Ek Aale Raool Ka Wada



किसी ज़माने में बग़दाद में जुनैद नामी एक पहलवान रहा करता था। पूरे बग़दाद में इस पहलवान के मुक़ाबले का कोई ना था। बड़े से बड़ा पहलवान भी इस के सामने ज़ेर था। क्या मजाल कि कोई इस के सामने नज़र मिला सके। यही वजह थी कि शाही दरबार में उस को बड़ी इज़्ज़त की निगाह से देखा जाता था और बादशाह की नज़र में इस का ख़ास मुक़ाम था।
एक दिन जुनैद पहलवान बादशाह के दरबार में अराकीने सल्तनत के हमराह बैठा हुआ था कि शाही महल के सदर दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी।
ख़ादिम ने आकर बादशाह को बताया कि एक कमज़ोर-व-नातवां शख़्स दरवाज़े पर खड़ा है, जिस का बोसीदा लिबास है। कमज़ोरी का यह आलम है कि ज़मीन पर खड़ा होना मुश्किल हो रहा है।
उस ने ये पैग़ाम भेजा है कि जुनैद को मेरा पैग़ाम पहुंचा दो कि वो कुश्ती में मेरा चैलेंज क़बूल करे। बादशाह ने हुक्म जारी किया कि उसे दरबार में पेश करो। अजनबी डगमगाते पैरों से दरबार में हाज़िर हुआ।
वज़ीर ने अजनबी से पूछा, तुम क्या चाहते हो?
अजनबी ने जवाब दिया, मैं जुनैद पहलवान से कुश्ती लड़ना चाहता हूँ।
वज़ीर ने कहा, छोटा मुँह बड़ी बात ना करो।
क्या तुम्हें मालूम नहीं कि जुनैद का नाम सुन कर बड़े बड़े पहलवानों को पसीना आ जाता है। पूरे शहर में इस के मुक़ाबले का कोई नहीं और तुम जैसे कमज़ोर शख़्स का जुनैद से कुश्ती लड़ना तुम्हारी हलाकत का सबब भी हो सकता है।
अजनबी ने कहा कि जुनैद पहलवान की शौहरत ही मुझे खींच कर लाई है और मैं आप पर यह साबित करके दिखाऊंगा कि जुनैद को शिकस्त देना मुम्किन है। मैं अपना अंजाम जानता हूँ। आप इस बहस में ना पड़ें, बल्कि मेरे चैलेंज को क़बूल किया जाये। यह तो आने वाला वक़्त बताएगा कि शिकस्त किस का मुक़द्दर होती है।

जुनैद पहलवान बड़ी हैरत से आने वाले अजनबी की बातें सुन रहा था।

बादशाह ने कहा, अगर समझाने के बावजूद यह बज़िद है, तो अपने अंजाम का यह ख़ुद ज़िम्मेदार है। लिहाज़ा, इस का चैलेंज क़बूल कर लिया जाये।
बादशाह का हुक्म हुआ और कुछ ही देर के बाद तारीख़ और जगह का ऐलान कर दिया गया और पूरे बग़दाद में इस चैलेंज का तहलका मच गया।
हर शख़्स की ये ख़्वाहिश थी कि इस मुक़ाबले को देखे। तारीख़ जूं-जूं क़रीब आती गई, लोगों का इश्तियाक़ बढ़ता गया। उन का इश्तियाक़ इस वजह से था कि आज तक उन्होंने तिन्के और पहाड़ का मुक़ाबला नहीं देखा था। दूर दराज़ मुल्कों से भी सय्याह, यह मुक़ाबले देखने के लिए आने लगे।
जुनैद के लिए यह मुक़ाबला बहुत पुरअसरार था और उस पर एक अंजानी सी हैबत तारी होने लगी।
इंसानों का ठाठें मारता समुंद्र शहरे बग़दाद में उमंड़ आया था। जुनैद पहलवान की मुलकगीर शोहरत किसी तआरुफ़ की मुहताज ना थी।
अपने वक़्त का माना हुआ पहलवान, आज एक कमज़ोर और नातवां इंसान से मुक़ाबले के लिए मैदान में उतर रहा था। अखाड़े के अतराफ़ लाखों इंसानों का हुजूम इस मुक़ाबले को देखने आया हुआ था।
बादशाहे वक़्त अपने सल्तनत के अराकीन के हमराह अपनी कुर्सीयों पर बैठ चुके थे। जुनैद पहलवान भी बादशाह के हमराह आ गया था। सब लोगों की निगाहें इस पुरअसरार शख़्स पर लगी हुई थीं। जिस ने जुनैद जैसे नामवर पहलवान को चैलेंज दे कर पूरी सल्तनत में तहलका मचा दिया था।
मजमा को यक़ीन नहीं आ रहा था कि अजनबी मुक़ाबले के लिए आएगा। फिर भी लोग शिद्दत से उस का इंतिज़ार करने लगे। जुनैद पहलवान मैदान में उतर चुका था।
उस के हामी लम्हा ब लम्हा नारे लगा कर हौसला बुलंद कर रहे थे कि अचानक वह अजनबी लोगों की सफ़ों को चीरता हुआ, अखाड़े में पहुंच गया।
हर शख़्स उस कमज़ोर और नातवां शख़्स को देख कर महवे हैरत में पड़ गया कि जो शख़्स जुनैद की एक फूंक से उड़ जाये, उस से मुक़ाबला करना दानिशमंदी नहीं। लेकिन इस के बावजूद सारा मजमा धड़कते दिल के साथ इस कुश्ती को देखने लगा।

