देवबन्दियूँ की रसूल दुश्मनी की ताज़ा मिसाल

बिस्मिल्लाहिर्रह्मानिर्रहीम
अस्सलातु वास्सलामु अलै क या रसूलल्लाह
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
आवाज़ दो इन्साफ को इन्साफ किधर है ?
(देवबन्दियूँ  की रसूल दुश्मनी की ताज़ा मिसाल)

आदरणीय पाठको ! जब बात आती है हबीबे किब्रिया सरवरे अंबिया हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के गुणों एवं कमालातों की तो उस समय देवबंदी हज़रात बहुत संकीर्ण हो जाते हैं और उनकी कुफ्र व शिर्क की मशीन मुसलमानों की तरफ मुतवज्जाह हो जाती है और मुसलमानों को इन बेबाक मौल्वीयुं के कुफ्र शिर्क के फतवों का सामना करना पड़ता है. जैसा कि उनके इमाम इस्माइल देहलवी ने अपनी पुस्तक तकवीयतुल इमान लिख कर हमारे दावे को सच्चा साबित किया क्यूंकि मौलवी इस्माइल देहलवी हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शान में अपमान करते हुवे यह लिखता है कि गोया कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया “मैं भी एक दिन मरकर मट्टी में मिलने वाला हूं” मुआज़ल्लाह (तकवीयतुल इमान पृष्ठ नंबर १३२)
आदरणीय पाठको ! अब इसी तकवीयतुल इमान पुस्तक का देवबंदी मज़हब में प्रामाणिक होना खुद देवबंदी मज़हब के उपनामी गौसे आज़म मौलवी रशीद अहमद गंगोही की ज़ुबानी सुनिए और इन देवबंदीयों की रसूल दुश्मनी मुलाहेज़ाह फरमायें |
मौलवी रशीद गंगोही से तकवीयतुल इमान के संबंध से प्रशन किया गया कि यह पुस्तक कैसी है तो इसके उत्तर में मौलबी रशीद गंगोही इस गुस्ताखियों से भरी पड़ी पुस्तक की प्रशंसा में यू चापलोस होते हैं कि “ पुस्तक तकवीयतुल इमान बहुत अच्छी एवं सच्ची पुस्तक और अनुकूलन के शक्ति की सबब है ओर कुरान व हदीस का मतलब पूरा इसमें है इसका लेखक एक लोकप्रिय मनुष्य था | (फतवा रशीदिया भाग पर्थम पृष्ठ ११)
इसी तरह पृष्ठ २१ पर मौलवी रशीद गंगोही अपने गुरु इस्माइल देहलवी की इस पुस्तक की प्रशंसा में इस हद तक आगे निकल जाते हैं’ और लिखते हैं कि “पुस्तक तकवीयतुल इमाननिहायत अच्छी पुस्तक है और शिर्क व बिद्दत में ला जवाब है | इस्तदलाल इसके बिलकुल किताबुल्लाह और अहादीस से हैं इसका रखना और पढ़ना और अमल करना ऐन इस्लाम है और मूजिबे अज्र का है” अस्तग्फिरुल्लाह
आदरणीय पाठको ! इतने लेख से यह बात साफ़ तौर पर निखर कर सामने आ गयी कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मुआज़ल्लाह सुम म मुआज़ल्लाह मर कर मट्टी में मिल गये हैं और देव्बंदियुं के इमाम इस्माइल ने इसको हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तरफ संबंधित किया और मौलबी रशीद गंगोही ने इसकी पुष्टि की और  बक़ौल मौलवी रशीद गंगोही के कुरान व हदीस की पूरी पूरी व्याख्या इस पुस्तक ने की तो गोया देवबन्दियु के इमाम रशीद गंगोही के नज़दीक (मुआज़ल्लाह सुम म मुआज़ल्लाह) हुज़ूर का मरकर मट्टी में कुरान व हदीस से साबित है और यही नहीं बल्कि इसके रखने पढ़ने और अमल करने को ऐन इस्लाम कह दिया यानी इस्लाम यही है और जो इस पुस्तक का इंकार करे और इसके विरोध बोले देवबन्दियूँ के नज़दीक वह शख्स इस्लाम के विरोध बोलता है इस्लाम का इनकार करता है अब नतीजा यह निकला कि अगर कोई शख्स इस्माइल देहलवी की इस पाठ पर विरोध करे तो गोया वोह इस्लाम पर विरोध कर रहा है | इस अपमानियता पाठ को न माने तो वोह गोया इस्लाम का विरोध कर रहा है (ला हौ ल वला कुव व त इल्ला बिलला)
आदरणीय पाठको ! यह था देवबन्दियु का अक़ीदा हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के बारे में कि (मुआज़ल्लाह सुममा मुआज़ल्लाह) हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम मर कर मट्टी में मिल चुके हैं और जो इस चीज़ का इंकार करे वोह काफ़िर है क्यूंकि यह पुस्तक ऐन (विशेष रूप से) इस्लाम है और इस्लाम का इनकार करने वाला काफ़िर है जबकि हमारे नज़दीक यह अक़ीदा रखने वाला कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम मरकर मट्टी में मिल गये हैं काफ़िर है और इसमें हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम की अपमान की गयी है और हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम की अपमान सब की सहमति से कुफ्र है न कि विशेष रूप से इस्लाम जो इसको विशेष रूप से इस्लाम कहे वोह भी कायल (लेखक) की तरह काफ़िर व गुस्ताख है | यह तो था देवबन्दियूँ का आचरण हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के संबंध से कि मुआज़ल्लाह सुम म मुआज़ल्लाह हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ............................... मिल गये जबकि हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने समूह अम्बिया के संबंध में सराह्तन हमारी रहनुमाई फरमाई कि.......
"ان اللہ تعالی حرم علی الارض ان تاکل الاجساد الانبیاء"
(المستدرک علی الصحیحین کتاب ا لفتن والملاحم)
अनुवाद: कि बेशक अल्लाह त आ ला ने मट्टी पर हराम फरमा दिया है कि वह अंबिया के शरीरों को खायें |
अब तस्वीर का दूसरा मोड़ देखिये कि देवबंदी मौलवी हज़रात अपने गिरोह देवबंद से संबंधित लोगों के गुण के संबंध से क्या सिद्धांत है तो आदरणीय पाठको आज मैं ने देवबंदियुं की वेब साईट खोल कर देखी कि देवबंदियों ने हम अहले सुन्नत वल जमाअत के विरोध कोई नया ज़हर उगला हो तो देखा जाये ताकि इसका जवाब भी www.deobandimazhab.com पर दिया जा सके लेकिन जब वेब साईट देखी तो इस के मैन पेज पर एक समाचार पत्र का टुकड़ा देखा आप भी मुलाहेजा फरमायें........................................



