अक़ीदा इल्मे गैब और उलमा ऐ देवबंद की कलाबाज़िया

नात शरीफ
 शैखुल इस्लाम हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद मदनी मियां अल अशरफी अल जिलानी किछौछा शरीफ़  

बड़े लतीफ़ हैं नाज़ुक से घर में रहते हैं
मेरे  हुज़ूर  मेरी  चश्मे तर में रहते हैं

हमारे  दिल  में हमारे जिगर में रहते हैं
उन्ही का घर है वह अपने घर में रहते हैं

यह वाकिया है लिबास बशर भी धोका है
यह  मुजेज़ा  है लिबासे बशर में रहते हैं

यकीन वाले  कहाँ से चले और  कहाँ पहुंचे
जो अहले शक है अगर में मगर में रहते हैं

खुदा  के नूर को अपनी तरह  समझते हैं
यह कौन लोग है किस के असा में रहते हैं

   जो अख्तर उन के तसव्वुर में सुबह व शाम करें
कहीं  भी  रहते  हूँ  तैबा  नगर  में  रहते  हैं
अक़ीदा इल्मे गैब
 और
उलमा ऐ देवबंद की कलाबाज़िया
आदरणीय पाठकों! आप की खिदमत में अपना एक और लेख पैश कर रहा हूँ जो कि इल्मे गैब (अनदेखी ज्ञान) जैसे महत्वपूर्ण मुद्दा से संबंधित है | अलहम्दु लिल्लाह हमारा विश्वास इस मुद्दा पर बिलकुल स्पष्ट और साफ़ एवं पारदर्शी है जो पुस्तकें विद्वान ए अहले सुन्नत में सूचीबद्ध है जैसे खालिसुल इतक़ाद, अम्बाअल मुस्तफ़ा, जाअल हक़, तौज़ीहुल बयान, मुकामे विलायत व नुबुवत आदि  क्यूंकि आज मेरे लेख का विषय अक़ीदा इल्मे गैब (अनदेखी ज्ञान) एवं विद्वान ए देवबंद की कलाबाजियूँ से संबंधित है इसलिए लेख़क मात्र अनदेखी ज्ञान एवं विद्वान ए देवबंद ही का चर्चा करेगा इसलिए जिन साहब को हमारे अक़ीदा से संबंधित विवरण देखनी हो उपरोक्त पुस्तकों से संपर्क करें |
आदरणीय पाठकों! इस लेख को पढ़ने के पश्चात आप को ज्ञान हो जायेगा कि खुदा साख्ता (अल्लाह का बनाया हुवा) अकीदा में और खुद साख्ता (स्वयंभू/ अपना बनाया हुवा) में कितना अंतर होता है (मतलब कि खुदा के बयान किये अकीदे में विरोधाभास नहीं होता जब कि अंग्रेजों के कहने पर इख़्तियार किये गये अकीदा में कितना मतभेद एवं विरोधाभास है) कोई देवबंदी मौलवी कुछ कहता है और कोई कुछ, एक मौलवी साहब किसी चीज़ को जरुरी क़रार देते हैं दोसरे इसी को शिर्क, एक किसी चीज़ का इक़रार करते हैं दोसरे साहब इसी को सख्त अपमानित करार दे कर विरोध करते हैं, एक मौलवी साहब जिस अकीदा का इज़हार करते हैं तो दोसरे मौलवी साहब इसी को नुसूसे कतईया (ग्रंथों के आधारित) के विरोध क़रार देते हैं | मतलब हर तरफ़ एक अलग ही अनुसंधान, एक अलग ही संसार वोह संसार जो अंग्रेजों के कहने पर बनाई गई जिसका शिकार कई मुस्लमान हुए और आज अपने आपको देवबंदी करार देते हैं अल्लाह तआल़ा की तौफीक़ से फ़कीर खादिम मसलके हक़ अहले सुन्नत व जमाअत शाने रज़ा मुहम्मदी क़ादरी शोध पसंदीदा देवबंदी पाठकों की सेवा में अपना लेख प्रस्तुत करता हूँ और उनको चिंतित निमंत्रण देता हूँ है कि जिस मज़हब के विद्वान का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा में इस क़दर गंभीर मतभेद हो तो वह मज़हब, शैतानी मज़हब हो सकते है रहमानी नहीं | अल्लाह तआला मुझे हक बयान करने और पाठकों को हक़ पढ़ कर इसे कुबूल करने की तौफ़ीक अता फरमाये आमीन |

