Ghause Azam Shaikh Abdul Qadir Jilani Ki Wilayat (Hindi)

हज़रत ग़ौसे पाक की विलायत

हज़रत सैयदना ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से कि सी ने पूछा, आप को कब से मालूम है के आप अल्लाह तआ़ला के वली हैं?  तो आप ने अनुदेश कियाः
 भाषांतरः मैं 10 वर्ष का लड़का था के अपने नगर के मदरसे में पढने के लिए अपने घर से निकलता तो मैं अपने चारों ओर फरिश्तों को चलते देखा करता, तथा जब मदरसा पहुंचता तो मैं इन्हें यह कहते हुए सुनता के अल्लाह तआ़ला के वली के लिए रास्ता दीजिएयहाँ तक के वह तशरीफ रखें।  (बहजतुल असरार, पः 21, खलाइ़द उल जवाहिर, पः 9, अक़बारुल अक़यार, पः 22, सफीनतुल ऑलियाः 63)

खलाइ़क़ उल जवाहिर में विवरण हैः- भाषांतरः हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के जब मैं 10 वर्ष के स्थिति में मदरसे को जाया करता था तो दैनिक एक फरिश्ता मनुष्य की शक्ल में मेरे पास आता एवं मदरसा ले जाता, तथा लड़कों को आदेश देता के वह मेरे लिए मजलिस और फैलाएं, स्वंय भी इस समय तक मेरे पास बैठा रहता यहाँ तक कि मैं अपने घर वापस आया, मुझे नहीं पता के यह फरिश्ता है।  एक दिन मैं ने इस से पूछा आप कौन हैं?  तो इस ने उत्तर दिया।  मैं फरिश्तों में से एक फरिश्ता हुँ, अल्लाह तआ़ला ने मुझे इस लिए भेजा हा के मैं इस समय तक मदरसे में आप के सााथ रहा करुँ जब तक के आप वहाँ तशरीफ फरमा हैं।  (खलाइ़क़ उल जवाहिर, पः 134, 135) 
 बहजतुल असरार तथा खलाइदुल जवाहिर में लिखित हैः भाषांतरः हज़रत ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के बचपन में जब कभी मैं साथियों के साथ खेलने का उद्देश्य करता तो ग़ैब से कीसी कहने वाले की आवाज सुना करता ऐ बरकत वाले, तुम मेरे पास आ जाओ, तो मैं तुरंत माता की गोद में चला जाता। (बहजतुल असरार, पः 21, खलाइ़द उल जवाहिर, पः 9, अक़बार उल अक़यार, पः 51) 
 आप की शान व प्रतिभा देखें!  आप को बचपन ही से अल्लाह की फ़र्ज़ व जिक्र की चिन्ता रही है।  
        संसार तथा इस की रंगीनियों (भौतिकतावादी) से आप की सुरक्षा की जा रही है के आप का स्तर संसार में व्यस्त होना नहीं, बल्कि सांसारिक लोगों से संसार की चिन्ता को निकाल कर अल्लाह के ज़िक्र व फिक्र तथा इस की याद में व्यस्त करना तथा इन के तारीक दिलं को अनवार व विकीरण से प्रकाश करना है। 
धर्म के ज्ञान प्राप्त करने का लक्ष्य
हज़रत शेक़ मुहम्मद बिन खाइ़द अलवानी रहमतुल्लाहि अलैह वर्णन करते हैः- भाषांतरः हज़रत शेख  अबदुल खादर जिलानी ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हम से फरमाया के बचपन में मुझे एक बार हज्ज के दिनों में जंगल की ओर जाने का संयोग हुआ एवं मैं एक गाय के पीछे-पीछे चल रहा था।  अचानक उस गाय ने मेरी ओर देख कर कहाः ऐ अबदुल क़ादिर जिलानी !  तुम्हें इस प्रकार के कार्य के लिए तो पैदा नहीं किया गया।  मैं चिन्तित हो कर लौटा तथा अपने घर की छत पर चढ़ गया तो मैं ने मैदान अ़रफात को देखा लोग वहाँ वुखूफ किये हुए हैं।  यह सारी घटना मैं ने अपनी माता की सेवा में उपस्थित हो कर निवेदन किया तथा आज्ञा की कामना कीः ऐ माता!  आप मुझे अल्लाह तआ़ला को दान कर दें तथा मुझे बग़दाद की यात्रा की आज्ञा प्रदान करें ताकि मैं धर्म का ज्ञान प्राप्त करुँ सालेहीन (धर्मपरायण) की ज़ियारत करता रहुं तथा इन की संगत में रहुँ।  प्रिय माता ने मुझ से इस का कारण पूछा ?
  मैं ने सारी घटना कह दी तो आप की मुबारक आँखों में आंसू आ गए।  और मुझे बग़दाद जाने की आज्ञा प्रदान कर दी, तथा यह उपदेश दिया के मैं हर स्थिति में सत्यवादी व सच्चाई का रास्ता अपनाउँ।  (खलाइ़क़ उल जवाहिर, फी मनाखिब, अबदुल खादर- 8/9) 
हज़रत पीराने पीर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अपनी माता की सेवा में जो विनती की है इस में हमें कई उपदेश प्राप्त होते हैं।  इस अल्पवयस्क की स्थिति में आप को ज्ञान प्राप्त करने के लिए घर-बार छोड़ देना, आदरणीय माता तथा क़रीबी रिश्तेदारों से दूरी प्रयोग करना, देशवासियों से दूर जाना, स्वंय धर्मनिष्ठा व धार्मिकता, दृढ़ता के विश्वास पर बग़दाद शरीफ की यात्रा करना औऱ सब से महत्व यह बात है के ज्ञान प्राप्त के साथ-साथ बुज़ुर्गों व पूर्वजों नज़र बनाना, ऑलिया किराम तथा सालेहीन के निरीक्षण की तड़प तथा इन की संगत को ध्यान रखना, यह सब ऐसे कार्य हैं जो हमारी चिन्ता व विचार को प्रोत्साहन तथा बुद्धि को अहसास व रोशनी देते हैं। 
