साया का साया ना होता है ना साया नूर का
शैखुल इस्लाम वल मुसलिमीन आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीन व
मिल्लत अल- हाफिज़ अल-कारी मौलाना अश-शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर रहमा बरेली शरीफ
सुबह तैबा
में हुवी बट ता है बाड़ा नूर का
सदका लेने
नूर का, आया है तारा नूर का
मैं गदा तू बादशाह भर दे प्याला नूर का
नूर दिन दूना तेरा दे डाल सदका नूर का
तेरी ही जानिब है पांचों वक़्त सजदा नूर का
रुख है किबला नूर का अबरू है
काबा नार का
तू है साया
नूर का हर अज्व टुकड़ा नूर का
साया का
साया ना होता है ना साया नूर का
तेरी नस्ल पाक में है बच्चा बच्चा नूर
का
तू है ऐने नूर, तेरा सब
घराना नूर का
का
फ़ गेसू हा दहन या अबरू ऑंखें ऐन साद
काफ
हा या ऐ न साद उनका है चेहरा नूर का
ऐ रज़ा यह अह्मद नूरी का फैज़
नूर है
होगई मेरी ग़ज़ल बढ़ कर कसीदा नूर का
(हिदा इक़े बख्शिश भाग २ पृष्ट २४२)
जो अहले शक हैं अगर में मगर में रहते हैं
राईसुल मुहक्क़कीन शैखुल इस्लाम वल
मुसलिमीन हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद मदनी अशरफ अशरफी अल-जिलानी सज्जादा नशीन
हुजुर मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछा शरीफ
बड़े लतीफ़
हैं नाज़ुक से घर में रहते हैं
मेरे हुजूर
मेरी चशमे तर में रहते हैं
हमारे दिल में हमारे जिगर में रहते है
उन्हीं के घर हैं वह अपने घर में रहते हैं
मक़ाम उनका
ना फर्शे जमीं ना अर्शे बरीं
वह अपने
चाहने वालों के घर में रहते हैं
यकीन वाले कहाँ
से चले
कहाँ पहुंचे
जो अहले शक हैं अगर में मगर में रहते हैं
खुदा के
नूर को अपनी तरह समझते हैं
यह कौन लोग
हैं किस के असर में रहते हैं
जो अख्तर
उनके तसव्वुर में सुबह व शाम करें
कहीं भी रहते हूँ तैबा(शरीफ़) नगर
में रहते हैं
(तजल्लियाते
सुखन पृष्ट २८)
नज़र आए ना साये
में भी महबूब का सानी
ख़ुदा ने इसलिए रखा नहीं साया मुहम्मद का
الحمد
للہ رب العالمین والصلوٰۃ والسلام علی سید الانبیاء و المرسلین
اما
بعد فاعوذبااللہ من الشیطان الرجیم بسم اللہ الرحمن
الرحیم
क्या
हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का पवित्र शरीर भी
नूरी था ?
हज़रत
अल्लामा सय्यद अहमद शाह काज़मी अलिहिर्रह्मा "रिसाला मीलादुन्नबी" के
पृष्ठ नम्बर १५ पर फरमाते हैं कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम का शरीर
भी नूर था | इस विषय पर आज कल के नये नये लोंडे, देवबंदिया वहाबी संगठन से संबंध
रखने वाले, बात बात पर शिर्क एवं कुफ्र का फ़तवा दागने वाले, विरोध करते हैं और
अहले सुन्नत व जमात को अभद्र शब्द का निशाना बनाते हैं इस लिए इस मुद्दे का सुबूत
विद्वान अहले सुन्नत के पुस्तक से और खुद देवबंदीयूँ की पुस्तक से प्रस्तुत किया
जा रहा है | इस लेख में कुछ जुमले मुजाहिदे अहले सुन्नत अबू कलीम मुहम्मद सादिक
फ़ानी अलैहिर्रहमा की पुस्तक "आईना अहले सुन्नत" से लिया गया है | अल्लाह
तआला लेखक को करवट करवट जन्नत पर्दान करे और विरोधीयूँ को अल्लाह तआला सत्य कुबूल
करने की तौफीक़ दे आमीन |
अबू कलीम
मुहम्मद सिद्दीक़ फ़ानी साहब मरहूम, अल्लामा अहमद सईद शाह काज़मी अलैहिर्रहमा की उपर
वाली लेख नक़ल करने के बाद फरमाते हैं कि...
