बिस्मिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम
हजरे-अस्वद अरबी लफ्ज़ है जिसके मायने काला पत्थर होता है | इसे हम संगे-अस्वद भी कहते हैं | दरअसल ये जन्नत का याकुत यानी हीरा है जिसे हजरत आदम जन्नत से लेकर आये | बाद में इस पत्थर को काबा शरीफ बनाते वक्त हजरत इब्राहिम ने तवाफ करने की निशानी के बतौर दिवार में लगा दिया |
काबा शरीफ की दक्षिण दीवार के कोने में लगा ये मुक़द्दस पत्थर हजारों साल से आज भी हज और उमरा करने की निशानी की जगह हैं | इसी पत्थर के पास से काबा शरीफ का तवाफ़ शुरू और ख़त्म होता हैं | शुरू में इस पत्थर का नाप एक फीट के करीब था लेकिन प्यारे नबी के 300 साल बाद एक काफिर हमलावर ने जिसका नाम अबू ताहिर क़र्मोती था , हजरे अस्वद को निकाल कर अपने साथ ले गया और इसके टुकड़े कर दिए |
ये जन्नती पत्थर वर्तमान में एक चांदी के खुबसूरत घेरे के बीच में अढाई फीट गोलाई में आठ टुकड़ों में चस्पा है , इसका सबसे बड़ा टुकडा खजूर के बराबर है | ये जमीन से करीब साढ़े चार फीट उंचाई पर लगा हैं | इसे छूकर और चूमकर अल्लाहु अकबर कहते हुए तवाफ किया जाता है |
एक रिवायत के मुताबिक़ हजरत आदम अलैहिस्सलाम जब जन्नत में थे तब अल्लाह ने उनकी देखरेख के लिए एक फ़रिश्ता मुक़र्रर किया , उसका नाम अस्वद था | ये फ़रिश्ता आपको फल खाने से रोकता | एक दिन फ़रिश्ता गाफिल हुआ तो शैतान के बहकावे में आकर आदम ने फल खा लिया अल्लाह के गजब से अस्वद डर के मारे पत्थर बन गया | इसके बाद हजरत आदम दुनिया में तशरीफ़ लाये तो हजरे अस्वद को भी अपने साथ ले आये |
हजरे अस्वद को काबा शरीफ बनाते वक्त दक्षिणी कोने की दिवार में लगा दिया |
इस जन्नती पत्थर से निकलने वाली रौशनी जहाँ तक पहुंची उसे काबा शरीफ का हरम (बार्डर) मान लिया | काबा शरीफ का तवाफ इसी हजरे अस्वद के पास से अल्लाहु अकबर कहते हुए शुरू होता है | हज या उमरा करते वक्त इसे सीधे हाथ से छूते और चुमते है |
अगर भीड़ ज्यादा होने से इसके करीब जाना मुमकिन ना हो सके तो दूर से ही सीधा हाथ इस तरह करे कि मानो अस्वद को छू रहे हो | ऐसा करने से सुन्नत भी अदा हो जाती है | जो भी अल्लाह का घर यानी काबा शरीफ देखता है उसके सारे गुनाह माफ़ हो जाते है यही वो गुनाह खेचने वाला पत्थर है | ये पत्थर इंसानों के गुनाहों को खेंच लेता हैं यानी ये गुनाहों को खेंचने वाला चुम्बक है | इंसानी गुनाहों को खेंचने की वजह से ये काला पड़ गया |
ये जन्नती याकुत क़यामत के दिन मैदाने हश्र में दौबारा अपने असली रूप यानी फ़रिश्ते की शक्ल में आकर अल्लाह को उसके चूमने वाले की गवाही देगा कि या अल्लाह तेरे वादे के मुताबिक़ इस बंदे के गुनाह मुझे चुमते ही माफ़ कर दिए गए थे | इसे बख्श दे |
हजरे अस्वद शुरू में बहुत ही सफ़ेद था | उसकी रौशनी अल्लाह ने ख़त्म कर दी अगर उसकी रौशनी कायम होती तो ये जन्नती पत्थर पूरब और पश्चिम को जगमगाते |
इस पत्थर को प्यारे नबी ने नबूवत से पहले 606 इसवी में अपने मुबारक हाथों से काबा शरीफ में लगाया और चूमा था | जब कुरेश के ज़माने में काबा शरीफ की दौबारा तामीर हुई थी |
हदीस शरीफ है कि हजरे अस्वद को चुमते ही गुनाह माफ़ हो जाते है | अगर हजरे अस्वद को जाहिलियत की गंदगियाँ नहीं लगी होती तो उसे कोई भी बीमार छूता तो वोह ठीक हो जाता और धरती पर इसके सिवाय जन्नत कि कोई चीज़ नहीं है | ये जन्नती पत्थर दूध से भी ज्यादा सफ़ेद था हम गुनहगारों के चूमने से धीरे-धीरे गुनाहों की वजह से काला पड़ गया | ये जन्नत से आने वाला दुनिया में पहला पत्थर है दुसरा मकामे इब्राहिम है |
इसे छूना और चूमना प्यारे नबी की सुन्नत भी है और गुनाहों से बख्शीश का जरिया भी |
अल्लाह मुझे और आपको हजरे अस्वद को देखने , छूने और चूमने का मौका अता फरमाए l
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