अपना जीवन साथी चुनते समय क़ुराने मजीद के सूरए नूर की 26वीं आयत को आवश्य ध्यान में रखें ।
बच्चों की परवरिश की प्रक्रिया बच्चे के जन्म के बाद या गर्भावस्था के दौरान नहीं, बल्कि उससे काफ़ी पहले शुरू हो जाती है। इसलिए कि बच्चों की आदतों और स्वभाव में केवल मां-बाप ही नहीं बल्कि पूर्वजों की कई पीढ़ियों तक की मानसिकता और आचरण का प्रभाव होता है। इसलिए यह पूर्वज ही होते हैं कि जो अगली नस्लों की परवरिश की नींव रखते हैं।
यही कारण है कि इस्लाम ने जीवन साथी के चयन को बहुत महत्वपूर्ण क़दम बताया है और इसके लिए कुछ मापदंड बयान किए हैं। इन्हीं मापदंडों में से एक पति और पत्नी के एक स्तर का होना है। जीवन साथी के समान स्तर का होने से केवल माली हैसियत में समान होना या दोनों के बीच माली स्तर में बहुत अधिक अंतर होना ही नहीं है, बल्कि दूसरी विशेषताओं और गुणों में भी दोनों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होना चाहिए।
ईरानी समाजशास्त्री और धर्मगुरू डा. हुसैन दहनवी कहते हैं कि जीवन साथी के चयन के समय हमें दिल से नहीं बल्कि दिमाग़ से निर्णय करना चाहिए और हमें यह याद रखना चाहिए कि हम केवल अपने जीवन साथी का ही चयन नहीं कर रहे हैं बल्कि अपने बच्चों की होने वाली माँ और होने वाले बाप का भी चयन कर रहे हैं। वे कहते हैं कि इस्लाम ने जीवन साथी के चयन में दोनों के समान स्तर का होने पर बहुत बल दिया है।
डा. हुसैन दहनवी लड़कों और लड़कियों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि अपना जीवन साथी चुनते समय क़ुराने मजीद के सूरए नूर की 26वीं आयत को आवश्य ध्यान में रखें। इस आयत में ईश्वर कहता है कि दुष्ट महिलाएं दुष्ट पुरुषों के लिए हैं और दुष्ट पुरुष दुष्ट महिलाओं के लिए और पवित्र महिलाएं पवित्र पुरुषों के लिए हैं और पवित्र पुरुष पवित्र महिलाओं के लिए। क़ुराने मजीद जीवन साथी के चयन के लिए एक मापदंड समानता का होना बता रहा है। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) इस मापदंड की व्यख्या करते हुए फ़रमाते हैं कि समान स्तर का जीवन साथी वह है कि जो पवित्रता और माली हैसियत में समान हो।
जीवन साथी के चयन में अन्य जिन मापदंडों का पालन करना चाहिए उनमें से एक योग्य और अच्छा होना है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक साथी जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी का कहना है कि मैं पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में उपस्थित था। हज़रत ने अच्छे जीवन साथी के बारे में फ़रमाया: तुम में से बेहतरीन पत्नी वह है कि जिसमें 10 विशेषताएं पाई जाती हों। अनेक बच्चों के जन्म के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार हो। दयालु हो। अपनी पवित्रता की रक्षा करने वाली हो। अपने परिजनों में सम्मान रखती हो। पति के लिए विनम्र हो। पति के लिए मेक-अप और सिंगार करने वाली हो। अजनबियों से ख़ुद को सुरक्षित रखे और उचित वस्त्र धारण करे। पति का पालन करने वाली हो। पति को प्रसन्न करने वाली हो। पति के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाए रखे और अतिवादी न हो।
जीवन साथी के चयन में एक महत्वपूर्ण मापदंड ईमान और शिष्टाचार का होना है। धर्म में गहरी आस्था और शिष्टाचार की ही छाव में पति-पत्नी के बीच गहरे और मज़बूत संबंध स्थापित हो सकते हैं। अगर जीवन साथी में यह विशेषता पाई जाती है तो काफ़ी हद तक बच्चों की सही परवरिश के लिए भूमि प्रशस्त हो जाएगी और पति-पत्नी जीवन की अनेक कठिनाईयों पर निंयत्रण करने के अलावा सही सिद्धांतों के मुताबिक़ अपने बच्चों की परवरिश कर सकेंगे।