"अगर
इस अक़ीदा की बिना पर कि "हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम का शरीर भी
नूर था" आप (विरोधीयूँ) ने अल्लामा काज़मी अलैहिर्रहमा की व्यक्तित्व को अभद्र
शब्द का निशाना बनाया है तो उन विद्वान अहले सुन्नत और देवबंदी विचार धारा के
गुरुऔं के संबंधित भी आदेश जारी करें जिन के भाषण अल्लामा अहमद सईद शाह काज़मी
अलैहिर्रहमा की समर्थन एवं पुष्टि करते हैं ताकि आप की सत्यता एवं वीरता का अनुमान
हो सके की आप सत्य बात कहने में किस क़दर बे बाक हैं |
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वह क़त्ल भी
करते हैं तो चर्चा नहीं होता
१.
इमामुल
हदीस हज़रत हकीम तिर्मज़ी रहमतुल्ला हि अलैह अपनी पुश्तक "नवादिरुल उसूल"
में हज़रत ज़क्वान रदिअल्लाहु अन्ह से यह हदीस रवायत करते हैं:
عن ذکوان ان رسول اللہ ﷺ
لم یریٰ لہ ظل فی شمس ولاقمر
(المواھب اللدنیۃ علی
الشمائل المحمدیۃ مطبوعہ مصر30)
अनुवाद: सरकारे
दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का छाया ना सूरज की धूप में नज़र आता था ना चाँद की चाँदनी में| (हवाला :अल मवाहिबुल लदुन्या अलश शमाइलिल मुहम्मदिया
प्रकाशित मिस्र पृष्ट ३०)
२.
हजरत
अब्दुल्लाह बिन मुबारक और हाफिज़ इब्ने जौज़ी रहमतुल्ला हि अलैह हज़रत इब्ने अब्बास
रदिअल्लाहु अन्हुमा से रिवायत करते हैं :
لم یکن لرسول اللہ ﷺ ظل و
لم لقم مع شمس الا غلب ضوءہ ضوءھا
ولا مع السراج الاغلب
ضوءہ ضوءہ
(الخصائص الکبری
،ج1ص28-زرقانی علی المواھب ،ج4ص220-جمع الوسائل للقاری،ج1ص174)
अनुवाद:
सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के जिस्म मुबारक का
छाया नहीं था ना सूरज की धुप में ना चिराग की रौशनी में, सरकार का नूर सूरज और
चिराग के नूर पर ग़ालिब रहता था|) खसा
ऐ से कुबरा भाग १ पृष्ठ २८)
३.
इमाम
रागिब अस्फहानी (मृत्यु ४५० हिज्री) रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं|
روی ان النبی صلی اللہ
علیہ و سلم کان اذا مشی لم یکن لہ ظل (المعروف
الراعد)
अनुवाद: रिवायत की गयी कि जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि
व आलिही व अस हाबिही व सल्लम चलते तो आप का छाया ना होता था |
(अल
मारूफुल राअद)
४.
इमाम
नस्फी (मृत्यु ७१० हिज्री) तफसीरे "मदारिक शरीफ" में हज़रत उस्मान रदिअल्लाहु
अन्ह से यह हदीस नक़ल फ़रमाते हैं :
قال عثمان رضی اللہ تعالی
عنہ ان اللہ ما اوضع ضلک علی الارض
لئلا یضع انسان قدمہ علی
ذلک الظل
(المدارک شریف
ج2ص103-مدارج النبوۃ ج2ص161)
अनुवाद:
हज़रत उस्मान गनी रदिअल्लाहु अन्ह ने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ किया कि खुदा जल
जलालहु ने आप का छाया जमीन पर पड़ने नहीं दिया ताकि इस पर
किसी इंसान का कदम ना पड़ जाये |
(मदारिक शरीफ भाग २
पृष्ठ २८ मत्बूआ क़दीम
एवं
मदारीजुन नबुवा भाग २ पृष्ट १६१)
५.