अकीदा इल्मे गैब
 में
इनकारी हज़राते देवबंदी
आदरणीय पाठकों! इस शीर्षक के तहत उन देवबंदी विद्वान के हवाला ए जात उल्लेख किये जायेंगे जो कि हजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम व दीगर अम्बिया अलिहिमुस्सलाम के लिए इल्मे गैब साबित करने के विरोध हैं और जो साबित करे उसके अकीदा को शिर्क, ईसाईयों से मुशाबहतनुसूस कतईया का खिलाफ क़रार देते हैं| इन में शीर्ष तो मौलवी इस्माइल देहलवी साहब की व्यक्तिगत है जिन्होंने ने अपनी अनथक प्रयासों से अपनी सरकार अंग्रेज़ के कहने पर तक्वीयतुल इमानलिख कर उपमहाद्वीप में प्रलोभन का बीज़ बोया जो ऐसा खिला कि वहाबी देवबंदी संगठन अस्तित्व में आया | यह वही पुस्तक है जिस के संबन्धित देवबंदी मज़हब के ही विश्वसनीय विद्वान अनवर शाह काश्मीरी ने कहा की इसी पुस्तक तक्वीयतुल इमानके वजह से मुसलमानों में बहुत झगड़ें हुये जमात अहले सुन्नत दो धड़ों में वितरण हो गई (मुलाहज़ं मल्फूज़ाते मुहद्दिस काश्मीरी पेज २०५) खेर यह तो एक पक्ष की बात थी अब आता हूँ अपनी बात की तरफ़ |
1. मौलवी इस्माइल देहलवी ने जहाँ अपनी पुस्तक में दीगर कई गुस्ताखियाँ की वही उसने यह भी कहा है कि क्यूंकि गैब की बात अल्लाह ही जनता है रसूल को क्या ख़बर तक्वीयतुल इमान पेज १३० इस पाठ में वहाबीयूँ के इमाम मौलवी इस्माइल देहलवी ने तमाम रसूलों से गैब की ख़बर की इनकार की है जिस से यह पता चला कि इस्माइल साहब अम्बिया के लिए अखबारे अलल्गैब, अम्बा इ अलल्गैब का अकीदा भी न रखते थे|
2. मौलवी रशीद अहमद गंगोही जिन को देवबंदी गौसे आज़म के उपनाम से याद करते हैं वोह अपनी पुस्तक मसला दर इल्म गैबे रसूलल्लाह के पेज १५४पर लिखते हैं कि पस इस में हर चहार मज़ाहिब व जुमला उलमा ऐ मुत्तफ़िक़ (सहमत) हैं कि अम्बिया अलैहिमुस्सलाम गैब पर मुत्तला (सूचित) नहीं होतेगंगोही साहब की इस पाठ का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट है कि अम्बिया अलैहिमुस्सलाम गैब पर मुत्तला (सूचित) नहीं होते (मुआज़ल्ला) जिस से पता चला कि गंगोही साहब अम्बिया के लिए इत्तला अललगैब (गैब की ख़बर) के इनकारी है और अजीब व गरीब बात कि इस पर आम सहमति से नक़ल करते हैं |
3. देवबंदी मज़हब में इमामका दर्जा रखने वाले मशहूर देवबंदी मौलवी सरफ़राज़ सफ़दर साहब अपनी पुस्तक तन्कीदे मतीन पेज १६३ पर हजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अता ई इल्मे (प्रदान अनदेखी ज्ञान) गैब की विरोध करते हुवे लिखते हैं कि गर्ज़ कि ला आलमुल गैब अल आयह से हजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए इल्मे गैब की नफी (ना होना) कतअन (बिलकुल) और यकीनन साबित है और इस आयत से नफी इल्मे गैब पर सनद लाना मंसूस व बा महल है और इल्मे गैब अताई ही की नफी मुराद मुता यन है इसमें रत्ती बराबर शक व शुबा नहींमुआज़ल्लाह
