इस्लाम का इतिहास

 आमतौर पर यह समझा जाता है कि इस्लाम 1400 वर्ष पुराना धर्म है, और इसके प्रवर्तकपैग़म्बर मुहम्मद () हैं। लेकिन वास्तव में इस्लाम 1400 वर्षों से काफ़ी पुराना धर्म है; उतना ही पुराना जितना धर्ती पर स्वयं मानवजाति का इतिहास और हज़रत मुहम्मद () इसके प्रवर्तक (Founder) नहीं, बल्कि इसके आह्वाहक हैं।

आपका काम उसी चिरकालीन (सनातन) धर्म की ओर, जो सत्यधर्म के रूप में आदिकाल से एकही रहा है, लोगों को बुलाने, आमंत्रित करने और स्वीकार करने के आह्वान का था।

आपका मिशन, इसी मौलिक मानव धर्म को इसकी पूर्णता के साथ स्थापित कर देना था ताकि मानवता के समक्ष इसका व्यावहारिक रूप साक्षात् रूप में आ जाए।

इस्लाम का इतिहास जानने का अस्ल माध्यम स्वयं इस्लाम का मूल ग्रंथ क़ुरआनहै। और क़ुरआन, इस्लाम का आरंभ प्रथम  मनुष्य आदमसे होने का ज़िक्र करता है।

इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए क़ुरआन ने मुस्लिमशब्द का प्रयोग हज़रत इबराहीम (अलैहि॰) के लिए किया है जो लगभग 4000 वर्ष पूर्व एक महान पैग़म्बर (सन्देष्टा) हुए थे।

हज़रत आदम (अलैहि॰) से शुरू होकर हज़रत मुहम्मद () तक हज़ारों वर्षों पर फैले हुए इस्लामी इतिहास में असंख्य ईशसंदेष्टा ईश्वर के संदेश के साथ, ईश्वर द्वारा विभिन्न युगों और विभिन्न क़ौमों में नियुक्त किए जाते रहे। उनमें से 26 के नाम कु़रआन में आए हैं और बाक़ी के नामों का वर्णन नहीं किया गया है।

इस अतिदीर्घ श्रृंखला में हर ईशसंदेष्टा ने जिस सत्यधर्म का आह्वान दिया वह इस्लामही था; भले ही उसके नाम विभिन्न भाषाओं में विभिन्न रहे हों। बोलियों और भाषाओं के विकास का इतिहास चूंकि क़ुरआन ने बयान नहीं किया है इसलिए इस्लामके नाम विभिन्न युगों में क्या-क्या थे, यह ज्ञात नहीं है।

इस्लामी इतिहास के आदिकालीन होने की वास्तविकता समझने के लिए स्वयं इस्लामको समझ लेना आवश्यक है। इस्लाम क्या है, यह कुछ शैलियों में क़ुरआन के माध्यम से हमारे सामने आता है, जैसे:

1. इस्लाम, अवधारणा के स्तर पर विशुद्ध एकेश्वरवादका नाम है। यहां विशुद्धसे अभिप्राय है: ईश्वर के व्यक्तित्व, उसकी सत्ता व प्रभुत्व, उसके अधिकारों (जैसे उपास्य व पूज्य होने के अधिकार आदि) में किसी अन्य का साझी न होना।

विश्व का...बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड और अपार सृष्टि का यह महत्वपूर्ण व महानतम सत्य मानवजाति की उत्पत्ति से लेकर उसके हज़ारों वर्षों के इतिहास के दौरान अपरिवर्तनीय, स्थायी और शाश्वत रहा है।

2. इस्लाम शब्द का अर्थ शान्ति व सुरक्षाऔर समर्पणहै। इस प्रकार इस्लामी परिभाषा में इस्लाम नाम है, ईश्वर के समक्ष, मनुष्यों का पूर्ण आत्मसमर्पण; और इस आत्मसमर्पण के द्वारा व्यक्ति, समाज तथा मानवजाति के द्वारा शान्ति व सुरक्षाकी उपलब्धि का।

यह अवस्था आरंभ काल से तथा मानवता के इतिहास हज़ारों वर्ष लंबे सफ़र तक, हमेशा मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता रही है।