इमाम
जलाल उद्दीन सियूती अश शाफ़ई (मृत्यु ९११हिज्री) फरमाते हैं:
لم یقع ظلہ علی الارض
ولایری لہ ضل فی شمس ولا قمر
قال ابن سبع لانہ کان
نورا قال رزین فعلبہ انوارہ
(انموزج اللبیب)
अनुवाद:
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम जाने नूर का साया ज़मीन पर
नहीं पड़ता था और ना सूरज चाँद के रौशनी में छाया आता था | इब्ने सुब अ इसकी वजह
बयान करते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम नूर थे |
रजीन ने कहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का नूर सब पर
ग़ालिब था |
(अन्मूज़जुल
लबीब )
६.
इमामुल
ज़मान क़ाज़ी एयाज़ रहमतुल्ला हि अलैह (मृत्यु ८४४ हिज्री) फरमाते हैं :
وما ذکر من انہ لا ظل
لشخصہ فی شمس ولا فی قمر
لانہ کان نورا وان الذباب
کان لا یقع علی جسدہ ولا ثیابہ
(شفاء قاضی عیاض ج1ص342ق343)
अनुवाद:
यह जो बता या गया है कि सूरज और चाँद की रौशनी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही
व अस हाबिही व सल्लम पवित्र शरीर का छाया नहीं पड़ता था और आप सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम
के शरीर और लिबास (वस्त्र) पर मख्खी नहीं बैठती थी तो इसकी वजह यह कि हुज़ूर
सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम नूर थे |
(शिफ़ा क़ाज़ी एयाज़ भाग १ पृष्ट ३४२-३४३)
७.
अल्लामा
इब्ने हजर मक्की रहमतुल्ला हिअलैह (मृत्यु ९७३ हिज्री) फरमाते हैं :
ومما یوید انہ ﷺ صار نورا انہ اذا مشی
فی الشمس اوالقمر لا یظہر لہ ظل
لانہ لا یظہر الا لکثیف وھو صلی اللہ علیہ وسلم
قد خلصہ اللہ تعالی من سائر الکثافات الجسمانیۃ
و صیرہ نورا صرفا لا یظھر لہ ظل اصلا (افضل
القریٰ ص76)
अनुवाद:
हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम पाबन्दी के साथ यह दुआ फरमाते थे कि ईलाही
मेरे तमाम इन्द्रियों एवं अंगें सारे शरीर को नूर कर दे और इस दुआ से लक्ष्य यह
नहीं कि नूर होना अभी हासिल ना था कि इसका अधिग्रहण माँगते थे बल्कि यह दुआ इस बात
के प्रकट करने के लिए थे कि हकीक़त में हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम का
तमाम का शरीर नूर था और यह कृपा अल्लाह तआला ने हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम पर
कर दिया जैसा कि हमें हुक्म हुवा कि सुरह बकरा शरीफ के अंत की प्रार्थना करें वोह
भी इस गुणवत्ता के प्रकट अल्लाह त आला के कृपा के है और हुजुर अलैहिस्सलातु व सलाम
के मात्र नूर हो जाने की पुष्टि इससे होती है कि धूप या चाँदनी में हुजुर का छाया
पैदा न होता | इसलिए कि छाया तो क्सीफ (गढ़ा) होता है और हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व
आलिहि व सल्लम को अल्लाह त आल़ा ने तमाम शारीरिक कसाफ़तों से शुद्ध करके सरापा नूर
कर दिया लिहाज़ा हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के लिए छाया असलन न था |
(अफ्ज़लुल
क़ र उल कुर्रा उम्मुल कुर्रा शरह उम्मुल कुर्रा शरह नम्बर २ पृष्ठ १२८,१२९, भाग प्रथम प्रकाशित अबू ज़हबी)
८.