 देवबंदी के इमाम सरफ़राज़ साहब की पाठ का स्पष्ट अर्थ हर पाठक समझ सकता है कि सरफ़राज़ साहब के नज़दीक हजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए अनुदान अनदेखी ज्ञान की इनकारी कतअन (बिलकुल) और यक़ीनन साबित है इसमें जर्रा बराबर भी गुंजाइश नहीं क्यूंकि यह मुद्दा (अनुदान अनदेखी ज्ञान की इनकारी) कुरान पाक की पाठ से साबित है | मुआज़ल्लाह |
4. देवबंदी मज़हब के मौजूदा दौर के इख्लाकियात से पैदल मुनाज़िरे देवबंदी मौलवी अबू अय्यूब (नाम निहाद) कादरी साहब अपने एक लेख (जो कि नाम निहाद "राहे सुन्नत" नामी रिसाला में दो भागों में प्रकाशित हुवी) की पहला भाग में लिखते हैं कि  "बरादराने अहले सुन्नत वाल जमाअत ! नबी ए सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद गरामी है  "لتتبعن سنن من قبلکم"  (बुखारी शरीफ भाग १ पेज ४९१) यानी तुम जरूर बिलजरूर पहले लोगों की तकलीद करोगे इस इरशादे गरामी के मुवाफिक हुवा कि लोगों ने अपने अकीदे में यहूद व नसारा की तकलीद की" फिर चंद इतिकाद का ज़िक्र करते हुवे मोसूफ़ लिखते हैं कि
"तो बरेलवी हज़रात ने इसके मुकाबले में (यानी इसाई अकीदे के मुकाबले में उनकी इत्तिबा करते हुवे मुआज़ल्लाह : द्वारा नाकिल) एक बात इल्मे गैब निकाली यानी अल्लाह तआला ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इल्मे गैब अता फ़रमाया है" (रहे सुन्नत शुमारा ६ पेज २६)
गोया मौलवी अबू अय्यूब के नज़दीक अताई इल्मे गैब मानना इसाईयूँ की इत्तिबा (अनुसरण करना) है और उनके अकीदे को अपनाना जो दीने ईस्वी में अपनी तरफ से अभिनव थी मुआज़ल्लाह | हालाँकि खुद देवबंदी विद्वान अनुदान अनदेखी ज्ञान के सहमती हैं
५. देवबंदी मज़हब के मुतकल्लिमे इस्लाम मौलवी इल्यास घम्मन साहब के कलाम को भी पढ़ते जाएये कि इन साहब ने अपनी किताब में क्या गुल खिलाये हैं | मौलवी इल्यास घम्मन साहब अपनी किताब "फ़िर्का बरेलीवियत पाक व हिन्द का तहकीकी जायेज़ा" में इल्मे गैब के हवाले लिखते हैं कि "अम्बिया अलैहिमुस्सलाम पर गैब का इज़हार व इत्तिला होती है गैब की अता नहीं, अल्लाह ब ना शिरकत गैर इत्तिला द हंदा गैब है | इसके बता ने और ज़ाहिर करने से किसी को गैब की इत्तिला होती है | कुरान करीम ने तालीमे गैब को इज़हार गैब और इत्तिला गैब के उन्वान से ताबीर किया | इल्मे गैब से नहीं, क्यूंकि इल्मे गैब खास्सा ए ख़ुदा वंदी है जिस में उसका कोई शरीक व सहीम नहीं" (फ़िरका बरेलीवियत पाक व हिन्द का तह कीकी जायेज़ा पेज २३२)
आदरणीय पाठकों! घम्मन साहब कि पाठ का परिणाम यह है कि इम्बिया अलैहिस्सलाम पर इत्तिला अललगैब या इज़हार अलल्गैब होती है इसको इल्मे गैब नहीं कह सकते क्यूंकि "इल्मे गैब" अल्लाह के लिए खास्सा है जो अल्ला के इलावा किसी के लिए हासिल नहीं, ना ज़ाती तौर पर ना ही अताइ तौर पर | मुआज़ल्ल्ला