 हमारे लिए प्रकाश का स्थान है के धर्म व संसार की प्रगति व उन्नति केवल ज्ञान के प्राप्त करने के ज़ाहिरी पर निर्भर नहीं होता, बल्कि इस के साथ-साथ भले व धर्मनिष्ठ से नज़दीकी एवं बुज़ुर्गों (पूर्वजों) की संगत मानवता के लिए अतिउत्तम हुआ करती है। 
 सरकार ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने बग़दाद की यात्रा के सिलसिले में ज्ञान प्राप्त के साथ-साथ धर्म के पूर्वजों को अपना प्रिय बनाया तथा यह सत्यवादी लोग की अनुयायी ही से फितरत रही के वह सालेहीन से नज़दीकी तथा संगत को अधिमान दिया करते हैं। 
 परिश्रमें व प्रयास
सरकार पीराने पीर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अनुदेश फरमाते हैं के जब नव यूवक के प्रारंभ में मुझ पर नीन्द प्रभावित आती तो मेरे कानों में यह आवाज़ आतीः ऐ अबदु कादिर जिलानी!  हम ने तुझ को सोने के लिए पैदा नहीं किया।  (बहजतुल असरार, पः 21, सफीनह उल ऑलियाः पः 63) 
 अर्थात आप फरमाते हैं कि मैं अरसे तक शहर के वीरान तथा जनशून्य स्थान पर जीवन बसर करता रहा, नफ्स को तरह-तरह की निष्ठा तथा परिश्रम में ड़ाला, 23 वर्ष तर ई़राक़ के बयाबान जंगलों में तन्हा फिरता रहा। 
 अर्थात एक वर्ष तक मैं साग-घांस आदि से गुज़ारा करता रहा एवं पानी नहीं पीता था, फिर एक वर्ष तक पानी भी पीता रहा, फिर 3 वर्ष मैं ने केवल पानी पर ही गुज़ारा कीया, कुछ भी नहीं खाता, फिर एक वर्ष तक ना ही कुछ खाया, ना पिया तथा ना ही सोया।  (खलाइक़ उल जवाहिर, पः 10/11) 
40 वर्ष ई़शा के वुज़ू से
फज्र की नमाज़ समापन करना
 अख़बार उल अख़यार, पः 40, खलाइद उल जवाहिर, पः 76, में वर्णन हैः-  भाषांतरः हज़रत अबुल फतह हरवी रहमतुल्लाहि अलैह वर्णन करते हैं के मैं हज़रत ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की पावन सेवा में 40 वर्ष तक रहा तथा इस मुद्दत के दौरान मैं ने आप को हमेशां ई़शा के वुज़ू से सवेरे की नमाज़ पढ़ते हुए देखा। (अख़बारुल अख़यार, पः 40, खलाइ़क़ उल जवाहिर, पः 76) 
     हज़रत ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु 15 वर्ष रात भर में एक क़ुरान पाक समाप्त करते रहे।  (अख़बारुल अख़यार, पः 40 जामअ़ करामात ऑलिया) 
इन परिश्रण तथा आत्मसंयम (आत्मदमन व संताप) का प्रकट स्वंय खूद आप ने इस प्रकार किया:
हज़रत अबु अबदुल्लाह नज्जार रहमतुल्लाहि अलैह से मरवी है के हज़रत ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आदेश फरमायाः मैं ने बडी-बडी कठिनाई तथा परिश्रम तथा संकटें सहन कीं यदि वह किसी पहाड़ पर गुज़रतें तो वह पहाड़ भी फट जाता।  (खलाइ़क़ उल जवाहिर, पः 10) 
हज़रत ग़ौसे आज़म
ऑलिया के सरदार व मुखिया
हज़रत ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने जब यह आदेश फरमायाः- मेरा यह क़दम अल्लाह के हर वली की गरदन पर है। 
ऑलिया किराम ने आप के आदेश तथा अपने अपने स्थान से हर वली ने इस आदेश को स्वीकार किया तथा सर तसलीम ख़म किया ।  अर्थात हज़रत ख्वाजा मुअ़ई़न उद्दीन चिश्ती ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाहि अलैह ने ऐसा अदब कि या कि इस आदेश के समय आप ख़रासान की पर्वतों के गुफाओं में परिश्रणमें व्यस्त थे। 
आप ने हज़रत ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की यह घोषणा सुनते ही अपना सर मुबारक धरती पर रख दिया तथा ज़बान ए हाल से निवेदन कियाः हुज़ूर वाला गरदन पर ही कया बल्कि मेरे सर पर आप का मुबारक क़दम है। (तफरीह उल क़ातिर) 

ख्वाजा ख्वाजगां शाह नक्शबंदी हज़रत ख्वाजा बहा उद्दीन नक्शबंद रहमतुल्लाहि अलैह से हज़रत ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के वर्णन कथन के संबंध निवेदन किया गया तो आप ने आदेश फरमायाः गरदन ही नहीं आप का क़दम मुबारक मेरी आँखों तथा दिल पर है।  (तफरीह उल खातिर)

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