इस्लाम की वास्तविकता, एकेश्वरवाद की हक़ीक़त, इन्सानों से एकेश्वरवाद के तक़ाज़े, मनुष्य और ईश्वर  के बीच अपेक्षित संबंध, इस जीवन के पश्चात (मरणोपरांत) जीवन की वास्तविकता आदि जानना एक शान्तिमय, सफल तथा समस्याओं, विडम्बनाओं व त्रासदियों से रहित जीवन बिताने के लिए हर युग में अनिवार्य रहा है; अतः ईश्वर ने हर युग में अपने सन्देष्टा (ईशदूत, नबी, रसूल, पैग़म्बर) नियुक्त करने (और उनमें से कुछ पर अपना ईशग्रंथअवतरित करने) का प्रावधान किया है। इस प्रक्रम का इतिहास, मानवजाति के पूरे इतिहास पर फैला हुआ है।

4. शब्द धर्म’ (Religion) को, इस्लाम के लिए क़ुरआन ने शब्द दीनसे अभिव्यक्त किया है। क़ुरआन में कुछ ईशसन्देष्टाओं के हवाले से कहा गया है (42:13) कि ईश्वर ने उन्हें आदेश दिया कि वे दीनको स्थापित (क़ायम) करें और इसमें भेद पैदा न करें, इसे (अनेकानेक धर्मों के रूप में) टुकड़े-टुकड़े न करें।

इससे सिद्ध हुआ कि इस्लाम दीनहमेशा से ही रहा है। उपरोक्त संदेष्टाओं में हज़रत नूह (Noah) का उल्लेख भी हुआ है और हज़रत नूह (अलैहि॰) मानवजाति के इतिहास के आरंभिक काल के ईशसन्देष्टा हैं। क़ुरआन की उपरोक्त आयत (42:13) से यह तथ्य सामने आता है कि अस्ल दीन’ (इस्लाम) में भेद, अन्तर, विभाजन, फ़र्क़ आदि करना सत्य-विरोधी है-जैसा कि बाद के ज़मानों में ईशसन्देष्टाओं का आह्वान व शिक्षाएं भुलाकर, या उनमें फेरबदल, कमी-बेशी, परिवर्तन-संशोधन करके इन्सानों ने अनेक विचारधाराओं व मान्यताओं के अन्तर्गत बहुत से धर्मबना लिए।

मानव प्रकृति प्रथम दिवस से आज तक एक ही रही है। उसकी मूल प्रवृत्तियों में तथा उसकी मौलिक आध्यात्मिक, नैतिक, भौतिक आवश्यकताओं में कोई भी परिवर्तन नहीं आया है। अतः मानव का मूल धर्म भी मानवजाति के पूरे इतिहास में उसकी प्रकृति व प्रवृत्ति के ठीक अनुकूल ही होना चाहिए।

इस्लाम इस कसौटी पर पूरा और खरा उतरता है। इसकी मूल धारणाएं, शिक्षाएं, आदेश, नियम...सबके सब मनुष्य की प्रवृत्ति व प्रकृति के अनुकूल हैं।

अतः यही मानवजाति का आदिकालीन तथा शाश्वत धर्म है।

क़ुरआन ने कहीं भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को इस्लाम धर्म का प्रवर्तकनहीं कहा है। क़ुरआन में हज़रत मुहम्मद () का परिचय नबी (ईश्वरीय ज्ञान की ख़बर देने वाला), रसूल (मानवजाति की ओर भेजा गया), रहमतुल्-लिल-आलमीन (सारे संसारों के लिए रहमत व साक्षात् अनुकंपा, दया), हादी (सत्यपथ-प्रदर्शक) आदि शब्दों से कराया है।

स्वयं पैग़म्बर मुहम्मद () ने इस्लाम धर्म के प्रवर्तकहोने का न दावा किया, न इस रूप में अपना परिचय कराया। आप (सल्ल॰) के एक कथन के अनुसार इस्लाम के भव्य भवन में एक ईंट की कमी रह गई थी, मेरे (ईशदूतत्व) द्वारा वह कमी पूरी हो गई और इस्लाम अपने अन्तिम रूप में सम्पूर्ण हो गया’ (आपके कथन का भावार्थ।) इससे सिद्ध हुआ कि आप () इस्लाम धर्म के प्रवर्तक नहीं हैं। (इसका प्रवर्तक स्वयं अल्लाह है, न कि कोई भी पैग़म्बर, रसूल, नबी आदि)। और आप (सल्ल॰) ने उसी इस्लाम का आह्वान किया जिसका, इतिहास के हर चरण में दूसरे रसूलों ने किया था। इस प्रकार इस्लाम का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना मानवजाति और उसके बीच नियुक्त होने वाले असंख्य रसूलों के सिलसिले (श्रृंखला) का इतिहास।

