73 में से हक़ पर कौन

कुछ लोगों को कुरान में किसी फिरके का नाम नहीं मिलता
उन्हें सबके सब मुस्लमान नज़र आते हैं
क्या वाकई सारे 73 फिरके वाले मुस्लमान हैं

आइये क़ुरान से पूछते है

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त कुरान में फरमाता है

(1). ये गंवार कहते हैं की हम ईमान लाए,तुम फरमादो ईमान तो तुम न लाये,हाँ यूँ कहो की हम मुतिउल इस्लाम हुए,ईमान अभी तुम्हारे दिलों में कहाँ दाखिल हुआ

�� पारा 26,सूरह हुजरात,आयत 14

(2). मुनाफेकींन जब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर होते हैं तो कहते हैं की हम गवाही देते हैं कि बेशक हुज़ूर यक़ीनन खुदा के रसूल हैं और अल्लाह खूब जानता है कि बेशक तुम ज़रूर उसके रसूल हो और अल्लाह गवाही देता है कि बेशक ये मुनाफ़िक़ ज़रूर झूठे हैं

�� पारा 28,सूरह मुनाफेकूंन,आयत 1

(3). तो क्या अल्लाह के कलाम का कुछ हिस्सा मानते हो और कुछ हिस्सों के मुंकिर हो

�� पारा 1,सूरह बकर,आयत 85

(4). इज़्ज़त तो अल्लाह उसके रसूल और मुसलमानो के लिए है और मुनाफ़िक़ों को खबर नहीं

�� पारा 28,सूरह मुनाफेकूंन,आयत 8

(5). कहते हैं हम ईमान लाए अल्लाह और रसूल पर और हुक्म माना फिर कुछ उनमें के उसके बाद फिर जाते हैं और वो मुस्लमान नहीं

�� पारा 18,सूरह नूर,आयत 47

*** लीजिये जनाब सब क़ुरान से साबित हो गया की मुस्लमान कोई और है काफिर कोई और और मुनाफ़िक़ कोई और,मुस्लमान और काफिर के बारे में तो जग ज़ाहिर है मगर मुनाफ़िक़ उसे कहते हैं की दिखने में मुस्लमान जैसा हो और काम से काफिर,जैसा की खुद मौला फरमाता है

(6). ये इसलिए की वो ज़बान से ईमान लाए और दिल से काफिर हुए तो उनके दिलों पर मुहर कर दी गयी तो वो अब कुछ नहीं समझते

�� पारा 28,सूरह मुनाफेकूंन,आयत 3

*** वहाबी,कादियानी,खारजी,शिया,अहले हदीस,जमाते इस्लामी ये सब बदमजहब मुनाफ़िक़ ही हैं,और सब 72 फिर्को वाले ही हैं यानि हमेशा की जहन्नम वाले,ये मैं नहीं बल्कि खुद मौला फरमाँ रहा है

(7). बेशक अल्लाह मुनाफ़िक़ों और काफिरों सबको जहन्नम में इकठ्ठा करेगा

�� पारा 5,सूरह निसा,आयत 140

*** अब इन नाम निहाद मुसलमानो की इबादत और इबादतगाहो की असलियत भी खुद रब से ही सुन लीजिए,इन मुनाफ़िक़ों की मस्जिदें मस्जिद कहलाने के लायक नहीं,उनकी कोई ताज़ीम नहीं,खुद ही पढ़ लीजिए

(8). और वो जिन्होंने मस्जिद (मस्जिदे दररार) बनायीं नुक्सान पहुंचाने को कुफ्र के सबब और मुसलमानों में तफर्का डालने को और उसके इंतज़ार में जो पहले से अल्लाह और उसके रसूल का मुख़ालिफ़ है और वो ज़रूर कस्मे खाएंगे की हमने तो भलाई चाही और अल्लाह गवाह है की वो बेशक झूठे हैं. उस मस्जिद में तुम कभी खड़े न होना यानि (हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम)