इसकी वजह भी घम्मन साहब ने उसी पेज पर बयान कर दी है कि " दर अस्ल इल्मे गैब का मतलब यही है कि इसके होते हुए भूमि एवं आकाश का कोई ज़र्रा उसकी कोई चीज़ भी किसी भी समय छुपी ना रहे यही अर्थ क़ुरान व सुन्नत से साबित है" मतलब बिलकुल स्पष्ठ है कि घम्मन साहब बताना यह चाह रहा है कि अगर किसी के लिए इल्मे गैब का अकीदा माना जाये चाहे अनुदान ही क्यूँ ना हो इस से लाजिम यह आता है उस शख्स के लिए भूमि एवं आकाश का कोई ज़र्रा उसकी कोई चीज़ भी किसी भी वक़्त छुपी नहीं होती बल्कि वोह उसे देख रहा है और यह देवबंदी के नज़दीक शिर्क है लिहाज़ा वह निजी तौर पर इल्मे गैब मानते हैं ना अनुदान के तौर पर क्यूंकि बकौल घम्मन साहब के कि इल्मे गैब का यही अर्थ क़ुरान व सुन्नत से साबित है"
लतीफा: घम्मन साहब ने अपनी इस पाठ में हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए इत्तिला गैब मान कर अपने कुतुबुल इरशाद व गौसे आज़म मौलवी रशीद अहमद गंगोई साहब की बात का रद्द कर दिया है क्यूंकि गंगोही साहब के नज़दीक इस बात पर सब सहमत है कि अम्बिया को गैब पर सूचित नहीं होती अब देवबंदी ही इस मुद्दे को समाधान करें कि गंगोही साहब के नज़दीक तो घम्मन साहब हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए इत्तिला गैब का अक़ीदा मान कर सब सहमती का विरोधी ठहरे और घम्मन साहब के नज़दीक गंगोही साहब इत्तिला गैब का अक़ीदा ना मान कर कुरान के विरोधी कहलाये अब देवबंदी अपने किस मौलवी को बचाते हैं यह उनकी मर्ज़ी है |
आदरणीय पाठकों! निहायत इख्तिसार में ने सिर्फ पांच दिग्गज विद्वान की लेख प्रुस्तुत की हैं जिनका खुलासा यह है कि "अम्बिया को अनदेखी ज्ञान की कोई सूचना नहीं" अम्बिया अनदेखी ज्ञान पर सूचित नहीं होते, हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए अनदेखी ज्ञान साबित करना कुफ्र व शिर्क है चाहे वोह अनुदान ही क्यूँ ना हो क्यूंकि कुरान में "ला अअलिमुलगैब" के शब्द आये हैं और इससे मुराद अनुदानित ज्ञान का इंकार करना है और इसमें किसी क़िस्म का कोई शक व शुबा नहीं यह आयत अनुदानित अनदेखी ज्ञान की इनकारी में निर्धारित है (मतलब कोई दोसरा संभावना है ही नहीं) जो इल्मे गैब साबित करे वोह इस आयत का विरोधी हो कर काफ़िर ठहरे फिर अनुदानित अनदेखी ज्ञान का मुद्दा को इसाई पादरीयूँ की इत्तिबा में बनाया गया है गोया यह उनकी तकलीद हुवी |
आदरणीय पाठकों! यह तो था चित्र का पहला मोड़ अब ज़रा चित्र का दूसरा मोड़  अन्य देवबंदी मज़हब के दिग्गज विद्वान के कलम से पढ़िये |

दिल  के  फफोले जल  उठे सीने के दाग से
इस घर को आग लग गयी घर के चिराज़ से

गैरल्लाह (अल्लाह के सिवा) के लिए इल्मे गैब का
साबित करने वाले विद्वान देवबंद
आदरणीय पाठकों! सब से पहले में जिन साहब का हवाला उल्लेख कर रहा हूँ वह देवबंदी मज़हब में निहायत ही आला मुकाम रखते हैं जिनको देवबंदी हकीमुल उम्मत कहते हैं यानी मौलवी अशरफअली थानवी साहब|