यह ग़लतफ़हमी फैलने और फैलाने में, कि इस्लाम धर्म की उम्र कुल 1400 वर्ष है दो-ढाई सौ वर्ष पहले लगभग पूरी दुनिया पर छा जाने वाले यूरोपीय (विशेषतः ब्रिटिश) साम्राज्य की बड़ी भूमिका है। ये साम्राज्यी, जिस ईश-सन्देष्टा (पैग़म्बर) को मानते थे ख़ुद उसे ही अपने धर्म का प्रवर्तक बना दिया और उस पैग़म्बर के अस्ल ईश्वरीय धर्म को बिगाड़ कर, एक नया धर्म उसी पैग़म्बर के नाम पर बना दिया।

(ऐसा इसलिए किया कि पैग़म्बर के आह्वाहित अस्ल ईश्वरीय धर्म के नियमों, आदेशों, नैतिक शिक्षाओं और हलाल-हराम के क़ानूनों की पकड़ (Grip) से स्वतंत्र हो जाना चाहते थे, अतः वे ऐसे ही हो भी गए।) यही दशा इस्लाम की भी हो जाए, इसके लिए उन्होंने इस्लाम को मुहम्मडन-इज़्म (Muhammadanism)’ का और मुस्लिमों को मुहम्मडन्स (Muhammadans)’ का नाम दिया जिससे यह मान्यता बन जाए कि मुहम्मद इस्लाम के प्रवर्तक (Founder)’ थे और इस प्रकार इस्लाम का इतिहास केवल 1400 वर्ष पुराना है।

न क़ुरआन में, न हदीसों (पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल॰ के कथनों) में, न इस्लामी इतिहास-साहित्य में, न अन्य इस्लामी साहित्य में...कहीं भी इस्लाम के लिए मुहम्मडन-इज़्म शब्द और इस्लाम के अनुयायियों के लिए मुहम्मडन शब्द प्रयुक्त हुआ है, लेकिन साम्राज्यिों की सत्ता-शक्ति, शैक्षणिक तंत्र और मिशनरी-तंत्र के विशाल व व्यापक उपकरण द्वारा, उपरोक्त मिथ्या धारणा प्रचलित कर दी गई।

भारत के बाशिन्दों में इस दुष्प्रचार का कुछ प्रभाव भी पड़ा, और वे भी इस्लाम को मुहम्मडन-इज़्म मान बैठे। ऐसा मानने में इस तथ्य का भी अपना योगदान रहा है कि यहां पहले से ही सिद्धार्थ गौतम बुद्ध जी, ‘‘बौद्ध धर्म’’ के; और महावीर जैन जी ‘‘जैन धर्म’’ के प्रवर्तकके रूप में सर्वपरिचित थे।

इन धर्मों’ (वास्तव में मतों’) का इतिहास लगभग पौने तीन हज़ार वर्ष पुराना है। इसी परिदृश्य में भारतवासियों में से कुछ ने पाश्चात्य साम्राज्यिों की बातों (मुहम्मडन-इज़्म, और इस्लाम का इतिहास मात्र 1400 वर्ष की ग़लत अवधारणा) पर विश्वास कर लिया।



 



 