अल्लामा
शहाब उद्दीन खुफ्फाजी रहमतुल्ला हि अलैह कविता में फरमाते हैं :
ماجربظل احمد اخریال
فی
الارض کرامۃ کما قد قالوا
ھذا عجب ولم بہ من عجب والناس بظلۃ
جمعیا
قالوا
وقد نطق القران بانہ النور المبین وکونہ بشرا لا
ینافیہ
(نسم الریاض ج3ص319مصری)
अनुवाद: सम्मान
एवं श्रद्धेय के कारण हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के छाया
(साया) जिस्म के दामन जमीन पर रगड़ता हुवा नहीं चलता था हालाँकि हुज़ूर ही का साया ए
करम में सरे इन्सान चैन की नींद सोते हैं इस से हैरत अंगेज़ बात और क्या हो सकती है|
इस बात की गवाही के लिए कुरान करीम की यह गवाही काफी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि
व आलिही व अस हाबिही व सल्लम मुबीन हैं और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस
हाबिही व सल्लम का छाया ना होना बशर होने के मनाफ़ी नहीं है |
(नसीमुर
रियाज़ भाग ३ पृष्ट ३१९ मिस्री)
९.
इमाम
अहमद कुस्तुलानी फरमाते हैं :
قال لم یکن لہ ﷺ ظل فی شمس ولا قمر
رواہ الترمذی عن ابن ذکوان و قال ابن سبع کان صلی اللہ علیہ وسلم
نورا فکان اذا مشی فی شمس اوالقمر لا
یظھر لہ ضل (مواھب اللدنیۃ ج1ص180-رزقانی ج4ص220)
अनुवाद:
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के जिस्मे अतहर का साया ना
सूरज की रौशनी में पड़ता था ना चाँद की चाँदनी में |
(मवाहिबुल लदुन्या भाग १ पृष्ट १८० –
ज़ुर्कानी भाग ४ पृष्ट २२०)
१०.
अल्लामा
हुसैन इब्ने मुहम्मद दियार फरमाते हैं :
لم یقع ظلہ علی الارض ولا یری ضل فی
شمس ولاقمر (کتاب الخمیس ،النوع الرابع)
अनुवाद:
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के पवित्र शारीर का छाया ना
सूरज की रौशनी में की रौशनी में पड़ता था ना चाँद की चाँदनी में |
(किताबुल
खमीस)
११.
अल्लामा
सुलेमान जुमल रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं :
لم یکن لہ صلی اللہ علیہ وسلم ضل یظھر
فی الشمس ولاقمر (ازحیات احمدیہ شرح ھمزیہ ص5)
अनुवाद:
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का पवित्र शारीर का छाया ना
सूरज की रौशनी में पड़ता था ना चाँद की चाँदनी में |
(हयाते अहमदिया शरह हम्ज़िया पृष्ट ५)
१२.
इमामे
रब्बानी मुजद्दिद अल्फ ए सानी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं:
او صلی اللہ علیہ وسلم
سایہ نبوددرعالم شہادت سایہ ہر شخص ازشخص لطیف تراست چوں لطیف ترازدے
صلی اللہ علیہ وسلم
درعالم نباشد اور سایہ چہ صورت دارد (مکتوبات ج3ص147مطبوعہ نولکشور لکھنو)
अनुवाद:
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का छाया ना था और इसकी वजह यह
है कि आलमे शहादत में हर चीज़ से उसका साया लतीफ़ होता है और सरकार सल्लल्लाहु अलैहि
व आलिही व अस हाबिही व सल्लम की शान यह है
कि कायनात (ब्रह्मांड) में उन से ज्यादह कोई लतीफ़ चीज़ है ही नहीं फिर हुज़ूर का
साया क्यों कर पड़ता |
(मकतूबात भाग ३ पृष्ट १४७ पर्काशित नवल किशोर
लखनऊ)
१३.