मौलवी अशरफ अली थानवी साहब अपने रिसाले हिफजुल ईमान के पेज नंबर १३ पर लिखते हैं कि " फिर यह कि आप कि ज़ात मुक़द्दसा पर इल्मे गैब का हुक्म किया जाना अगर बक़ौल ज़ैद सही हो तो दरयाफ्त तलब अम्र यह है कि इस गैब से मुराद बअज़ गैब है या कुल गैब, अगर बअज़ उलूमे गैबिया मुराद हैं तो इस में हुजुर ही कि क्या तख्सीस है, ऐसा इल्म गैब तो ज़ैद व उमर बल्कि हर सबी (बच्चा) व मजनून (पागल) बल्कि जमी ऐ हैवानात (तमाम जानवरों) व बहाइम के लिए भी हासिल है " मौआज़ल्ला
आदरणीय पाठकों! मौलवी अशरफ अली थानवी कि पाठ में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की सराहतन तौहीन साबित है कि मौलवी अशरफ अली थानवी ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के ज्ञान को जानवारूं पागलूं से तशबीह (मेच करना) दी है जो निस्संदेह रसूलाल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की अपमान है यही कि उस समय के विद्वान ए अरब व अजम (जिनकी तादाद २६८ से भी अधीक हैं) ने मौलवी अशरफ अली थानवी की तकफीर की चूंकि मेरा विषय इस समय इल्म गैब से सम्बंधित है इस लिए इस लेख के कुफ़्र होने पर तफ्सीली बहस नहीं कर रहा, इस लेख का रद्द खुद देवबंदी कलम से पढ़ने के लिए आप हमारी वेब साईट (www.deobandimazhab.com) पर मौजूदा निबन्ध " मौलवी अशरफ अली थानवी कि गुस्ताखाना इबारत उलमाए देवबंद कि नज़र में" पढ़ सकते हैं |
खैर यह तो एक ओर बात थी अब चलिए विषय से संबंधित बहस की तरफ आदरणीय पाठकों आप ने अगर इस लेख को बगौर पढ़ा होगा तो आप इक दम हैरान रह गये होंगे कि देवबंदी मज़हब के विद्वान जब इल्म गैब के इंकार पर आयें तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम तक के लिए मुत्लकन इल्म गैब का इनकार कर दें ना सिर्फ इनकार बल्कि इस अक़ीदा इस्लामिया के शिर्क देने से भी ना चुंके मगर जब अपनी किसी गलत गलत विचार को सही साबित कर ने के लिए लिखने पर आयें तो जानवारूं पागलूं और बच्चों तक के लिए इल्म गैब मान लें | मेरी इस बात की समर्थन पर थानवी साहब का आखरी जुमला दलालत कर रहा है कि " ऐसा इल्म गैब तो ज़ैद व उमर बल्कि हर सबी (बच्चा) व मजनून (पागल) बल्कि जमी ऐ हैवानात व बहा इम के लिए भी हासिल है " मौअज़ल्ला
इस लेख में थानवी जी ने खुल्लम खुल्ला जानवारूं पागलूं के लिए इल्म गैब माना है |
लतीफ़ा: अब यह तो देवबंदी ज्ञानी ही बता सकते हैं कि थानवी साहब उन जानवारूं के लिए निजी इल्मे गैब मानते हैं या अनुदानित ? क्यूंकि अगर निजी मानते हैं तो उसका कुफ्र होना बिलकुल स्पष्ट है और अगर अनुदानित मानते हैं तो भी जान नहीं छूटती क्यूंकि पीछे ज़िक्र किया जा चुका है कि सरफ़राज़ साहब ने "لااعلم الغیب" आयत को अताई इल्मे गैब की नफ़ी पर कतई क़रार दिया है और नस्से कुरानी का इनकार बिल इत्तिफ़ाक कुफ्र | लिहाज़ा थानवी साहब को बचने के लिए अताई इल्मे गैब की शब्दी बचाओ घिरना भी देव्बंदियूँ  को लाभ दायक  बिलकुल नहीं होगा क्यूंकि यह वही शब्द  है जिसे देवबन्दियूँ  ने नस्से कुरानी के खिलाफ और इसाईयूँ की तक़लीद कहा आदि |