कुश्ती का आग़ाज़ हुआ।
दोनों आमने सामने हुए। हाथों में हाथ डाले गए। पंजा आज़माई शुरू हुई। इस से पहले कि जुनैद कोई दाव लगा कर अजनबी को ज़ेर करते, अजनबी ने आहिस्ता से जुनैद से कहा..
" जुनैद! ज़रा अपने कान मेरे क़रीब लाओ। मैं आप से कुछ कहना चाहता हूँ"।
अजनबी की बातें सन कर जुनैद क़रीब हुआ और कहा क्या कहना चाहते हो?
अजनबी बोला..
" जुनैद! मैं कोई पहलवान नहीं हूँ। ज़माने का सताया हुआ हूँ। मैं आले रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हूँ। सय्यद घराने से मेरा ताल्लुक़ है। मेरा एक छोटा सा कुम्बा कई हफ़्तों से फ़ाक़ों में मुबतला जंगल में पड़ा हुआ है। छोटे छोटे बच्चे शिद्दते भूक से बेजान हो चुके हैं। ख़ानदानी ग़ैरत किसी से दस्ते सवाल नहीं करने देती। सय्यद ज़ादियों के जिस्म पर कपड़े फटे हुए हैं। बड़ी मुश्किल से यहां तक पहुंचा हूँ। मैंने इस उम्मीद पर तुम्हें कुश्ती का चैलेंज दिया है कि तुम्हें हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घराने से अक़ीदत है। आज ख़ानदाने नबुव्वत की लाज रख लीजिए। मैं वाअदा करता हूँ कि आज अगर तुम ने मेरी लाज रखी, तो कल मैदाने मह्शर में अपने नाना जान से अर्ज़ करके फ़तह-व-कामरानी का ताज तुम्हारे सर पर रखवाऊंगा। तुम्हारी मुलक गीर शौहरत और एज़ाज़ की एक क़ुर्बानी ख़ानदाने नबुव्वत के सूखे हुए चेहरों की शादाबी के लिए काफ़ी होगी। तुम्हारी ये क़ुर्बानी कभी भी ज़ाएअ नहीं होने दी जाएगी"।।
अजनबी शख़्स के ये चंद जुम्ले जुनैद पहलवान के जिगर में उतर गए। उस का दिल घायल और आँखें अशकबार हो गईं। सय्यदज़ादे की इस पेशकश को फ़ौरन क़बूल कर लिया और अपनी आलमगीर शौहरत, इज़्ज़त-व-अज़्मत आले रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़ुर्बान करने में एक लम्हें की ताख़ीर ना की।
फ़ौरन फ़ैसला कर लिया कि इस से बढ़ कर मेरी इज़्ज़त-व-नामूस का और कौन सा मौक़ा हो सकता है कि दुनिया की इस महदूद इज़्ज़त को ख़ानदाने नबुव्वत की उड़ती हुई ख़ाक पर क़ुर्बान कर दूं। अगर सय्यद घराने की मुरझाई हुई कलीयों की शादाबी के लिए मेरे जिस्म का ख़ून काम आ सकता है, तो जिस्म का एक एक क़तरा तुम्हारी ख़ुशहाली के लिए देने के लिए तैय्यार हूँ।
जुनैद फ़ैसला दे चुका। उस के जिस्म की तवानाई अब सल्ब हो चुकी थी। अजनबी शख़्स से पंजा आज़माई का ज़ाहिरी मुज़ाहिरा शुरू कर दिया। कुश्ती लड़ने का अंदाज़ जारी था। पैंतरे बदले जा रहे थे कि.....
अचानक जुनैद ने एक दाव लगाया। पूरा मजमा जुनैद के हक़ में नारे लगाता रहा। जोश-व-ख़रोश बढ़ता गया। जुनैद दाव के जौहर दिखाता, तो मजमा नारों से गूंज उठा। दोनों बाहम गुत्थम गुत्था हो गए।