साहिबे
"मजम अल बहार " अल्लामा शैख़ मुहम्मद ताहिर रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते
हैं:
من اسماء بہ ﷺ النور قیل من خصاصہ ﷺ
اذامشی فی الشمس والقمر لا یظھر لہ ظل
(زبدہ شرح شفاءمجمع بحارالانوار)
अनुवाद: हुज़ूर
सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम
नामो में से नूर भी एक नाम है और उसकी खुसूसियत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु
अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का साया ना
धुप में और ना चाँदनी में |
(मजमअ
बहारुल अनवार)
१४.
साहिबे
सिरतुल ह ल बिया (मारूफबिह सीरत शामी) फरमाते हैं:
اذا مشی فی الشمس اوالقمر لا یکوں لہ
ظل لانہ کان نورا (المعروف الراعد)
अनुवाद:
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम जब सूरज या चाँद की रौशनी में चलते तो आप का
छाया ना होता इसलिए कि आप नूर थे |
(अल
मारूफुल राअद)
१५.
इमाम
तकीउद्दीन सुबकी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं:
لقد نزہ الرحمن ظلک ان یری علی الارض
ملقیٰ فانطوی لمزیۃ
अनुवाद:
खुदा ए रहमान ने आप के छाया को ज़मीन पर स्थित होने से पाक फरमाया और पाए-माली से
बचने के लिए आप की अज़मत (सम्मान) के कारण इसको लपेट दिया कि दिखाई न दे |
इमाम
शैख़ अहमद मनावी भी यही फरमाते हैं |
१६.
इमामुल
आरिफीन मौलाना जलाल उद्दीन रूमी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं:
چوں فناس از فقر پیرایہ شود
او
محمد دارے بت سایہ شود
(مثنوی معنوی ودفترپنجم)
अनुवाद:
जब फ़क्र की मंजिल में दुर्वेश फ़ना का लिबास पहन लेता है तो मुहम्मद सल्लल्लाहु
अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम की तरह उसका भी साया ज़ा इल (ख़त्म) हो जाता है |
(मसनवी
व मानवी बाब पंजुम)
१७.
हज़रत
अल्लामा बहरुल उलूम लख नवी रहमतुल्ला हि अलैह इस पंकित की
वजाहत फरमाते हैं:
در مصرعہ ثانی اشارہ بہ معجزہ آں سرور
ﷺ است کہ آں سرور نہ می افتاد
अनुवाद: दुसरे
पंकित में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के इस मुअ जज़ा (चमत्कार) की तरफ इशारा है कि
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का छाया नही था |
१८.
इमामुल
मुहद्दीसीन हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ (मृत्यु १२३९ हिज्री) बिन शाह
वाली युल्लाह मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं:
از خصوصیات کہ آں حضرت ﷺ کے بدن
مبارکش دادہ بودند کہ سایہ ایشاں برزمیں نہ می افتاد
(تذکرہ الموتی و القبورص13)
अनवाद:
जो ख़ुसूसियात नबी अक्दास सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के शारीर
मुबारक में अता की गयी उन में से एक यह थी कि आपका छाया ज़मीन पर नहीं पड़ता था|
(ताज्किरतुल मौता वल क़ुबूर पृष्ट १३)
१९.
काज़ी सना उल्लाह पानी पती
((मृत्यु ११२५ हिज्री)
लेख़क माला बुद्दा मिन्ह व तफसीरे मज़हरी ने फ़रमाया है :
می گویند کہ رسول خدارا سایہ نہ بود
تذکرۃ الموتی والقبور ص13))
अनुवाद:
उलमा ए कराम फरमाते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का
साया नहीं था |
२०.
मुफ़्ती
इनायत अहमद काकोरवी रहमतुल्ला हि अलैह (मृत्यु १२७९ हिज्री) फ़रमाते हैं :
अनुवाद: आप
का शरीर नूर - इस वजह से आपका छाया ना था |
(तारीखे
हबीबे इलाह पृष्ठ १६१ प्रकाशित भारत, द्वारा मुफ़्ती इनायत अहमद रहमतुल्ला हि अलैह)
२१.