8 ﺷﻮﺍﻝ ﺗﺎﺭﯾﺦ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﺎ ﺳﯿﺎﮦ ﺗﺮﯾﻦ ﺩﻥ

8ﺷﻮﺍﻝ 1345 ﮪ ﺑﻤﻄﺎﺑﻖ 1926ﺀ ﺗﺎﺭﯾﺦ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﺎ ﺳﯿﺎﮦ ﺗﺮﯾﻦ ﺩﻥ ﮨﮯ، ﺟﺐ ﺳﺮﺯﻣﯿﻦ ﺣﺠﺎﺯ ﮐﮯ ﻏﺎﺻﺐ ﺣﮑﻤﺮﺍﻥ ﻋﺒﺪﺍﻟﻌﺰﯾﺰ ﺑﻦ ﺳﻌﻮﺩ ﻧﮯ ﺟﻨﺖﺍﻟﺒﻘﯿﻊ(ﻣﺪﯾﻨﮧ ﻣﻨﻮﺭﮦ) ﺍﻭﺭﺟﻨﺖﺍﻟﻤﻌﻠﯽ(ﻣﮑﮧ ﻣﻌﻈﻤﮧ) ﻣﯿﮟﺍﺟﺪﺍﺩ ﺭﺳﻮﻝ، ﺍﻭﻻﺩ ﺭﺳﻮﻝ، ﺧﺎﻧﻮﺍﺩﮦ ﺭﺳﻮﻝ، ﺍﻣﮩﺎﺓ ﺍﻟﻤﻮﻣﻨﯿﻦ، ﺍﺻﺤﺎﺏ ﮐﺮﺍﻡ ﺍﻭﺭ ﺑﺰﺭﮔﺎﻥ ﺩﯾﻦ ﮐﮯ ﻣﺰﺍﺭﺍﺕ ﮐﻮ ﻣﻨﮩﺪﻡ ﮐﺮﺍﺩﯾﺎ، ﺟﻨﺖ ﺍﻟﺒﻘﯿﻊ ﺍﻭﺭﺟﻨﺖﺍﻟﻤﻌﻠﯽٰ ﺻﺮﻑ ﻗﺒﺮﺳﺘﺎﻥ ﻧﮩﯿﮟﺑﻠﮑﮧ ﻣﺤﺴﻦ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﯽ ﻋﻈﯿﻢ ﯾﺎﺩﮔﺎﺭﻭﮞ ﮐﺎﻣﺠﻤﻮﻋﮧ ﺗﮭﮯ۔
ﺳﻌﻮﺩﯼ ﺣﮑﻮﻣﺖ ﮐﮯ ﺑﺎﻧﯽ ﺍﺑﻦﺳﻌﻮﺩ ﮐﯽﺍﺱﺍﺳﻼﻡ ﺳﻮﺯﺣﺮﮐﺖ ﺟﺲ ﭘﺮﻣﺴﻠﻤﺎﻧﺎﻥ ﻋﺎﻟﻢ ﺁﺝ ﺗﮏﺧﻮﻥﮐﮯﺁﻧﺴﻮ ﺭﻭﺭﮨﮯﮨﯿﮟﺍﻭﺭ ﮨﺮ ﺳﺎﻝ8 ﺷﻮﺍﻝ ﮐﻮ ” ﯾﻮﻡ ﺍﻧﮩﺪﺍﻡ ﺟﻨﺖ ﺍﻟﺒﻘﯿﻊ“ ﻣﻨﺎ ﮐﺮ ﺍﺱ ﺍﻟﻤﻨﺎﮎ ﺳﺎﻧﺤﮧ ﮐﮯﺧﻼﻑ ﺍﺣﺘﺠﺎﺝ ﮐﯿﺎﺟﺎﺗﺎ ﮨﮯ ﯾﮧﺍﺳﯽﺍﺣﺘﺠﺎﺝ ﮐﺎﻧﺘﯿﺠﮧ ﮨﮯﮐﮧ ﺟﺲ ﮐﮯﺑﺎﻋﺚ ﺭﻭﺿﮧ ﺭﺳﻮﻝ ﻣﻘﺒﻮﻝ ﻧﺠﺪﯾﻮﮞ ﮐﯽ ﭼﯿﺮﮦ ﺩﺳﺘﯿﻮﮞ ﺳﮯﻣﺤﻔﻮﻅ ﭼﻼﺁﺭﮨﺎ ﮨﮯ ﻭﺭﻧﮧ ﺍﺳﮯﺑﮭﯽ ﺳﻌﻮﺩﯼ ﺣﮑﻮﻣﺖ ﺑﯿﺪﺭﺩﯼ ﺍﻭﺭ ﺳﻔﺎﮐﯽ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺑﻠﮉﻭﺯﺭ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮧ ﻣﻨﮩﺪﻡ ﮐﺮﺍ ﮐﮯ ﺯﻣﯿﻦ ﺑﻮﺱ ﮐﺮ ﺩﯾﺘﯽ۔ ﻧﻔﺲ ﮐﮯﻏﻼﻡ، ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﺭﮐﮯﺍﯾﺠﻨﭧﺍﻭﺭ ﺳﺮﺯﻣﯿﻦﺳﻌﻮﺩﯾﮧﮐﻮﺳﺮﺯﻣﯿﻦﺍﺳﻼﻡﮐﯽ ﺑﺠﺎﺋﮯﺍﭘﻨﯽ ﺫﺍﺗﯽﻣﻠﮑﯿﺖﺳﻤﺠﮭﻨﮯﻭﺍﻟﮯ ﻏﺎﺻﺐﺳﻌﻮﺩﯼﺣﮑﻤﺮﺍﻥﻣﺤﺴﻨﯿﻦﺍﺳﻼﻡ ﮐﯽ ﻧﺸﺎﻧﯿﻮﮞ ﮐﻮ ﻭﯾﺮﺍﻥ ﮐﺮﮐﮯ ﺍﭘﻨﮯ ﻣﺤﻼﺕ ﻣﯿﮟ ﺳﻮﻧﮯ ﭼﺎﻧﺪﯼ ﮐﮯ ﻇﺮﻭﻑ ﻭﻓﺎﻧﻮﺱﺳﮯ ﺗﺰﺋﯿﻦ ﻭ ﺁﺭﺍﺋﺶ ﮐﺌﮯ ﮨﻮﺋﮯ ﮨﯿﮟ۔۔۔
ﮨﻢ ﺣﯿﺮﺍﻥﮨﯿﮟﮐﮧﺍﺳﻼﻣﯽﺣﮑﻮﻣﺘﯿﮟ ﺍﺱ ﻧﺠﺪﯼﺣﮑﻮﻣﺖ ﺳﮯ ﺧﺎﺋﻒ ﮐﯿﻮﮞ ﮨﯿﮟ؟ ﺍﺣﺘﺠﺎﺝ ﮐﯿﻮﮞ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﺗﯿﮟ؟
