यूरोप
सहित लगभग सभी पश्चिमी देशों में, मांस
के लिए पहली पसंद सूअर का गोश्त है। इस जानवर की नस्ल के लिए इन देशों में बहुत सारे
सूअर पलने के लिए फ़ार्म बनाये हुए हैं। अकेले फ्रांस में, ये फार्म 42,000 से भी अधिक हैं
किसी
भी अन्य जानवर की तुलना में सुअर के शरीर में
चर्बी की मात्रा सबसे अधिक होती है लेकिन यूरोपीय और अमेरिकन इसकी चर्बी से बचने की
स्वयं बहुत कोशिश करते हैं।
अब सवाल
ये होता है के ये चर्बी कहाँ जाती है? सभी सुअरों को भोजन विभाग के देखरेख में बूचड़खानों में काट दिया
जाता है और इन जानवरों की चर्बी को ठिकाने लगाना भोजन विभाग का बड़ा सिरदर्द बनकर रह
गया था की इस अथाह चर्बी या फैट का क्या करें।
औपचारिक
रूप से, लगभग
60 साल
पहले इस चर्बी को जला दिया जाता था। फिर उन्होंने
इसका इस्तेमाल करने के बारे में सोचा। सबसे पहले, उन्होंने इसे साबुन बनाने में इस्तेमाल किया।
फिर, एक पूर्ण नेटवर्क
का गठन किया गया था और इस FAT यानि
चर्बी को केमिकल आदि के ज़रिये नयी शक्ल दी गयी ताकि ये दूसरी कम्पनियों द्वारा इसको
खरीदकर नए प्रोडक्ट्स बनाने में इस्तेमाल किया जा सके।और समस्त यूरोप में नियम बनाया
गया की जिस सामान को बनाने में इस चर्बी या फैट का इस्तेमाल किया गया हो उसके पैकेट
के ऊपर लेबल पर ये लिखना ज़रूरी है की इसमें पिग फैट है यानि सुअर की चर्बी है।
जो पिछले
40 सालों
से यूरोप में रह रहे हैं, वे इस
बारे में जानते हैं। लेकिन, इस तरह
के उत्पादों को इस्लामिक देशों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप
व्यापार में इन कंपनियों को घाटा होने लगा।
यदि
आप किसी तरह दक्षिण पूर्व एशिया से संबंधित हैं, तो आपको 1857 सिविल
युद्ध के कारणों के बारे में पता होगा । उस समय, रिफ्ले बुलेट नाम का कारतूस यूरोप में बनाये गये थे और समुद्र
के माध्यम से उप-महाद्वीप में पहुंचाये जाते थे। इसमें वहां पहुंचने में कई महीनों
लगते थे और समुद्र की नमी के कारण इसमें लगा बंदूक का पाउडर खराब हो जाता था।
फिर
इन कारतूसों पर इसी फैट या चर्बी की कोटिंग
करने का प्लान बनाया गया जो पिग फेट था। इन कारतूसों को इस्तेमाल करने से पहले इनपर
चढ़ी फैट की परत को दांतों से खरोंच कर निकलना पड़ता था जब सैनिकों ये पता चला की इनपर
सूअर की फैट की परत चढ़ी होती है जिसको दांतों से निकालना पड़ता है तो इनमें से जो अधिकतर
मुसलिम सिपाहि थे और कुछ शाकाहारी सिपाहियो ने इन कारतूसों को इस्तेमाल करते हुए लड़ने
से इनकार कर दिया और इस तरह गृह युद्ध के हालात बन गए। यूरोपियों ने इन हालात को समझते हुए इन कारतूसों पर पिग फेट लिखने के बजाय, उन्होंने एनिमल
फेट अर्थात जानवर की चर्बी लिखना शुरू कर दिया।
1970 के बाद से यूरोप
में रहने वाले सभी लोग इस सच्चाई को जान गए लेकिन उन लोगों के पूछने पर अधिकारी ये
बताते थे की इन कारतूसों पैर गाय या भेड़ की चर्बी की परत चढ़ाई गयी है यहाँ फिर से एक
सवाल उठाए अगर यह गाय या भेड़ वसा था, अभी भी यह मुसलमानों के लिए हराम था क्योंकि इन जानवरों को इस्लामी
तरीक़ों से हलाल किये हुए भेड़ों या गाय की फैट इस्तेमाल नहीं की गयी थी।
इस प्रकार, उन्हें फिर से
प्रतिबंधित कर दिया गया। अब इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फिर से पैसे की एक गंभीर समस्या
का सामना करना पड़ा।इन कंपनियों की आय का 75% हिस्सा मुस्लिम देशों में अपने इस माल को बेचने