हज़रत
शाह अहमद सईद मुहद्दिस देहलवी सुम्म अल मदनी रहमतुल्ला हि अलैह (मृत्यु १२७७
हिज्री) फरमाते हैं :
अनुवाद:
"छाया आपका का ना था, शरीर आपका नूरी था"
(सईदुल बयान फ़ी मौलिद सय्येदुल इन्स व जान पृष्ठ ११३ प्रकाशित गोजर नुवाला १९८२ द्वारा :
शाह अहमद सईद रहमतुल्ला हि अलैह)
२२.
हज़रत
शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्ला हि अलैह (मृत्यु १०५२ हिज्री) फरमाते हैं
:
अनुवाद: "आँ
हजरत सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम सिर अक़दस से पैर मुबारक तक सरासर नूर
थे"
(मदरिजुन
नुबुव्वा फारसी पृष्ठ १३७ भाग प्रथम)
२३.
अल्लामा
जलाल उद्दीन सियूती अश-शाफ़ई (मृत्यु ९११ हिज्री) फरमाते हैं :
قال ابن سبع من خصائصہ صلی اللہ علیہ
و سلم ان ظلہ کان لا یفع علی الارض
لانہ کان نورا اذا مشی فی الشمس اوالقمر لا ینظر
لہ ضل قال بعضھم و یشھد لہ
حدیث قولہ صلی اللہ علیہ و سلم ودعائہ
فاجعلنی نورا
(خصائص کبریٰ ج 1 ص68)
अनुवाद: इब्न
सबअ ने हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम की व्यक्तित्व के संबंध में कहा कि
आपका छाया धुप एवं चांदनी दोनों में इस वजह से ना था कि आप सर ता पा (सिर अक़दस से
पैर मुबारक तक) नूर थे |
(खसा
ऐ से कुबरा पृष्ठ १६९ प्रकाशित कराची पाकिस्तान १९७६ द्वारा :इमाम जलाल उद्दीन
सियूती रहमतुल्ला हि अलैह)
२४.
मुल्ला
अली क़ारी रहमतुल्ला हि अलैह (मृत्यु १०१४ हिज्री) फरमाते हैं :
अनुवाद: हुजुर
सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम का हृदय मुबारक और शरीर नूर था और सभी नूर इसी
नूर से प्रकाशित एवं लाभ आभारी हैं |
(शरह
शिफ़ा बर हाशिया नसीमुर्रियाज़ पृष्ठ २१५ भाग प्रथम प्रकाशित मुल्तान द्वारा :
मुल्ला अली क़ारी रहमतुल्ला हि अलैह)
२५.
काज़ी
अयाज़ मालकी उन्दुलिसी अलैहिर रहमाँ (मृत्यु ५४४ हिज्री) फरमाते हैं:
अनुवाद: आप
सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के पवित्र शरीर का छाया ना धूप में होता और ना
चाँदनी में क्यूंकि आप नूर थे |
(अश्शिफा
अनुवादित पृष्ठ ५५२ भाग प्रथम प्रकाशित लाहौर)
२६.
मौलाना
अब्दुलहई लखनवी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं :
अनुवाद: बेशक
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम जब धूप और चाँदनी में चलते
थे तो आपका छाया जमीन पर नहीं पड़ता था क्यूंकि छाया कसीफ (गढ़ा) होता है और आप की
व्यक्तित्व सर से क़दम तक नूर है |
(अत्तालीक
अल अल अजीब पृष्ठ १३, ब हवाला अल अल अनवा रुल मुहम्मदिया पृष्ठ १६३)
२७.
मुफ़्ती
शफ़ी देवबंदी का फ़तवा :
प्रशन
: वह हदीस कौन सी है जिस में कि रसूले मकबूल सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही
व सल्लम का छाया जमीन पर स्थित नहीं होता था ?