ﺩﺭﺍﺻﻞ ﺍﺱ ﺭﻭﺡ ﻓﺮﺳﺎ ﻭﺍﻗﻌﮧ ﻣﯿﮟ ﺍﯾﮏ ﮔﮭﻨﺎﺅﻧﯽ ﺳﺎﺯﺵ ﮨﮯ۔ﺍﺱ ﺑﮩﺎﻧﮯ ﺳﮯ ﻧﮧﺻﺮﻑ ﺍﺳﻼﻑﮐﯽﺣﺮﻣﺖ ﭘﺮ ﮈﺍﮐﮧ ﮈﺍﻻ ﮔﯿﺎ ﮨﮯﺑﻠﮑﮧﺍﻥ ﻣﺪﻓﻮﻥ ﻋﻈﯿﻢ ﺍﻟﻤﺮﺗﺒﺖ ﺷﺨﺼﯿﺘﻮﮞ ﺳﮯ ﻧﺎﻃﮧ ﺗﻮﮌﻧﮯ ﺍﻭﺭ ﻣﻨﮧﻣﻮﮌﻧﮯ ﮐﯽ ﻋﻤﻼً ﻣﻨﺼﻮﺑﮧ ﺑﻨﺪﯼ ﮐﯽ ﮔﺌﯽ ﮨﮯ۔ 
ﺁﺝ ﺍﺱ ﺳﺎﻧﺤﮧ کو 90 ﺳﺎﻝ ﮔﺰﺭ ﭼﮑﮯ ﮨﯿﮟ ﮨﺮ ﺳﺎﻝ ﺩﻧﯿﺎ ﺑﮭﺮ ﮐﮯ ﺧﻮﺵ ﻋﻘﯿﺪﮦ ﻭ ﺑﯿﺪﺍﺭ ﺿﻤﯿﺮ ﺭﮐﮭﻨﮯ ﻭﺍﻟﮯ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﺍﭘﻨﯽ ﺍﺳﻼﻡ ﺩﻭﺳﺘﯽ ﮐﺎ ﺍﻋﺎﺩﮦ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﻮﺋﮯ ﺳﻌﻮﺩﯼ ﺣﮑﻤﺮﺍﻧﻮﮞ ﮐﯽﺗﻮﺟﮧ ﻣﺴﻤﺎﺭ ﻭ ﺑﺮﺑﺎﺩ ﮐﺮﺩﮦ ﻣﺰﺍﺭﺍﺕﻣﻘﺪﺳﮧ ﮐﯽﺗﻌﻤﯿﺮ ﻧﻮ ﮐﯽ ﺟﺎﻧﺐﻣﺒﺬﻭﻝ ﮐﺮﺍﺗﮯ ﮨﯿﮟﻟﯿﮑﻦ ﺑﮯ ﺩﯾﻦﺳﻌﻮﺩﯼ ﺣﮑﻤﺮﺍﻧﻮﮞ ﻧﮯ ﮐﺒﮭﯽ ﺑﮭﯽﺍﺱﺍﺟﺘﻤﺎﻋﯽ ﺭﻭﺣﺎﻧﯽ ﮐﺮﺏ ﮐﻮ ﻣﺤﺴﻮﺱ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﯿﺎ۔ﺟﯿﺴﮯ ﺟﯿﺴﮯ ﻭﻗﺖ ﮔﺰﺭ ﺭﮨﺎ ﮨﮯ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﺍﺱ ﻋﻈﯿﻢ ﺳﺎﻧﺤﮧ ﮐﻮ ﻓﺮﺍﻣﻮﺵ ﮐﺮﺗﮯ ﺟﺎﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﯽ ﻓﺮﺍﻣﻮﺷﯽ ﯾﺎﻋﺪﻡ ﺗﻮﺟﮩﯽ ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﮐﺎ ﺑﺎﻋﺚ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺁﺝ ﻋﺮﺍﻕ ﻭ ﺷﺎﻡ ﻣﯿﮟ ﺍﻧﺒﯿﺎﺀ ﻋﻠﯿﮩﻢ ﺍﻟﺴﻼﻡ ﮐﮯ ﺭﻭﺯﮮ ﺍﯾﺴﮯ ﮔﺮﺍﺋﮯ ﺟﺎ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﯿﺴﮯ ﺭﯾﺖ ﮐﮯ ﮈﮬﯿﺮ ﮐﻮ ﺯﻣﯿﻦ ﮐﮯ ﺑﺮﺍﺑﺮ ﮐﺮ ﺩﯾﺎ ﺟﺎﺗﺎ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﮐﺴﯽ ﮐﻮ ﭨﺲ ﺳﮯ ﻣﺲ ﻧﮩﯿﮟﮨﻮﺗﯽ اور ﯾﮧ ﺩﺭﻧﺪﮦ صفت ﻗﻮﻡ ﺟﺴﮯﺍﺳﺘﻌﻤﺎﺭﯼ ﻃﺎﻗﺘﻮﮞ ﻧﮯ ﺍﻧﮩﯿﮟ ﮐﺎﻣﻮﮞ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﻭﺟﻮﺩ ﺩﯾﺎ ﮨﮯ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺍﻭﺭﺍﻟﮩﯽ ﻣﻘﺪﺳﺎﺕ ﮐﻮ ﻣﻠﯿﺎ ﻣﯿﭧ ﮐﺌﮯ ﺟﺎ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ۔