यकायक लोगों की पलकें झपकीं, धड़कते दिल के साथ आँखें खुलीं, तो एक नाक़ाबिले यक़ीं मंज़र आँखों के सामने आ गया। जुनैद चारों शाने चित्त पड़ा था और ख़ानदाने नबुव्वत का शहज़ादा सीने पर बैठे फ़तह का पर्चम बुलंद कर रहा था। पूरे मजमा पर सकता तारी हो चुका था। हैरत का तिलसम टूटा और पूरे मजमे ने सय्यदज़ादे को गोद में उठा लिया।
मैदान का फ़ातेह लोगों के सरों पर से गुज़र रहा था। हर तरफ़ इनाम-व-इक्राम की बारिशें होनें लगी। ख़ानदाने नबुव्वत का यह शहज़ादा बेशबहा क़ीमती इनआमात लेकर अपनी पनाहगाह की तरफ़ चल दिया।
इस शिकस्त से जुनैद का वक़ार लोगों के दिलों से ख़त्म हो चुका था। हर शख़्स उन्हीं हिक़ारत से देखता गुज़र रहा था।
ज़िंदगी भर लोगों के दिलों पर सिक्का जमाने वाला आज उन्ही लोगों के तानों को सुन रहा था। रात हो चुकी थी। लोग अपने अपने घरों को जा चुके थे। इशा की नमाज़ से फ़ारिग़ होकर जुनैद अपने बिस्तर पर लेटा।
उस के कानों में सय्यदज़ादे के वो अल्फ़ाज़ बार बार गूंजते रहे।
"आज में वाअदा करता हूँ, अगर तुमने मेरी लाज रखी, तो कल मैदाने मह्शर में अपने नाना जान से अर्ज़ करके फ़तह-व-कामरानी का ताज तुम्हारे सर पर रखवाऊंगा"..
जुनैद सोचता, क्या वाक़ई ऐसा होगा, क्या मुझे यह शर्फ़ हासिल होगा कि हुज़ूर सरवरे कौनैन हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथों से यह ताज मैं पहनूं ?
नहीं नहीं, मैं इस क़ाबिल नहीं, लेकिन ख़ानदाने नबुव्वत के शहज़ादे ने मुझ से वाअदा किया है। आले रसूल का वाअदा ग़लत नहीं हो सकता।
यह सोचते सोचते जुनैद नींद की आग़ोश में पहुंच चुका था। नींद में पहुंचते ही दुनिया के हिजाबात निगाहों के सामने से उठ चुके थे।
एक हसीन ख़्वाब निगाहों के सामने था और गुन्बदे ख़ज़रा का सबज़ गुन्बद निगाहों के सामने जलवागर हुआ, जिस से हर सिम्त रोशनी बिखरने लगी।
एक नूरानी हस्ती जलवा फ़रमा हुई, जिन के हुस्न-व-जमाल से जुनैद की आँखें ख़ीरा हो गईं, दिल कैफ़े सुरूर में डूब गया, दर-व-दीवार से आवाज़ें आने लगीं.....
अस्सलातो वस्सलामो अलेका या रसूलल्लाह।
जुनैद समझ गए, यह तो मेरे आक़ा हैं, जिन का मैं क़लमा पढ़ता हूँ। फ़ौरन क़दमों से लिपट गए। हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया...
"ऐ जुनैद, उठो, क़यामत से पहले अपनी क़िस्मत की सरफ़राज़ी का नज़ारा करो। नबीज़ादों के नामूस के लिए शिकस्त की ज़िल्लतों का इनआम क़ियामत तक क़र्ज़ रखा नहीं जाएगा। सर उठाओ, तुम्हारे लिए फ़तह-व-करामत की दस्तार लेकर आया हूँ। आज से तुम्हें इर्फ़ान-व-तक़र्रुब के सब से ऊंचे मुक़ाम पर फ़ाइज़ किया जाता है। तुम्हें औलिया-ए-किराम की सरवरी का एज़ाज़ मुबारक हो"।
इन कलिमात के बाद हुज़ूर सरवरे कौनैन हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जुनैद पहलवान को सीने से लगाया और इस मौक़ा पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हालते ख़्वाब में जुनैद को क्या कुछ अता किया, इस का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है।

