हजरत औरंगजेब रहमतुल्ला हि अलैह और कुछ बातें
फूट
डालो और राज करो" की
नीति के तहत अंग्रेजो ने मुस्लिमों को हिन्दुओं और सिखों से लड़वाने के लिए भारत के
मुस्लिम शासकों के विरुद्ध गैर मुस्लिमों पर अत्याचार की बहुत सी भड़काऊ बातें इतिहास
मे लिखवाई हैं, प्राय: ये भड़काऊ बातें तथ्यों को गलत ढंग से
पेश कर के लिखी गई हैं. अब जैसे औरंगजेब पर गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज से युद्ध कर
के गुरु महाराज के साहिबजादों की हत्या करने, और गुरू महाराज के दो नन्हे साहिबजादों
को दीवार मे चुनवा डालने के आरोप लगाए गए हैं !! कहा गया है कि औरंगज़ेब ने सभी गैर
मुस्लिमों को काफिर मानकर उनसे नफरत करना, और उनको जबरन मुस्लिम बनाना अपना
परम कर्तव्य समझ रखा था, इसी कारण औरंगज़ेब ने गुरु साहिबों
की भी हत्या करवा डाली |
औरंगजेब
पर इतने गम्भीर आरोप निश्चय ही इस कारण लगाए गए क्योंकि औरंगजेब को इस्लाम का गहरा
ज्ञान रखने और इस्लाम के नियमों पर जीवन बिताने के कारण जाना जाता है | इस कारण औरंगजेब
द्वारा किए गए सारे “दुष्कृत्यों” बहुत आसानी से इस्लाम प्रेरित और
इस्लामी शिक्षाओं के अनुकूल सिद्ध किया जा सकता था | इससे हिन्दुओं और सिखों के मन मे किसी व्यक्ति
विशेष से नहीं बल्कि पूरे इस्लाम धर्म से ही नफरत पैदा हो जाती ॥
अंग्रेजो
ने केवल औरंगजेब से नफरत न दिलाकर उसके धर्म से सिखों और हिन्दुओं आदि को नफरत दिलाने
की युक्ति इसलिए लगाई थी , क्योंकि यदि गुरु साहिबों की हत्या
के आरोप केवल व्यक्तिगत रूप से औरंगजेब , और औरंगजेब के निजी राजनीतिक स्वार्थ
पर लगाए जाते, तो लोगों को केवल औरंगजेब से दुश्मनी महसूस होती, और
वो दुश्मनी औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही समाप्त भी हो जाती लेकिन इन्हीं घटनाओं को औरन्गजेब
द्वारा काफिरों के विरुद्ध इस्लामी जिहाद सिद्ध किए जाने के कारण दोनों समुदायों मे
ऐसी फूट पड़ी जिसका नतीजा हमने 1947 मे बंटवारे के समय हुए खून खराबे मे देखा ॥ बहरहाल …..
इतिहासविद्
डॉ. बी एन पाण्डेय ने औरंगज़ेब के फरमानो और गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा बादशाह औरंगज़ेब
को लिखे गए पत्र “ज़फरनामा”
के आधार पर
अपनी पुस्तक मे इस विषय मे जो लिखा उसका सारांश ये है कि औरंगज़ेब के राज्य के अधीन
आने वाले हिंदू पहाड़ी राजाओं ने गुरु महाराज के “मन्सद” को
मिलने वाली बहुमूल्य भेंटों के लालच मे मन्सद की हत्या कर दी तब
दरबार साहिब की सम्पत्ति वापस लेने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी की फौज ने पहाड़ी राजाओं
पर हमला कर दिया, गुरु महाराज की फौज जब पहाड़ी राजाओं पर भारी
पड़ी , तो इन राजाओं ने औरंगज़ेब को ये संदेश भिजवाया, कि
गोबिन्द सिंह एक बागी है जिसने बादशाह की रियाया पर हमला कर दिया है, अत:
बादशाह उन्हें गोबिंद सिंह जी के विरुद्ध सैन्य सहायता भेजे पर मन्त्रियों की सलाह
पर बादशाह औरंगज़ेब ने गोबिंद सिंह जी की फौज के विरुद्ध अपनी ओर से फौज नहीं भेजी
पहाड़ी राजाओं के गुरु की फौज से युद्ध होते रहे ,
गोबिंद सिंह
जी के आगे कमजोर पड़ रहे पहाड़ी राजाओं ने औरंगजेब को दोबारा लिखा कि यदि जहांपनाह
हमें मदद नहीं देंगे तो गोबिंद सिंह सारा राज्य हड़प लेंगे और पंजाब के सबके सब हिंदू
आपके हाथ से निकल जायेंगे…
इस