उत्तर
: इमाम सियूती ने खसा ए से कुबरा में आँ हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस
हाबिही व सल्लम का छाया ज़मीन पर स्थित ना होने के बारे में यह हदीस नक़ल फरमाई है:
"اخرج
الحکیم الترمذی عن ذکوان ان رسول ﷺ لم یکن یری لہ ظل فی الشمس ولا قمر الخ"
और “तावारिखे हबीबे इलाह” में इनायत अहमद काकोरवी रहमतुल्ला हि
अलैह लिखते हैं कि आप का शरीर नूर इसी वजह से आपका छाया ना था | मौलाना जामी
रहमतुल्ला हि अलैह ने आप के छाया ना होने का खूब नुक्ता लिखा है इस कत-आ में :
پیغمبر ما ند ا شت سایہ
تاشک بدل
یقیں نیفتد
یعنی ہرکس کہ پیرواوست
پیداست کہ پاز میں نیفند
(عزیزالفتاویٰ جلد ھستم ص 202)
(अजीजुल
फतवा भाग ६ पृष्ट २०२,
फ़तवा दारुल उलूम देवबंद पृष्ठ १६३ भाग प्रथम प्रकाशित दारुल अशा अत कराची,)
जिन
उलामे उम्मत और मुसंनिफीन (लेखक) के अक़वाल व रिवायत पेश किये हैं उनके नाम निम्मेलिखित
हैं :
हकीम तिरमिज़ी रहमतुल्ला हि अलैह
हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहमतुल्ला हि अलैह
अल्लामा हाफिज़ र ज़ी न रहमतुल्ला हि अलैह
हाफिज़ इब्ने जौज़ी रहमतुल्ला हि अलैह
इमाम नस्फी रहमतुल्ला हि अलैह
इब्न सु बअ रहमतुल्ला हि
अलैह
इमाम रागिब अस्फहानी रहमतुल्ला हि अलैह
इमाम जलाल उद्दीन सियूती रहमतुल्ला हि अलैह
इमामुल ज़मान क़ाज़ी अल एयाज़ रहमतुल्ला हि अलैह
अल्लामा इब्ने हजर मक्की रहमतुल्ला हिअलैह
अल्लामा शहाब उद्दीन खुफ्फाजी रहमतुल्ला हि अलैह
इमाम अहमद कुस्तुलानी रहमतुल्ला हि अलैह
काज़ी अयाज़ मालकी उन्दुलिसी रहमतुल्ला हि अलैह
साहिबे सीरते शामी रहमतुल्ला हि अलैह
साहिबे सीरते ह ल बिया रहमतुल्ला हि अलैह
इमाम ज़ुर्कानी मालकी रहमतुल्ला हि अलैह
अल्लामा हुसैन इब्ने मुहम्मद दियार रहमतुल्ला हि अलैह
अल्लामा सुलेमान जुमल रहमतुल्ला हि अलैह
अल्लामा शैख़ मुहम्मद ताहिर रहमतुल्ला हि अलैह
इमाम तकीउद्दीन सुबकी रहमतुल्ला हि अलैह
इमामुल आरिफीन मौलाना जलाल उद्दीन रूमी रहमतुल्ला हि अलैह
मुल्ला अली क़ारी रहमतुल्ला हि अलैह
हज़रत अल्लामा बहरुल उलूम लख नवी रहमतुल्ला हि अलैह
इमामुल मुहद्दीसीन हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़
मुफ़्ती इनायत अहमद काकोरवी रहमतुल्ला हि अलैह
हज़रत शाह अहमद सईद मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्ला हि अलैह
हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्ला हि अलैह
अल्लामा जलाल उद्दीन सियूती अश-शाफ़ई रहमतुल्ला हि अलैह
इमामे रब्बानी मुजद्दिद अल्फ ए सानी रहमतुल्ला हि अलैह
मौलाना अब्दुलहई
लखनवी रहमतुल्ला हि अलैह
इनके
इलावा मुखालिफीन (विरोधीयूं) के कुछ मौलवी
हैं जिनके नाम और कौल हवाले के साथ बताया जा रहा है आप दिल और दिमाग को हाज़िर करके
पढ़े और खुद फैसला करें |
तुम को
अपने हुस्न का इहसास नहीं
आइना
सामने रख दूं तो पसीना आ जाये
२८.