�� पारा 11,सूरह तौबा,आयत 107*108

***  क्या काफिर भी मस्जिद बनाते हैं,नहीं बल्कि ये नाम निहाद मुसलमान बनाते हैं इसी लिए हुज़ूर ने सहबा इकराम को हुक्म दिया की वो 'मस्जिदे दररार' गिरा दें,और ऐसा ही किया गया और पढ़िए

(9). और नमाज़ को नहीं आते मगर जी हारे और खर्च नहीं करते मगर ना गवारी से

�� पारा 10,सूरह तौबा,आयत 54

*** ये है इन मुनाफ़िक़ों की इबादत का हाल,की खुद रब कह रहा है की नमाज़ बेदिल से पढ़ते है और ज़कात बोझ समझ कर अदा करते हैं,और पढ़िए

(10). और उनमें से किसी की मय्यत पर कभी नमाज़ न पढ़ना और न उनकी कब्र पर खड़े होना बेशक वो अल्लाह और उसके रसूल से मुंकिर हुए

�� पारा 10,सूरह तौबा,आयत 84

*** अब बताइये जिनकी मस्जिदे मस्जिदे नहीं,जिनकी नमाज़ नमाज़ नहीं,जिनकी ज़कात ज़कात नहीं,जिनकी कब्र पर जाना नहीं,जिनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ना नहीं पढ़ाना नहीं तो क्या अब भी उन मुनाफ़िक़ों को मुस्लमान समझा जाए,हमसे हर बात पर कुरान से हवाला मांगने वाले वहाबियों ने क्या सुन्नियों को भी अपनी तरह जाहिल समझ रखा है अभी तक मैंने सिर्फ क़ुरान से ही बात की है,इनके दीने बातिल पर ये आखरी कील ठोंकता हूँ,आप भी पढ़िए

(11). वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है

�� पारा 10,सूरह तौबा,आयत 61

* क्या माज़ अल्लाह नबी को चमार से ज़्यादा ज़लील कहना,उनको ईज़ा देना नहीं है-तकवियतुल ईमान,सफह 27
* क्या माज़ अल्लाह नबी को किसी बात का इख्तियार नहीं है ये कहना,उनको ईज़ा देना नहीं है-तकवियतुल ईमान,सफह 56
* क्या माज़ अल्लाह नबी के चाहने से कुछ नहीं होता ये कहना,उनको ईज़ा देना नहीं है-तकवियतुल ईमान,सफह 75
* क्या माज़ अल्लाह उम्मती भी अमल में नबी से आगे बढ़ जाते हैं ये कहना,उनको ईज़ा देना नहीं है-तहजीरुन्नास,सफह 8
* क्या माज़ अल्लाह हमारे नबी को आखरी नबी ना मानना,उनको ईज़ा देना नहीं है-तहजीरुन्नास,सफह 43
* क्या माज़ अल्लाह नबी के इल्म को शैतान के इल्म से कम मानना,उनको ईज़ा देना नहीं है-बराहीने कातया,सफह 122
* क्या माज़ अल्लाह नबी के इल्म को जानवरों और पागलो से तस्बीह देना,उनको ईज़ा देना नहीं है-हिफजुल ईमान,सफह 7
* क्या माज़ अल्लाह गधे और बैल का ख्याल आने से नमाज़ हो जाती है और नबी का ख्याल आने से नमाज़ बातिल हो जाती है ये लिखना,उनको ईज़ा देना नहीं है-सिराते मुस्तक़ीम,सफह 148

***** ये उन वहाबी खबिसो के कुछ अक़ायद हैं,क्या इनपर कुफ्र का फतवा नहीं लगेगा,क्या कोई अक़्लमन्द आदमी ऐसा लिखने वालों को छापने वालो को या जानकार भी इनके उसी बुरे मज़हब पर कायम रहने वालो को मुसलमान जानेगा,नहीं हरगिज़ नहीं,चलते चलते एक हदीसे पाक सुन लीजिए और बात खत्म