से आता था, और मुस्लिम
देशों को अपना माल निर्यात करके ये अरबों डॉलर्स कमाते थे।
आखिरकार
उन्होंने एक कोडिंग भाषा शुरू करने का फैसला किया, ताकि केवल उनके विभागों को यह जानना चाहिए कि वे क्या उपयोग
कर रहे हैं, और आम
आदमी को इस बात का पता न चले की ये फैट किस जानवर की है या ये फैट भी है या नहीं है।
इस प्रकार, उन्होंने
सूअर की चर्बी की अलग अलग किस्म का अलग अलग नाम की इ कोडिंग कर दी ये ई-सामग्री बहुराष्ट्रीय कंपनियों
के अधिकांश उत्पादों में मौजूद हैं, ये सूअर की चर्बी इन उत्पादों में मिलायी जाती है और इनके ऊपर
क्योंकि कानून के अनुसार इन उत्पादों में क्या मिलाया गया है लिखना ज़रूरी है तो सूअर
की इन चरबियों की किस्मों के अलग अलग E coding लिख दी जाती है ताकि आम आदमी को पता ही न चल सके
की इनमें सूअर की चर्बी है या नहीं ये प्रोडक्ट्स हैं:
टूथ
पेस्ट
शेविंग
क्रीम
च्यूइंग
गम
चॉकलेट
मिठाइयाँ
बिस्कुट
कॉर्न
फ्लैकस
टॉफी
डिब्बाबंद
खाद्य पदार्थ
डिब्बाबंद
फल
कुछ
दवाओ और मल्टी विटामिन में इन इ कोडिंग वाली सूअर की चर्बी का इस्तेमाल सभी मुसलमान देशों में अंधाधुंध रूप से
किया जा रहा है,और कारन
से इस सूअर की चर्बी के असर से हमारे मुस्लिम
समाज में भी बेशर्मी और अशिष्टता जैसे समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है ...
इसलिए, दैनिक उपयोग
के सामान की सामग्री की जांच करने के लिए नीचे दी हुई ई-कोड की लिस्ट से कोई भी प्रोडक्ट
खरीदने से पहले सुनिशचित करलें की इनमें ये इ कोड की चर्बी शामिल तो नहीं यदि ये इ
कोडिंग पायी जाती है तो सभी मुसलमानों और शाकाहारी लोगों को बता दें की इन चीज़ों में
सूअर की हराम फैट या चर्बी मिलाकर बनायीं गयी है। खुद इसे न खरीदे और दूसरों को भी
इसे खरीदने से बचाएं।यदि नीचे दी गई लिस्ट की कोई भी E कोडिंग किसी भी सामग्री में पाया गया है, तो निशचित रूप
से सूअर की चर्बी है जो इस्लाम में हराम है:-
E100, E110, E120, E140, E141, E153, E210,
E213, E214, E216, E234, E252, E270, E280, E325, E326, ई 327, E334, E335, E336, E337, E422, E430,
E431, E432 , E433, E434, E435, E436, E440,E 441,E470, E471, E472, E473, E474, कोई
सबूत नहीं E475, E476, किण्वन
से तैयार E477, E478, E481, E482, E483, E491,
E492, E493, E494, E495, E542, E570, E572 , E 621, E 631, E 635, E 904
हैरत
की बात ये है की जिन पोडक्ट्स में ये हराम फैट इस्तेमाल की जाती है उनके पैकेट्स पर
भी सफ़ेद चोकोर के अंदर हरा बिंदु बना होता है जिसे ग्रीन डॉट कहते है। यह डॉट उन पैकेट्स
पर ही लगाना होता है जो 100 परसेंट
वेजीटेरियन होते है यानि जिनमे किसी भी जानवर के शरीर की कोई भी चीज़ जेसे चर्बी खून
इत्यादि न मिलाया गया हो। यहां पर वो सरे प्रोडक्ट्स जिनमें सूअर की हराम चर्बी इस्तेमाल
की जाती है उन पर भी ये ग्रीन डॉट बना होता है और उनके इंग्रेडिएंट्स में सूअर की कोनसी
चर्बी मिलायी होती है उसका E Coding लिखी
होती है ये भी एक धोखा है।
डॉ एम.अमजद
खान द्वारा अंग्रेजी में लिखित और रिहान अहमद खान द्वारा अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद
किया गया।
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सवाब भी यक़ीनन मिलेगा।
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