ? सब लोगो से आपने सीधे तरीके से चिट्ठी ली और मेरे पास से हाथों पर कपड़ा रख कर ???
तब हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैह ने फ़रमाया कि इस्लाम में गैर महरम (पराई औरतो) को हाथ लगाना भी हराम है |
और मै जानता हु तु लड़का नहीं लड़की है |
और वोह लड़की बादशाह के साथ कुछ दीन तक ठहरी, और अपनी फरियाद सुनाई | बादशाह हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैहने उस से कहा बेटी तू लौट जा तेरी डोली सेनापति के महल पहुंचे गी अपने वक़्त पर लड़की सोच में पड़ गयी के यह क्या ? वो अपने घर लौटी और उस के बाप पंडित ने कहा क्या हुआ बेटी ?
तो वो बोली एक ही रास्ता था मै हिंदुस्तान के बादशाह के पास गयी थी लेकिन उन्होंने भी ऐसा ही कहा के डोली उठेगी लेकिन मेरे दिल में एक उम्मीद की किरण है वोह ये है कि मै जितने दिन वह रुकी बादशाह ने मुझे १५ बार बेटी कह कर पुकारा था | और एक बाप अपनी बेटी की इज्ज़त नीलाम नहीं होने देगा |
और डोली सजधज के सेनापति के महल पहुँची सेनापति ने डोली देख के अपनी अय्याशी की ख़ुशी फकीरों को पैसे लुटाना शुरू किया | जब पैसे लुटा रहा था तब एक कम्बल-पोश फ़क़ीर जिसने अपने चेहरे पे कम्बल ओढ़ रखी थी उसने कहा मै ऐसा-वैसा फकीर नहीं हूँ | मेरे हाथ में पैसे दे”,
उसने हाथ में पैसे दिए और उन्होंने अपने मुंह से कम्बल हटा दी तो हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैह खुद थे |
उन्होंने कहा के तेरा एक पंडित की लड़की की इज्ज़त पे हाथ डालना मुसलमान हुकूमत पे दाग लगा सकता है  और आप हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैह ने इंसाफ फ़रमाया |
हाथी मंगवा कर सेनापति के दोनों हाथ और पैर बाँध कर अलग अलग दिशा में हाथियों को दौड़ा दिया गया और सेनापति को चीर दिया गया.
फिर आपने पंडित के घर पर एक चबूतरा था उस चबूतरे के पास दो रकात नमाज़ नफिल शुक्राने की अदा की  और दुआ की कि.....
अल्लाह मै तेरा शुक्रगुजार हूँ कि तूने मुझे एक हिन्दू लड़की की इज्ज़त बचाने के लिए इंसाफ करने के लिए चुना |
फिर हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैहने कहा बेटी ग्लास पानी लाना !
लड़की पानी लेकर आई तब आपने फ़रमाया के जिस दिन दिल्ली में मैंने तेरी फरियाद सुनी थी उस दीन से मैंने क़सम खायी थी कि जब तक तेरे साथ इंसाफ नहीं होगा पानी नहीं पिऊंगा |
तब शकुंतला के बाप पंडित और काशी बनारस के दुसरे हिन्दू भाइयो ने उस चबूतरे के पास एक मस्जिद तामीर की जिसका नाम धनेडा की मस्जिदरखा गया और पंडितो ने ऐलान किया के ये बादशाह हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैह के इंसाफ की ख़ुशी में हमारी तरफ से और सेनापति को जो सजा दी गई वो इंसाफ एक सोने की तख़्त (Gold Slate) पर लिखा गया था वो आज भी उस मस्जिद में मौजुद है लेकिन शकुंतला के इंसाफ में दिल्ली से बनारस तक का वो तारीखी सफ़र जो हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह हि अलैह ने किया था वो आज इतिहास के पन्नो में छुपा दिया गया | ना जाने क्यों ????? खुदाया खैर करे नाइंसाफी के फ़ितनो से और गंगा-जमनी तहज़ीब की धज्जियाँ उड़ाने वालों से !!!!

इस्लाम इंसाफ का आईना

जो लोग मुसलमानों को जालिम की नज़र से देखते है वो इस बात पर जरुर गौर करे कि  इस्लाम तलवार की जोर पर फैला नहीं है और अगर ऐसा होता तो आज हिंदुस्तान में एक भी नॉन मुस्लिम नहीं होता क्यूंकि इस्लामी मुगलों की हुकूमत पुरे हिंदुस्तान में कई कई बरसो तक कायम रही थी और उनके लिए बिलकुल भी नामुमकिन नहीं था तमाम नॉन मुस्लिम के साथ वो हश्र करना जो हिटलर ने यहूदियों के साथ किया.

याद रखे कि हमारे देश हिंदुस्तान में कभी भी धर्म युद्ध था ही नहीं जो भी हुआ है वो चंद सियासतदारो की साजिश से थी जिसके द्वारा वो अपना मकसद हासिल करना चाहते थे और हमारी तुम्हारी आपसी दुश्मनी का बेशुमार फायदा उन्होंने उठा भी लिया |

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिंदी  हैं  हम  वतन के  हिंदुस्तान  हमारा

यह भी याद रहे के दंगो में ना मुसलमान मरता है और ना ही हिन्दू मरता है दंगो में सिर्फ इंसानियत मर जाती है | घरों की इज्ज़त--आबरू लुट जाती है |
हिन्दू मुसलमान के नाम पर दंगे करवाने वाले कभी इंसानों में थे और ही कभी उनकी गिनती इंसानों में की जायेगी उनके हैवानियत का बदला उन्हें दुनिया में भी मिलेगा और आखिरत में भी उनके लिए दर्दनाक अजाब है | सिवाय उन लोगों के जिन्हें अपनी गलतीयों पर शर्मिंदगी महसूस हुई और तौबा कर सच्चे परवरदिगार की फरमाबरदारी में लग गए |
क्यूंकि इस्लाम हर हाल में अमन चाहता है इसलिए इस्लाम आज दुनिया का सबसे बड़ा मजहब है जो तेजी से फ़ैल रहा है सिर्फ इसलिए क्यूंकि लोग इस धर्म की सच्चाई को जानने की चाहत रखते है और यकीन जानो अल्लाह उसे जरुर हिदायत का मौका अता फरमाता है जो नेकी की राह (सिराते मुस्तकीम) पर चलने की नियत (दुआ) भी करता हो |
इसलिए मेरे भाइयों और बहनों तुम लोग दिल ही दिल में उस सच्चे परवरदिगार से दुआ करो कि वो तुम्हे सही राह दिखाए शिर्क जैसे हराम कामो से तुम्हारी सलामती अता फरमाए और तुम्हे हक-परस्त बनाये |
अल्लाह पाक हमें हर हाल में इंसाफ के साथ नेकी की राह पर चलने की तौफिक अता फरमा | सारे संसार में शांति और भाईचारा अता फ़रमा | इंसाफ पर जिंदगी और इंसाफ पर ईमान के साथ शहादत अता फरमा |
नबी--पाक की नायाब सुन्नतो पर अमल की तौफिक अता फरमा |
अल्लाह तआला हमे पढ़ने-सुनने से ज्यादा अमल की तौफिक दे |

इमान  पे  दे  मौत  मदीने की गली में

मदफन मेरा महबूब के क़दमों में बना दे