*اﻓﺴﻮﺱ ﺍﻭﺭﺻﺪﺍﻓﺴﻮﺱ*
ﺍﮔﺮ ﮐﻞ ﺟﻨﺖ ﺍﻟﺒﻘﯿﻊ ﮐﮯ ﺍﻧﮩﺪﺍﻡ ﮐﮯ ﺧﻼﻑ ﭨﮭﻮﺱ ﺍﻗﺪﺍﻡ کیے ﮨﻮتےﺗﻮ ﺁﺝ ﯾﮧ ﺩﯾﮑﮭﻨﮯ ﮐﻮ ﻧﮧ ﻣﻠﺘﺎ ﺟﻮ
ﻋﺮﺍﻕ ﻭ ﺷﺎﻡ ﻣﯿﮟ ﮨﻮ ﺭﮨﺎ ﮨﮯ۔ 8 ﺷﻮﺍﻝ ﮐﻮ انسانیت ﺳﻮﮔﻮﺍﺭ ﮨﻮﺗﯽ ﮨﮯ ﯾﮧ ﺩﻥ ﮨﻤﯿﮟ ﮨﺮ ﺳﺎﻝﺳﻌﻮﺩﯼ ﺣﮑﻤﺮﺍﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﻇﻠﻢ ﮐﯽ ﯾﺎﺩﺩﻻﺗﺎ ﮨﮯ ۔ ﻟﯿﮑﻦ ﺍﺱ ﺩﻥ ﮐﻮ ﺍﺱ ﻃﺮﺡ ﻧﮩﯿﮟ ﻣﻨﺎﯾﺎ ﺟﺎﺗﺎ ﺟﯿﺴﮯ ﺍﺱ ﮐﮯ ﻣﻨﺎﻧﮯ ﮐﺎ ﺣﻖ ﮨﮯ۔ ملت اسلامیہ ﺑﮭﯽ ﺍﺱ ﻋﻈﯿﻢ ﺳﺎﻧﺤﮧ ﮐﻮ ﻓﺮﺍﻣﻮﺵﮐﺮﺗﯽ ﺟﺎﺭﮨﯽ ﮨﮯ ﭼﻨﺪ ﺍﻓﺮﺍﺩ ﮐﮯ ﺍﺣﺘﺠﺎﺝ ﺳﮯ ﻣﻠﺖ ﺍﭘﻨﯽ ﺍﺟﺘﻤﺎﻋﯽ ﺫﻣﮧ ﺩﺍﺭﯼ ﺳﮯ ﻋﮩﺪﮦ ﺑﺮﺁ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮ ﺳﮑﺘﯽ۔ ﮨﻢ ﺳﻤﺠﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﮐﮧ 8 ﺷﻮﺍﻝ ﮐﻮﻣﻠﺖ ﻗﻮﻣﯽ ﺩﻥ ﻗﺮﺍﺭ ﺩﮮ ﺍﻭﺭ ﺑﺎﺿﻤﯿﺮ مسلمانوں ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﻣﻞ ﮐﺮﺍﺱ ﻋﻈﯿﻢ ﺳﺎﻧﺤﮧ ﭘﺮ ﺍﯾﺴﺎ ﺑﮭﺮﭘﻮﺭ ﺍﺣﺘﺠﺎﺝ ﮐﺮﮮ ﮐﮧ ﻧﺠﺪﯼ ﺣﮑﻤﺮﺍﻥ ﺟﻨﺖﺍﻟﺒﻘﯿﻊ ﺍﻭﺭ ﺟﻨﺖ ﺍﻟﻤﻌﻠﯽ ٰ ﮐﮯ ﻣﺰﺍﺭﺍﺕ ﺩﻭﺑﺎﺭﮦ ﺗﻌﻤﯿﺮ ﮐﺮﻧﮯ ﭘﺮ ﻣﺠﺒﻮﺭ ﮨﻮﺟﺎﺋﯿﮟ.
ﺁﺝ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﯽ ﺑﮯ ﻋﻤﻠﯽﮐﺎ ﮨﯽ ﻧﺘﯿﺠﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺣﮑﻤﺮﺍﻥ ﺍﻧﮩﯿﮟﺟﺐ ﭼﺎﮨﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﺎ ﻣﻘﺪﺱ ﻧﺎﻡ ﻟﮯ ﮐﺮ ﺍﺳﻼﻡ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺷﻌﺎﺋﺮ ﮐﻮ ﻧﻘﺼﺎﻥ ﭘﮩﻨﭽﺎﻧﮯ ﺳﮯ ﮔﺮﯾﺰ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﺗﮯ۔