इतना अंदाज़ा ज़रूर लगाया जा सकता है कि जब जुनैद नींद से बेदार हुए, तो सारी कायनात चमकते हुए आईने की तरह उन की निगाहों में आ गई थी।
हर एक के दिल जुनैद के क़दमों पर निसार हो चुके थे। बादशाहे वक़्त ने अपना क़ीमती ताज सर से उतार कर उन के क़दमों में रख दिया था।
बग़दाद का यह पहलवान आज सय्यिदुतताइफ़ा सय्यिदुना हज़रते जुनैद बग़्दादी के नाम से सारे आलम में मशहूर हो चुका था। सारी कायनात के दिल उन के लिए झुक गए थे।


अस्हाबे फील यानि हांथी वालो का किस्सा

जब खाना काबा को गिराने के लिए ईसाइयों ने कसम खाई
#अस्हाबे_फ़ील (हाथी वालों का) क़िस्सा

    हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैदाईश से 50 या 55 दिन पहले यह वाक़िआ हुआ कि नजाशी हब्शा (इथोपिया के बादशाह) की तरफ़ से यमन देश का गवर्नर (हाकिम) अब्रहा अश्रम था, जो ईसाई मज़हब का मानने वाला था...। उसने देखा कि अरब देश के सभी आदमी मक्का आकर ख़ाना काबा का तवाफ़ (एक इबादत, जो काबा शरीफ़ के चक्कर लगाकर अदा होती है) करते हैं, तो उसने चाहा कि ईसाई मज़हब के नाम पर एक बहुत बड़ी व सुन्दर इमारत (चर्च) बना दूँ ताकि अरब के लोग ख़ाना काबा को छोड़कर उस ख़ूबसूरत बनावटी काबे का आकर तवाफ़ करने लगें...।
   चुनाँचे यमन देश की राजधानी 'सनआ' में उसने एक बहुत आलीशान चर्च (गिरजा) बनाया...। अरब देश में जब यह ख़बर मशहूर हुई तो क़बीला किनाना का कोई आदमी वहाँ आया और उसमें पाख़ाना करके भाग आया...।
बाज़ लोग कहते हैं कि अरब के नौजवानों ने उसके क़रीब आग जला रखी थी, हवा से उड़कर आग चर्च में लग गई और वह इमारत जलकर ढेर हो गई...।