आदरणीय पाठको ! आप ने मुलाहेजा फ़रमाया कि देवबंदी इस सूचना पर बहुत ख़ुशी मना रहे हैं कि एक देवबंदी की क़ब्र खुली तो ४० साल के बाद भी उसका चेहरा तरो ताज़ा निकला |
आदरणीय पाठको इस सूचना पर मेरे कुछ प्रशन हैं वोह यह कि.....
१.    इस मदफून (दफनाया गया मनुष्य) के देवबंदी होने पर देवबन्दियूँ के पास क्या दलील है ?
२.    और इसकी क्या दलील है कि यह क़ब्र ४० साल बाद खुली ?
३.    देवबंदी मौल्वीयूँ को यह इल्मे गैब (अनदेखी ज्ञान) कैसे हासिल हो गया की यह शख्स तब्लीगी इज्तमा मैं निधन कर गया था ?
४.    और क्या वजह है कि हुजुर सल्लाल्ल्हू अलैहि व सल्लम मुआज़ल्ला सुम्म मुआज़ल्ला देवबंदी अक़ीदा के मुताबिक़ मर कर मट्टी मैं मिल चुके हैं मगर बकौले देवबन्दियूँ के एक ऐसा मनुष्य जो यह अक़ीदा रखता हो कि हुजुर सल्लाल्ल्हू अलैहि व सल्लम मर कर मट्टी मैं मिल गये वोह खुद मट्टी में ना मिला बल्कि सही सलामत तरो ताज़ा चहरे के साथ निर्यात हुवा |
आदरणीय पाठको ! अब यह साबित हुवा या ना हुवा कि यह मनुष्य देवबंदी था या नहीं यह बिलकुल साबित हो गया कि देवबंदी हुजुर सल्लाल्ल्हू अलैहि व सल्लम के दुश्मन हैं कि हुजुर सल्लाल्ल्हू अलैहि व सल्लम तो अपने क़ब्र में सही व सलामत मौजूद नहीं मगर देवबंदी मौलवी ४० साल के बाद भी सही सलामत है | लानत है इन बे बाक गुस्ताख मौलवियों पर कि जो हुजुर सल्लाल्ल्हू अलैहि व सल्लम के बारे में तो यह अक़ीदा कि मुआज़ल्ला वह अपने कब्र में सही सलामत नहीं बल्क़ि मिट्टी में मिल गये हैं और अपने (बक़ौल देव्बन्दियुं) मौलवी के बारे में सिद्धांत रखें कि वह चालीस साल बाद भी तरो ताज़ा रहा ? क्या यह रसूल दुश्मनी नहीं ?
अल्लाह से दुआ है कि अगर लिखने में कोई गलती हो गयी हो तो माफ़ फरमाए और सुन्नी विद्वान अगर कोई शरई गलती पायें तो सूचना फरमा कर शुक्रिया का मौका प्रदान करें |
तालिबे दुआ..................
लेखक : मुहम्मद शान रज़ा क़ादरी अल-हनफ़ी  
अनुवादक: आले रसूल अहमद अल-अशरफी अल-क़ादरी
(रियाद सऊदी अरब)



आला हज़रत की आखरी वसीयत

जिस से अल्लाह व रसूल की शान में अदना तौहीन पाओ फिर वह तुम्हारा कैसा ही प्यारा हो फ़ौरन उससे जुदा हो जाओ जिसको बारगाहे रिसालत में जरा भी गुस्ताखी देखो फिर वोह तुम्हारा कैसा ही मुअज्जम क्यूँ न हो अपने अन्दर से उसे दूध से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दो | मैं ने पौने चोदह साल की उम्र से यही बताता रहा और इस वक़्त फिर यही अर्ज़ करता हूँ अल्लाह जरूर अपने दीन की हिमायत के लिए किसी बन्दे को खड़ा कर देगा मगर नहीं मालूम मेरे बाद जो आए कैसा हो और तुम्हें क्या बताये | इसलिए इन बातों को खूब सुन लो हुज्जतुल्लाह क़ाएम हो चुकी अब में कब्र से उठ कर तुम्हारे पास बताने न आउंगा जिसने इसे सुना और माना क़ियामत के दिन उस के लिए नूर व निज़ात है और जिस ने ना माना उस के लिए ज़ुल्मत व हलाकत |

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