आदरणीय पाठकों! यह वह हड्डी है जिसे ना उगलते बात बनती है ना नगलते बात बनती है अलहम्दु लिल्लाह यह है नतीजा इहानते (अपमान) मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का जो हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की गुस्ताखी करे इस पर दुनिया कैसे तंग हो जाती है इसकी वाज़ह मिसाल आपके सामने है कि थानवी साहब का मुस्लमान होना खुद देवबंदी सिद्धांतों के खिलाफ है |
२. मौलवी मुर्तजा हुसैन साहब चांदपुरी के कलम से सुबूते इल्मे गैब :
मौलवी मुर्तजा हुसैन साहब अपनी पुस्तक "तौजीहुल ब्यान फी हिफ्ज़ुलईमान" मैं मौलवी अशरफ अली थानवी की इस लेख का रक्षा करते हुवे लिखते हैं कि "हिफ्ज़ुलईमान" में इस अम्र (आदेश) को तस्लीम किया गया है कि सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को इल्मे गैब ब अताए इलाही हासिल है"
(तौजीहुल ब्यान फी हिफ्ज़ुलईमान पेज़ ५)
इसी तरह पेज़ १३ पर लिखते हैं कि "साहिबे" हिफ्ज़ुलईमान का मुद्दा तो यह है कि सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को बावजूदे इल्मे गैब अताई होने के आलिमुल गैब कहना जायज़ नहीं"
अल्हम्दुलिल्लाह इसे कहते हैं कि हक़ बात वह जिसकी गवाही दुश्मन भी दे | मौलवी मुर्तजा हुसैन चांदपुरी साहब की पाठ से साबित हो गया कि मौलवी अशरफ अली थानवी और खुद मोसूफ़ चांदपुरी का अक़ीदा भी यह है कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम अताई तौर पर इल्मे गैब जानते हैं |
लतीफ़ा: आदरणीय पाठकों अगर हम अहले सुन्नत व जमात हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के लिए इल्मे गैब का अताई अक़ीदा रखें तो देवबंदी मौलवी हज़रात तक्फीरे मुसलमीन के मशीन चलाते हुए एक ही झटके में सब को काफ़िर और मुशरिक क़रार दे कर इसाई पादरियुं के मुक़ल्लिद करार दें | निस्से कुरानी के मुनकर तक कहने से बाज़ ना आयें अब जब खुद देवबंदी मज़हब के मुनाजिर जिस की सारी ज़िन्दगी उलमाए देवबंद की गुस्ताखाना पाठ का रक्षा करते करते गुजरी वो कहैं कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम अताई तोर पर इल्मे गैब जानते थे फिर भी उनकी मुसलमानी पर फर्क ना आये और ना ही उनके तरफ़ से कोई फतवा लगाया जाये | इस से यह भी पता चला कि देवबंदी मज़हब के मौलवी हज़रात में जर्रा भर भी लिल्लाहियत नहीं | उनका हम अहले सुन्नत व जमात को काफ़िर व मुशरिक कहना इस्लाम कि जमीअत व सालिमियत को नुकसान पहुंचाना है | अल्लाह हिदायत अता फरमाये आमीन |
आदरणीय पाठकों! देवबंदी उलमा के कलम से इल्म गैब के इस्बात पर मजीद हवाले पेश किये जा सकते हैं मगर क़स्दन तर्क कर रहा हूँ कि जिसने मानना है उस के लिए इतना ही काफी है और जिसको नहीं मानना है उसके लिए सुबूतों का ढेड़ भी बे फाइदह है | बाकी आज तक जितने भी देवबंदी मौलवी हिफ्ज़ुल इमान को सही समझते आये हैं और समझ रहे हैं वोह भी गोया कि इताई इल्मे गैब के मानने वाले हैं |
मुद्दा इल्मे गैब में इख्तिलाफ ख़त्म हो सकता है
देवबंदी मज़हब में इमाम का दर्जा रखने वाले देवबंदी मौलवी सरफ़राज़ खान सफ़दर साहब अपने किताब "अजालतुर रैब" के पेज ४५३ पर लिखते हैं कि " बाकी हज़रात फुक्हाए कराम में से जिन्होंने तकफीर नहीं की तो उनकी इबारत का मफाद भी सिर्फ यही है कि अगर कोई शख्श बअज़ इल्मे गैब का अक़ीदा रखता हो तो वोह काफ़िर ना होगा"