(12). हज़रत इब्ने उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत पर एक ज़माना ज़रूर ऐसा आएगा जैसा की बनी इस्राईल पर आया था बिलकुल हु बहु एक दुसरे के मुताबिक यहाँ तक की बनी इस्राईल में से अगर किसी ने अपनी माँ के साथ अलानिया बदफैली की होगी तो मेरी उम्मत में ज़रूर कोई होगा जो ऐसा करेगा और बनी इस्राईल 72 मज़हबो में बट गए थे और मेरी उम्मत 73 मज़हबो में बट जाएगी उनमें एक मज़हब वालों के सिवा बाकी तमाम मज़ाहिब वाले नारी और जहन्नमी होंगे सहाबा इकराम ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम वह एक मज़हब वाले कौन है तो हुज़ूर ने फ़रमाया कि वह लोग इसी मज़हबो मिल्लत पर कायम रहेंगे जिसपर मैं हूँ और मेरे सहाबा हैं

�� तिर्मिज़ी,हदीस नं 171 * अब दाऊद,हदीस नं 4579 * इब्ने माजा,सफह 287

*** ये वहाबी,,कादियानी,खारजी,शिया,अहले हदीस,जमाते इस्लामी वाले पहले अपने आपको अहले सुन्नत वल जमात के इस मिल्लत पर तो ले आएं बाद में मुसलमान होने की बात करें ***
Maslake imame aazam aaj jise maslake aalahazrat k naam se jana jata hai yahi haq par hai beshak

11 comments:

  1. Maslake imame aazam ALAG FIRKA HAI
    maslake aalahazrat ALAG FIRKA HAI
    YE DONO FIRKE ALAG ALAG HAI
    INME SE KAUNSA HAK PAR HAI??

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  2. Maslake imame aazam ALAG FIRKA HAI
    maslake aalahazrat ALAG FIRKA HAI
    YE DONO FIRKE ALAG ALAG HAI
    INME SE KAUNSA HAK PAR HAI??

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  3. na maslake Alahazrat alag firqa hai aur na Maslak Imam Imam Azam alag firqaa hain magar Yeh Ahle Sunnat ka Tarjumaan hain Aur Ahle Sunnat hi Haqq hai Baqi tamam firqaaa Jahil o Batil aur Jahannami hai Jaisa ki Hadis Paak hai

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  4. Bhai aap ne ye to sabit kiya ki 73 firko me se ek hi firka jannati hoga . Ye to aaj ka gair musalman bhi janata hai . Lekin ye to sabit nahi ho raha ki kaun sa firka aaj aisa hai jo jannati hai. Aap sirf wahabiyo ko galat bata rahe hai mai nahi janata wahabi kaun hai lekin wahabi yo ko chodkar baki aur bhi to firke hai aap sirf wahabiyo ke bare me hi kyu bata rahe hai . Baki firko ko galat sabit karane ke bajay aap ye kyu nahi sabit kar sakate ki aap jis firke ae talluk rakhate hai wahi hak par hai

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  5. Nabi aur sahaba ke daur me koi hanafi maliki shafai hambli deobandi barelvie in me se koi tha kya ye sabit kar sakate hai aap

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  6. Bhai aap ne ye to sabit kiya ki 73 firko me se ek hi firka jannati hoga . Ye to aaj ka gair musalman bhi janata hai . Lekin ye to sabit nahi ho raha ki kaun sa firka aaj aisa hai jo jannati hai. Aap sirf wahabiyo ko galat bata rahe hai mai nahi janata wahabi kaun hai lekin wahabi yo ko chodkar baki aur bhi to firke hai aap sirf wahabiyo ke bare me hi kyu bata rahe hai . Baki firko ko galat sabit karane ke bajay aap ye kyu nahi sabit kar sakate ki aap jis firke ae talluk rakhate hai wahi hak par hai

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  7. Munafik kaun hai aapne khud hi faisala kar dala kya bat hai jawab nahi aapaka

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  8. Sahi quran or hadees ka h wa wahabi ahle hadees salfye h

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