अक्सर मुख़ालिफ़ लोग अल्लाह वालों के मज़ारों पर होने वाली ख़ुराफ़त को आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा रज़ियल्लाहु अनहु और दूसरे उ-लमाए अहले सुन्नत की तरफ़ जोड़ते हैं, जबकि हक़ीक़त येह है कि अल्लाह वालों के मज़ारों और आस्तानों पर होने वाली ख़ुराफ़ात और ऊट पटांग हरकतों का अहले सुन्नत व जमाअत (सुन्नी बरेलवी जमाअत) से कोई तअल्लुक़ नहीं, बल्कि आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ान फ़ाज़िले बरेलवी और दूसरे उ-लमाए अहले सुन्नत ने अपनी अपनी किताबों में उनका भरपूर रद्द (खंडन) फ़रमाया है ।
औरतों का दरगाह पर जाना
औरतों और जवान लड़कियों का हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मुबारक आस्ताने के सिवा किसी भी मज़ार और दरगाह पर जाना जाईज़ नहीं ।
फ़तावा रज़विया: जिल्द 9, पेज 541
मज़ारों का तवाफ़ करना
मज़ारों का तवाफ़ (चक्कर) अगर ताज़ीम (बड़ाई ज़ाहिर करने) की नियत से किया जाये तो ना जाईज़ है, क्यूंकि तवाफ़ के साथ ताज़ीम सिर्फ़ काबा शरीफ़ के साथ ख़ास है, और मज़ार को चूमना भी अदब के ख़िलाफ़ है, आस पास की ऊंची लकड़ी या दोनों तरफ़ और ऊपर की चोखट को चूम सकते हैं ।
फ़तावा रज़विया: जिल्द 9, पेज 528
मज़ार पर चादर चढ़ाना
अगर मज़ार पर चादर पहले से मौजूद हो और वोह पुरानी और ख़राब ना हो तो चादर चढ़ाना भी फ़ुज़ूल (बे मतलब) है, बल्कि जो पैसा इसमें इस्तेमाल करें वोह अल्लाह के वली की पाक रूह को सवाब पहुंचाने की नियत से ज़रूरत-मंदो को दें ।
अहकामे शरीअत: हिस्सा 1, पेज 51
नियाज़ का खाना लुटाना
नियाज़ का खाना लुटाना (फैंक कर देना) हराम है, खाने का इस तरह लुटाना (फैंकना) बे अदबी है ।
फ़तावा रज़विया: जिल्द 24, पेज 112
माथा टेकना या रुकू की हद्द तक झुकना
इबादत (पूजा) का सजदा (माथा टेकना या रुकू की हद्द तक झुकना) अल्लाह के सिवा किसी को भी करना शिर्क (कुफ़्र और इस्लाम से बाहर कर देने वाला काम) है, और ताज़ीम (अदब और एहतेराम) वाला सजदा (माथा टेकना या रुकू की हद्द तक झुकना) मज़ारों को हो या पीर को या किसी और को, हराम है ।
फ़तावा रज़विया: जिल्द 22, पेज 425
पेड़, दीवार, या ताक़ पर फ़ातिहा दिलाना
लोगों का येह कहना कि फ़लां पेड़, दीवार, या ताक़ पर शहीद (या कोई बुज़ुर्ग) रहते हैं, और उस पेड़ या दीवार या ताक़ के पास जाकर मिठाई, चावल (या किसी चीज़) पर फ़ातिहा दिलाना, हार-फूल डालना, लोबान (या अगरबत्ती) जलाना, और मन्नतें मानना, मुरादें मांगना, येह सब बातें वाहियात, बेकार ख़ुराफ़ात, और जाहिलों वाली बे-वक़ूफ़ियां और बे बुनयाद बातें हैं ।
अहकामे शरीअत: हिस्सा 1, पेज 22
किसी बुज़ुर्ग या शहीद या वली की हाज़िरी या सवारी आना
इसी तरह येह समझना की फ़लां आदमी या औरत पर किसी बुज़ुर्ग या शहीद या वली की हाज़िरी होती या सवारी आती है, येह भी फ़ुज़ूल और जाहिलों की गढ़ी हुवी बात है, किसी इंसान के किसी भी तरह मरने के बाद उसकी रूह (आत्मा) किसी इंसान या किसी चीज़ में नहीं आ सकती, जो जन्नती हैं उनको इस तरह आने की ज़रूरत नहीं, और जो जहन्नमी हैं वोह आ नहीं सकते । जिन्नात और शैतान ज़रुर किसी चीज़ या किसी जानवर या इंसान के जिस्म में गुमराह करने केलिये आ सकते हैं । हमज़ाद भी शैतान जिन्नात में से होता है जो हर इंसान के साथ पैदा होता और ज़िंदगी भर उसके साथ रहता है, और उस इंसान के मरने के बाद या ज़िंदगी में ही, किसी और बच्चे या बड़े के जिस्म में घुसकर उसकी ज़बान से बोलता है, इसी को काफ़िर और कुछ जाहिल मुसलमान दुसरा जनम और पिछले जनम की बात समझ बैठते हैं ।
हाफ़िज़, क़ारी, मौलाना, मुफ़्ती मुहम्मद शाहिद क़ादिरी, बरकाती, रज़वी, अज़हरी
इमाम व खतीब जामा मस्जिद
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