मौलवी
अशरफ़अली देवबंदी लिखता है:
हमारे हुजुर (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) सर ता पा नूर थे हुजुर (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) मैं जुल्मत (अंधेर) नाम को भी ना थी इसलिए आप का छाया ना था |
(शुक्रून नि
अ म त बि ज़िक्रे रह्मतुर्रह्मा पृष्ठ ३१ प्रकाशित कराची)
२९.
कारी
मुहम्मद तय्येब देवबंदी लिखता है:
कि
आप (नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) के पवित्र शरीर जमाल मुबारक और हकीक़त पाक सब ही में
नूरानियत और आकर्षित नज़र आती है |
(आफ़ताबे
नुबूवत पृष्ठ ४९ प्रकाशित लाहौर १९८० ई.)
३०.
मौलवी
आबिद मियां देवबंदी :
अपनी
लेखन रहमतुल लिल आ ल मीन (डाभेल) में लिखता है :
आँ
हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का पवित्र शरीर नूरानी था जिस
समय आप धूप और चाँदनी रात मैं आमद व रफत (चलते-फिरते) फरमाते थे तो बिलकुल छाया
प्रकट न होता |
(रहमतुल
लिल आ ल मीन पृष्ठ ५३ प्रकाशित कराची)
इस
पुस्तक पर निम्नलिखित देवबंदी विचार धारा के विद्वान की प्रस्तावना एवं समर्थन
दर्ज हैं |
१. मुफ़्ती किफायतुल्ला देहलवी
२. मौलवी अनवर शाह कश्मीरी
३. मौलवी असगर हुसैन
४. मौलवी शब्बीर अहमद उस्मानी
५. मौलवी हबीबुर्रहमान
६. मौलवी एअ ज़ाज़ अली
७. मौलवी अब्दुश्शाकूर लखनवी
८. मौलवी अहमद सईद (देवबंदी)
क्या इसके
बाद भी इस इलज़ाम की गुंजाईश रह जाती है कि पवित्र शरीर का छाया ना होने के तसव्वुर
आवामी सोच का अभिनव (नवाविचार) है | जिस्म मुबारक के छाया ना होने के सम्बन्ध आम
मुसलमानों का यह अक़ीदा (विश्वास) बे बुनियाद नहीं है | इस अकीदा के सही होने के
लिए मात्र दलाइल ही नहीं है मजीद काबिले इतेमाद हस्तियुं के कौल व दलाइल भी हैं |
निम्म लिखित उलमा हमारे मुक़तदा हैं जिनकी चमकती हुवी इबारत मोतबर (विश्वसनीय)
पुश्तकों से हम नक़ल कर चुके हैं |
खुदा ए कदीर दौरे जदीद के फ़ितनों से सदा लोह
मुसलमानों को महफूज़ रखे और इमान पे मौत नसीब करे | आमीन
लेखक
मुहम्मद शान
रज़ा अल- हनफ़ी
हिंदी अनुवादक व जदीद इज़ाफ़ा
आले रसूल रसूल अहमद अल- अशरफी अल- क़ादरी
Email: aalerasoolahmad@gmail.com
पैगामे आला हज़रत अलैहिर्रहमा
अल्लाह
व रसूल के सच्ची मुहब्बत उनकी ताजीम और उनके दोस्तों की खिदमत और उनकी तकरीम और
उनके दुश्मनों से सच्ची अदावत जिस से खुदा और रसूल की शान में अदना तौहीन पाओ फिर
वह तुम्हारा कैसा ही प्यारा क्यूँ न हो फ़ौरन उस से जुदा हो जाओ जिस को बारगाहे रिसालत
में जरा भी गुस्ताख देखो फिर वह तुम्हारा कैसा ही मुअज्जम क्यूँ न हो, अपने अन्दर
से उसे दूध से मक्खी की तरह निकाल कर फ़ेंक दो | (वसाया शरीफ़ पृष्ट ३ द्वारा मौलाना हसनैन
रज़ा बरेली शरीफ़)
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