आदरणीय पाठकों! अलहम्दुलिल्लाह अक़ीदा अहले सुन्नत व जमात की ताईद देवबंदी मज़हब के बहुत बड़े इमाम से हो गयी हम अहले सुन्नत व जमात भी हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का लिए जो इल्मे गैब मानते हैं उसे बअज़ ही जानते हैं तफसील इस इजमाल की यह है कि अल्लाह तअला के असीमित ज्ञान मुकाबले में हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के ज्ञान को वोह तुलना भी नहीं जो समुन्दर के एक कतरे को समुन्दर से होती है क्यूंकि समुन्दर भी असीमित है और कतरा भी जब कि अल्लाह तअला का ज्ञान असीमित और हुज़ूर का ज्ञान सीमित लिहाज़ा हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का ज्ञाने गैब अल्लाह के ज्ञाने गैब के तुलना में बअज़ हुवा जब अल्लाह के बराबर ज्ञान ना मन तो शिर्क भी ना हुवा | अल्हम्दुलिल्लाह अब रही बात इस अक़ीदा की कि हमारे विद्वान  के पुश्तकों में हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के लिए कुल्ली इल्म गैब के अलफ़ाज़ भी हैं तो इससे देवबंदी हज़रात को धोखा में नहीं पड़ना चाहिए बल्कि इस इजमाल की तफसील को जानना चाहिए तो अर्ज़ है कि मखलूक के ऐतबार से हमारा अक़ीदा है कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को अव्वलीन व आखिरीन अता किये गये हैं (जैसा कि मौलवी कासिम नानोतवी देवबंदी ने भी अपनी किताब "तह्जीरुन्नास" में लिखा है) चूँकि कुल मखलूक का ज्ञान हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के ज्ञान के तुलना में ऐसा ही है जैसे समुद्र के तुलना में एक कतरा तो इस रूप से हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का ज्ञान कुल्ली हुवा | यह भी जान लेना चाहिए कि हम ने कभी भी हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के लिए अल्लाह के बराबर इल्म कुल्ली का दावा नहीं किया (विवरण के लिए देखिये पुस्तकें अहले सुन्नत : फ़तवा रजविया, जाअल हक़, तौज़ीहुल बयान, मुकामे विलायत व नुबुवत आदि)
इसलिए देवबंदी हज़रात को इस धोका में नहीं पड़ना चाहिए कि मुआज़ल्ला जब हम सुन्नी कुल्ली इल्म गैब का इस्बात हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के लिए करते हैं तो इससे मुराद जमी ए मालूमाते इलाहिया होती हैं | ऐसा अक़ीदा हरगिज़ हरगिज़ इस्लाम में जाएज़ नहीं है |
अब देवबंदी मज़हब के अनुयायियों से मेरा प्रशन यह है कि अगर हम हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के लिए बअज़ इल्मे गैबे अताई गैर मुस्तकिल का कौल करें तो आप लोग हमें काफ़िर व मुशरिक क़रार देते हैं जबकि आप के मज़हब के निहायत ही मोतबर तरीन आलिम सर्फाराज़ खान सफ़दर साहब बअज़ इल्म गैब के अक़ीदा को हक़ लिख रहे हैं और यह याद रहे कि देवबंदी हज़रात के नजदीक अक़ाइदे कतई ही होते हैं) यानी इनका सुबूत दलीले कतइ (नस्से कतई, खबरे मत्वातिर या इज्माए कतई से होता है) (हवाला: तन्कीदे मतीन, अजालातुर्रैब आदि) खुलासे कलाम यह है कि देवबंदी हज़रात का यह अक़ीदा है कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को बअज़ इल्मे गैब अता किया गया है और यह मुद्दा दलीले कतई से साबित है और जब दलील कतइ का इंकार करने वाला  काफ़िर होता है तो बअज़ इल्मे गैब का इंकार करने वाला भी काफ़िर हुवा |