अब्रहा को जब यह ख़बर मिली तो उसने ग़ुस्से में आकर क़सम खाई कि ख़ाना-ए-काबा (बैतुल्लाह) को ढहा कर ही दम लूँगा...। इसी इरादे से मक्का पर 60 हज़ार की फ़ौज लेकर हमले के इरादे से चल दिया...। रास्ते में जिस अरब क़बीले ने रुकावट डाली उसको ख़त्म कर दिया, तायफ़ के एक कबीले (#क़बीला_बनू_सक़ीफ़) ने उससे कोई जंग नहीं की बल्कि अपने क़बीले से #अबू_रग़ाल को साथ भेजा ताकि वो मक्का का रास्ता अब्रहा के लश्कर को बता सके, अबू रग़ाल रास्ता बताता हुआ अब्रहा और उसके लश्कर को मक्का ले आया, यहाँ तक कि मक्का की सरहद में दाख़िल हुआ...। अबू रग़ाल को अल्लाह के अजाब ने वहीं पकड़ लिया और वहीं मर गया... उस दौर में हाजी जब हज करने जाते थे तो क़बीला बनू सक़ीफ़ के अबू रग़ाल की कब्र पर पत्थर मारते और लानत भेजते थे...। अब्रहा के लश्कर में 13 हाथी भी थे और एक बहुत बड़े हाथी (जिसका नाम महमूद था और उसको चलाने वाले का नाम उनैस था) उस पर ख़ुद सवार था, मक्का के क़रीब पड़ाव डाला...।
मक्का के आस-पास मक्का वालों के जानवर चरा करते थे, वे जानवर अब्रहा के लश्कर वालों ने पकड़ लिये, जिन में 200 ऊँट हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दादा हज़रत अब्दुल-मुत्तलिब के भी थे, जो उस वक़्त मक्का के सरदार और ख़ाना काबा (बैतुल्लाह शरीफ़ की मस्जिद) के मुतवल्ली (प्रबंधक और देखभाल करने वाले) थे...।
  जब उनको अब्रहा के हमले की ख़बर हुई तो क़ुरैश को जमा करके कहा कि घबराओ मत, मक्के को ख़ाली कर दो, ख़ाना काबा को कोई नहीं गिरा सकता, यह अल्लाह का घर है और वह ख़ुद इसकी हिफ़ाज़त करेगा...। उसके बाद अब्दुल-मुत्तलिब क़ुरैश के चन्द बड़े लोगों को साथ लेकर अब्रहा से मिलने और अपने ऊँट माँगने गये...। अब्रहा ने अब्दुल-मुत्तलिब का शानदार इस्तिक़बाल (स्वागत) किया...।
अल्लाह तआला ने अब्दुल-मुत्तलिब को बेमिसाल हुस्न व वक़ार (प्रभावी व्यक्तित्व) और दबदबा (रौब, शान व शौकत) दिया था, जिसको देखकर हर आदमी मरऊब हो जाता (असर मानता) था...।
  अब्रहा भी हज़रत अब्दुल-मुत्तलिब को देखकर मरऊब हो गया और बहुत इज़्ज़त के साथ पेश आया...। यह तो मुनासिब न समझा कि उनको अपने तख़्त पर बैठाये, अलबत्ता उनकी इज़्ज़त की ख़ातिर यह किया कि ख़ुद तख़्त से उतर कर फ़र्श (ज़मीन) पर उनके पास बैठ गया...। बातचीत के दौरान हज़रत अब्दुल-मुत्तलिब ने अपने ऊँटो की रिहाई का मुतालबा (सवाल) किया...।
अब्रहा ने हैरान होकर कहा बड़े ताज्जुब (अचंभे) की बात है कि आपने मुझसे अपने ऊँटो के बारे मे तो सवाल किया और ख़ाना काबा जो आप और आपके बाप दादाओ के मज़हब और दीन की निशानी है, जिसको मैं गिराने के लिये आया हूँ उसकी आपको कोई फ़िक्र (परवाह) नहीं..?
अब्दुल-मुत्तलिब ने जवाब दिया कि मैं अपने ऊँटो का मालिक हूँ इसलिये मैंने अपने ऊँटो का सवाल किया, और काबे का मालिक ख़ुदा है, वह ख़ुद अपने घर को बचायेगा...।

   अब्रहा ने कुछ ख़ामोशी के बाद अब्दुल-मुत्तलिब के ऊँट वापस देने का हुक्म दिया...। अब्दुल-मुत्तलिब अपने ऊँट लेकर वापस आ गये और क़ुरैश और मक्का वालों को हुक्म दिया कि मक्का ख़ाली कर दे और तमाम ऊँट जो अब्रहा से वापस मिले थे ख़ाना काबा के लिये वक़्फ़ (दान) कर दिये...।
हज़रत अब्दुल-मुत्तलिब चन्द आदमियों को साथ लेकर ख़ाना काबा पहुँचे और हज़रत आमना को जो हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की माँ है, उनको भी पास बैठाकर अल्लाह से दुआ माँगी:-