इस परिप्रेक्ष्य में पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं कि पत्नी का चयन उसकी सुन्दरता के आधार पर मत करो, इसलिए कि संभव है कि महिला की सुन्दरता उसके नैतिक पतन का कारण बन जाए। इसी प्रकार, उसकी संपत्ति के कारण उससे विवाह मत करो, इसलिए कि धन उसमें अहं पैदा कर सकता है, बल्कि उसके ईमान को आधार बनाओ और ईमानदार महिला से विवाह करो।
जीवन साथी के चयन में धर्म और शिष्टाचार दो ऐसे मूल सिद्धांत हैं कि जो बच्चों के पालन-पोषण के प्रत्येक चरण में बहुत अहम भूमिका अदा करते हैं। धर्म में गहरी आस्था रखने वाला या ईमानदार जीवन साथी पवित्र वैवाहिक जीवन के साथ साथ अपने बच्चों की इस प्रकार से परवरिश करेगा कि वे बड़े होकर अच्छे और ईमानदार नागरिक बनें।
दूसरी ओर धर्म में गहरी आस्था के कारण परिवार में शांति का वातावरण उत्पन्न होता है। अब यह पति और पत्नी दोनों की ज़िम्मेदारी होती है कि वे परिवार में शांत माहौल बनाए रखें ताकि उनके घर में आने वाले नए मेहमान के लिए वातावरण अनुकूल रहे। क्योंकि अगर घर के वातावरण में पर्याप्त मानसिक शांति उपलब्ध नहीं होगी तो निश्चित रूप से आने वाला नया मेहमान मानसिक शांति का आभास नहीं करेगा। इसलिए कि दुनिया में जन्म लेने वाले शिशु में छोटी से छोटी प्रतिक्रिया से प्रभावित होने और उस पर प्रतिक्रिया जताने की क्षमता होती है। हालांकि हो सकता है कि यह प्रतिक्रिया मां-बाप की नज़रों से ओझल रहे।
इस्लामी मनोविज्ञान के अनुसार, गर्भ धारण के समय से ही शिशु की मानसिक शांति का आरम्भ होता है। अगर उस समय मां-बाप को मानसिक शांति प्राप्त हो और उनके मन पर किसी तरह का कोई भार न हो तो पूर्ण मानसिक शांति के वातावरण में गर्भधारण होगा। शिशु के जन्म से पहले गर्भधारण का चरण सबसे संवेदनशील चरणों में से है। इस्लाम ने इस चरण में मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक बल दिया है। यह चरण मानव विकास का आरम्भिक क्षण है।
इस संदर्भ में मुसलमानों के दूसरे इमाम हसन मजुतबा फ़रमाते हैं कि अगर गर्भधारण के समय दिल को सुकून, मन को शांति और शरीर में ख़ून का प्रवाह सही रहता है तो ऐसा बच्चा जन्म लेता है कि जो अपने मां-बाप की भांति होता है।
इस्लाम ने जीवन साथी के चयन के लिए जो मापदंड बयान किए हैं, उसका उद्देश्य जहां पति-पत्नी को ख़ुशहाल जीवन के पथ पर अग्रसर करना है तो वहीं आने वाली नस्लों के लिए एक बेहतरीन वातावरण उपलब्ध कराना और उनकी सही परवरिश को सुनिश्चित बनाना है। इसलिए कि विवाह का उद्देश्य मानवीय नस्ल को आगे बढ़ाना है।
मां के गर्भ में जो कमियां शिशु के ढांचे में उत्पन्न हो जाती हैं तो वह केवल शारीरिक कमियां ही नहीं होती हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मानसिक रोगों और चरित्रहीनता का सीधा असर शिशु पर पड़ता है। हज़रत अली फ़रमाते हैं कि समय छिपे हुए रहस्यों को ज़ाहिर कर देता है। इसका अर्थ यह है कि मां-बाप के चरित्र, उनकी मानसिक स्थिति और विचारों का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है, कि जो धीरे धीरे उनमें प्रकट होने लगते हैं।
इस्लाम सिफ़ारिश करता है कि असभ्य और अशिष्ट लड़की से विवाह नहीं करो। चरित्रहीन लोगों की लड़कियों से विवाह नहीं करो। ऐसी लड़की कि जिसने अवैध संबंधों के परिणाम स्वरूप जन्म लिया हो उसे अपना जीवन साथी नहीं चुनो। ऐसी लड़की जो मानसिक रोगी है विवाह मत करो। अधिक आयु वाली महिलाओं से विवाह न करो। यही सिफ़ारिशें इस्लाम ने लड़कियों से भी की हैं। इस्लाम उनसे कहता है कि अपने पति के चयन में इन सिद्धांतों का पालन आवश्यक करें। यहां यह बात पूरे दावे के साथ कही जा सकती है कि इन समस्त सिफ़ारिशों का उद्देश्य आने वाली नस्लों की भलाई को मद्देनज़र रखना है, ताकि आने वाली नस्लें शारीरिक और मानसिक रोगों और कमियों से सुरक्षित रहें।
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