इसलिए कि आज कल के देवबंदी हज़रात से गुजारिश है कि जब आपके मज़हब के उलमा भी इल्मेगैब को हुजुर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के लिए मान रहे हैं तो उम्मत कि खैर खाही के लिए कुफ्र व शिर्क कि मशीन चला कर मुसलमानों पर कुफ्र कशीद कर ने से परहेज़ करें |
आदरणीय पाठकों! मेरा यह लेख लिखने का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ इस तक्फीरी मुहीम (जो देवबंदी हज़रात की तरफ से हम अहले सुन्नत व जमात के खिलाफ की जा रही है) महर्रकीन को आइना दिखाना है महज़ अपनी दूकान दारी को चमकाने के लिए अक़ीदा इल्म गैब को जान बूझ कर पेचीदा बनाने की कोशिश की जा रही है| चूँकि लेखेक अपने आप को उलूम इस्लामिया का छोटा विद्यार्थी समझता है इस लिए मुमकिन है कि मेरे लिखने में कोई गलती वाकअ हुवी हो इस लिए मैं पहले ही अल्लाह की पनाह में आता हूँ और अपनी हर उस बात को मरदूद समझता हूँ जो क़ुरान व सुन्नत से टकराये | इस लिए अहले इल्म हज़रात इस में कोई गलती मुलाहेज़ा फरमायें तो सूचना फरमा कर धन्यवाद् का मौका फराहम फरमायें | अल्लाह तअला के बारगाहे आलीशान में दस्ता बस्ता दुवा है कि ऐ अल्लाह तू जनता है कि तेरे इस गुनाहगार बन्दे ने यह तहरीर तेरी रिज़ा के लिए लिखी है मेरे इस लिखने में तासीर पैदा फरमा बदमज्हबूं के लिए लिए हक़ कुबूल करने और सुन्नियुं के लिए ईमान कि मजबूती का जरीया बना और मुझ गुनाह गार के हक़ व कफ्फारा सय्यात बना |
آمین بجاہ النبی الکریم
तालिबे दुआ...............................
लेखक: मुहम्मद शान रज़ा अल- हनफ़ी
अनुवादक: आले रसूल अहमद कटिहारी
आला हज़रत की आखरी वसीयत

जिस से अल्लाह व रसूल की शान में अदना तौहीन पाओ फिर वह तुम्हारा कैसा ही प्यारा हो फ़ौरन उससे जुदा हो जाओ जिसको बारगाहे रिसालत में जरा भी गुस्ताखी देखो फिर वोह तुम्हारा कैसा ही मुअज्जम क्यूँ न हो अपने अन्दर से उसे दूध से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दो | मैं ने पौने चोदह साल की उम्र से यही बताता रहा और इस वक़्त फिर यही अर्ज़ करता हूँ अल्लाह जरूर अपने दीन की हिमायत के लिए किसी बन्दे को खड़ा कर देगा मगर नहीं मालूम मेरे बाद जो आए कैसा हो और तुम्हें क्या बताये | इसलिए इन बातों को खूब सुन लो हुज्जतुल्लाह क़ाएम हो चुकी अब में कब्र से उठ कर तुम्हारे पास बताने न आउंगा जिसने इसे सुना और माना क़ियामत के दिन उस के लिए नूर व निज़ात है और जिस ने ना माना उस के लिए ज़ुल्मत व हलाकत |

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