    ऐ अल्लाह! इनसान अपनी जगह की हिफ़ाज़त करता है तू अपने घर की हिफ़ाज़त फ़रमा, और अहले सलीब (ईसाइयों) के मुक़ाबले में अपने घर की ख़िदमत करने वालों की मदद फ़रमा...। उनकी सली उनकी सलीब (ईसाइयों के क्रास का मज़हबी निशान) और उनकी तदबीर कभी भी तेरी तदबीर पर ग़ालिब (हावी) नहीं आ सकती...। लश्कर और हाथी चढ़ाकर लाये है ताकि तेरे अयाल (कुनबे वालों, यानी तेरे घर के पास रहने वालों) को क़ैद कर ले, तेरे हरम (इज़्ज़त वाले घर) की बर्बादी का क़स्द (इरादा) करके आये हैं, जहालत (बेइल्मी, नादानी व बेवक़ूफ़ी) की बिना पर तेरी अज़मत और जलाल (बड़ाई और बुज़ुर्गी) का ख़्याल नहीं किया...।
अब्दुल-मुत्तलिब दुआ से फ़ारिग़ होकर अपने साथियों के साथ पहाड़ पर चढ़ गये और अब्रहा अपना लश्कर और हाथी लेकर ख़ाना काबा को गिराने के इरादे से आगे बढ़ा...।
  हरम की हद में पहुँचकर हाथी रुक गये और काबे की ताज़ीम (सम्मान व इज़्ज़त) में तमाम हाथियों ने अपना सर झुका लिया...। हज़ार कोशिशों के बावजूद भी हाथी आगे न बढ़े...। उनको किसी दूसरी तरफ़ को चलाया जाता तो दौड़ने लगते, लेकिन काबे की तरफ़ को चलाते तो एक इन्च भी आगे न बढ़ते, बल्कि अपना सर झुका लेते...।
  यह मंज़र (नज़ारा और द्र्श्य) देखकर अब्रहा हाथी से उतरा और हाथियों को वहीं छोड़कर फ़ौज को आगे बढ़ने का हुक्म दिया...।

अचानक अल्लाह के हुक्म से छोटे-छोटे परिन्दो के झुंड के झुंड नज़र आये, हर एक की चोंच और पंजो में छोटी-छोटी कंकरियाँ थीं जो लश्कर पर बरसने लगीं...।
ख़ुदा की क़ुदरत से वे कंकरियाँ गोली का काम दे रही थीं... सर पर गिरती और नीचे से निकल जाती थीं, जिस पर वह कंकरी गिरती वह ख़त्म हो जाता था...। ग़र्ज़ कि अब्रहा का लश्कर तबाह व बर्बाद हुआ और खाए हुए भुस की तरह हो गया...।
अब्रहा के बदन पर चेचक के दाने निकल आये जिससे उसका तमाम बदन सड़ गया, बदन से पीप और लहू (ख़ून) बहने लगा...। एक के बाद एक बदन का हिस्सा कट-कटकर गिरने लगा और अब्रहा बदन में घटते-घटते म़ुर्गे के चूज़े के बराबर हो गया और उसका सीना फटा और दिल बाहर निकल कर गिरा और मर गया...।
जब सब मर गये तो अल्लाह तआला ने एक सैलाब भेजा जो सबको बहाकर दरिया में ले गया...।

इस वाक़िए को क़ुरआने पाक में सूर: फ़ील में बयान किया गया है:-
शुरु करता हूँ अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरबान, बड़ा रहम वाला है...।
क्या आपको मालूम नहीं कि आपके रब ने हाथी वालों के साथ क्या मामला किया? 
(1) क्या उनकी तदबीर को (जो कि काबा शरीफ़ को वीरान करने के बारे मे थी) पूरी तरह ग़लत नहीं कर दिया? 
(2) और उन पर गिरोह के गिरोह परिन्दे भेजे
(3) जो उन लोगों पर कंकर की पत्थरियाँ फेंकते थे। 
(4) सो अल्लाह तआला ने उनको खाये हुए भूसे की तरह (पामाल) कर दिया...।