अंगूठों का चूमना

जब नबी -ए-पाक का नाम सुने तो
अपने अंगूठों को चूम कर आंखों से
लगा लिया करो।
क्योंकि।
हज़रत बिलाल (रजि, अल्लाह अनहो)
ने जब अजान दी ।
जब बिलाल रजि : अल्लाहू
अनहो।
असहदुदअनना मुहम्मददुरर रसूलअल्लाह।कहते तो
अबू बकर सिद्दीकी रजि : अल्लाहू
अनहो ने अपने अंगूठे चूम कर आंखों से लगा लिया
जब अजान
खत्म हुई।तो हुजूर ए पाक
सलल्लाहू अलैही वसल्लम ने
फरमाया ऐ मेरे सहाबियो।
सहाबियो नेे अरज किया
या
रसूलल्लाह सलल्लाहू अलैही वसल्लम।
आज हमने देखा के जब हज़रत
बिलाल।ने अजान
में।असहदुअनना मुहम्मददुरर रसूलुल्लाह।
कहा तो हजरते अबू बकर सिद्दीकी रजि : अल्लाहू तआला अन्हु।
ने अपने अंगूठे चूम कर आंखों पर
लगा लिये ।
तो हुजूर ए पाक
सलल्लाहू अलैही वसल्लम ने
इरशाद फ़रमाया
जो कोई ऐसा करेगा ,मै।मुहम्मद
सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जामिन
हूँ।के उसकी आँखे खराब नहीं होग
Tafseer Ruhul Bayan Jild 7 Page 229
(((सबक)))
अंगूठे चूमना सहाबिये रसूल हज़रते
अबू बकर सिद्दीकी रजि : अल्लाहू
तआला अन्हु की सुन्नत है।जो खुद
हुज़ूर सलल्लाहू अलैही वसल्लम ने
पसंद फरमाया।आज हम सुननी अलहमदुलिलाह उनकी सुननत पर
अमल करते हैं।

जानिए IPC में धाराओ का मतलब :