बार औरंगज़ेब पहाड़ी राजाओं के धोखे मे आ गए और अपनी सत्ता और राज्य पर खतरा समझकर
गुरु जी के विरुद्ध फौजी टुकड़ी भेज दी, यहाँ ये ध्यान देने की बात है कि
औरंगज़ेब ने अपनी फौज किसी धार्मिक गुट के विरुद्ध किसी धर्म से दुश्मनी मानकर नहीं
भेजी थी बल्कि अपने साम्राज्य पर से कब्जे का खतरा हटाने को भेजी थी
इसके
बाद घमासान युद्ध हुआ जिसमें गुरु महाराज के दो साहिबजादे काम आए, एवं
गोबिंद सिंह जी को भूमिगत होना पड़ा माता गूजर कौर और गुरु महाराज के दो मासूम साहिबज़ादे
गुरू जी के रसोइये गंगू (गंगा राम) के साथ थे परंतु ईनाम के लालच या जान के डर से गंगू
ने माता और साहिबजादों को औरंगज़ेब के एक अधीनस्थ सरहिन्द के नवाब को सौंप दिया जिस
मूर्ख नवाब ने औरंगज़ेब की जानकारी के बगैर मासूम बच्चों को दीवार मे ये सोचकर चिनवा
दिया कि उसकी इस हरकत से बादशाह खुश होंगे, हालांकि मलेर कोटला के मुस्लिम नवाब
ने उसे ऐसा करने से बहुत रोका, क्योंकि इस्लाम मे अवयस्क बच्चों
की हत्या को एक जघन्य पाप बताया गया है…॥
लेकिन
सरहिन्द का जाहिल नवाब न माना, और अनहोनी कर के रहा, किन्तु
इतना तय है कि यदि माता गूजरी और साहिबजादों को औरंगज़ेब के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता
तो औरंगज़ेब उन मासूम बच्चों की हत्या का आदेश तो बिल्कुल ही न देते ।
सन्
1705 मे किसी जगह से गोबिंद सिंह जी ने औरंगज़ेब को फटकारते हुए एक पत्र लिखा , इसी
ऐतिहासिक पत्र को आज ‘ज़फरनामा’
के नाम से जाना
जाता है , इस पत्र में गुरु महाराज ने औरंगज़ेब से कहा कि
तुझे शर्म नहीं आती कि तूने उन मूर्तीपूजकों को मुझ मूर्तीभंजक के विरुद्ध मदद दी | पत्र को पढ़कर और गुरु महाराज का सारा पक्ष जानकर बादशाह औरंगज़ेब
का मन ग्लानि और पछतावे से भर उठा कि अनजाने मे,
पहाड़ी राजाओं
के धोखे मे आकर बादशाह ने एक पुण्यात्मा को ऐसे कष्ट दे डाले |
औरंगज़ेब
ने तुरंत ये फरमान जारी कराया कि गुरु गोविन्द सिंह जहां चाहे रहकर, जिस
तरह चाहे ईश्वर को याद कर सकते हैं, और उनके साथ कहीं कोई दुर्व्यवहार
न किया जाए इसके
साथ ही बादशाह औरंगज़ेब ने गुरु गोबिंद सिंह जी से मुलाकात करने की इच्छा व्यक्त की
थी, सम्भवत: गुरु जी से अपनी गलतियों की माफी मांगने के लिए लेकिन ऐसा हो पाता, इससे
पहले ही औरंगज़ेब का देहान्त हो गया और
अंग्रेजो को हमारे बीच फूट डालने का सुनहरा मौका मिल गया परंतु
जितनी दुश्मनी आज हम उन इतिहास की बातों को लेकर मानते हैं, देखना
चाहिए कि गुरु गोबिंद सिंह जी भी औरंगज़ेब या उनके वंशजो से उतनी ही दुश्मनी मानते
थे ??
तथ्य
बताते हैं, कि गुरु महाराज के मन मे औरंगज़ेब या मुगल वंश
से कोई बैर न था, इसीलिए जब औरंगज़ेब के ही पुत्र बहादुर शाह प्रथम
ने उत्तराधिकार के युद्ध मे अपने भाईयों के विरुद्ध गुरु गोबिंद सिंह जी से सैन्य सहायता
मांगी तो गुरु जी ने खुले ह्रदय से मुगल साम्राज्य के हित के लिए बहादुर शाह प्रथम
की सहायता की थी॥
ऐतिहासिक
तथ्यों की पुष्टि के लिए हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित इतिहासकार और शोधकर्ता
श्री बी. एन. पाण्डेय की लिखी पुस्तक “मुगल विरासत : औरंगजेब के फरमान” पढ़िए
॥
आमिर पटेल, लुणावाड़ा
प्रस्तुत
:अब्बास मिसबाही अजहरी काहिरा मिस्र--
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