धारा 307 = हत्या की कोशिश
धारा 302 =हत्या का दंड
धारा 376 = बलात्कार
धारा 395 = डकैती
धारा 377= अप्राकृतिक कृत्य
धारा 396= डकैती के दौरान हत्या
धारा 120= षडयंत्र रचना
धारा 365= अपहरण
धारा 201= सबूत मिटाना
धारा 34= सामान आशय
धारा 412= छीनाझपटी
धारा 378= चोरी
धारा 141=विधिविरुद्ध जमाव
धारा 191= मिथ्यासाक्ष्य देना
धारा 300= हत्या करना
धारा 309= आत्महत्या की कोशिश
धारा 310= ठगी करना
धारा 312= गर्भपात करना
धारा 351= हमला करना
धारा 354= स्त्री लज्जाभंग
धारा 362= अपहरण
धारा 415= छल करना
धारा 445= गृहभेदंन
धारा 494= पति/पत्नी के जीवनकाल में पुनःविवाह0
धारा 499= मानहानि
धारा 511= आजीवन कारावास से दंडनीय अपराधों को करने के प्रयत्न के लिए दंड।
हमारेे देश में कानूनन कुछ ऐसी हकीक़तें है, जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं होने के कारण  हम अपने अधिकार से मेहरूम रह जाते है।

तो चलिए ऐसे ही कुछ  *5 रोचक फैक्ट्स* की जानकारी आपको देते है, जो जीवन में कभी भी उपयोगी हो सकती है.

��‍�� *1.  शाम के वक्त महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकती*-

कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेक्शन 46 के तहत शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 के पहले भारतीय पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती, फिर चाहे गुनाह कितना भी संगीन क्यों ना हो. अगर पुलिस ऐसा करते हुए पाई जाती है तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत (मामला) दर्ज की जा सकती है. इससे उस पुलिस अधिकारी की नौकरी खतरे में आ सकती है.

��‍�� *2. सिलेंडर फटने से जान-माल के नुकसान पर 40 लाख रूपये तक का बीमा कवर क्लेम कर सकते है*-

पब्लिक लायबिलिटी पॉलिसी के तहत अगर किसी कारण आपके घर में सिलेंडर फट जाता है और आपको जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता है तो आप तुरंत गैस कंपनी से बीमा कवर क्लेम कर सकते है. आपको बता दे कि गैस कंपनी से 40 लाख रूपये तक का बीमा क्लेम कराया जा सकता है. अगर कंपनी आपका क्लेम देने से मना करती है या टालती है तो इसकी शिकायत की जा सकती है. दोषी पाये जाने पर गैस कंपनी का लायसेंस रद्द हो सकता है.

��‍�� *3. कोई भी हॉटेल चाहे वो 5 स्टार ही क्यों ना हो… आप फ्री में पानी पी सकते है और वाश रूम इस्तमाल कर सकते है*-

इंडियन सीरीज एक्ट, 1887 के अनुसार आप देश के किसी भी हॉटेल में जाकर पानी मांगकर पी सकते है और उस हॉटल का वाश रूम भी इस्तमाल कर सकते है. हॉटेल छोटा हो या 5 स्टार, वो आपको रोक नही सकते. अगर हॉटेल का मालिक या कोई कर्मचारी आपको पानी पिलाने से या वाश रूम इस्तमाल करने से रोकता है तो आप उन पर कारवाई  कर सकते है. आपकी शिकायत से उस हॉटेल का लायसेंस रद्द हो सकता है.

��‍�� *4. गर्भवती महिलाओं को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता*-

मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के मुताबिक़ गर्भवती महिलाओं को अचानक नौकरी से नहीं निकाला जा सकता. मालिक को पहले तीन महीने की नोटिस देनी होगी और प्रेगनेंसी के दौरान लगने वाले खर्चे का कुछ हिस्सा देना होगा. अगर वो ऐसा नहीं करता है तो  उसके खिलाफ सरकारी रोज़गार संघटना में शिकायत कराई जा सकती है. इस शिकायत से कंपनी बंद हो सकती है या कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है.

��‍�� *5. पुलिस अफसर आपकी शिकायत लिखने से मना नहीं कर सकता*-

आईपीसी के सेक्शन 166ए के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी आपकी कोई भी शिकायत दर्ज करने से इंकार नही कर सकता. अगर वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ वरिष्ठ पुलिस दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. अगर वो पुलिस अफसर दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम 6 महीने से लेकर 1  साल तक की जेल हो सकती है या फिर उसे अपनी नौकरी गवानी पड़ सकती है.

ये वो रोचक फैक्ट्स है, जो हमारे देश के कानून के अंतर्गत आते तो है पर हम इनसे अंजान है. हमारी कोशिश होगी कि हम आगे भी ऐसी बहुत सी रोचक बातें आपके समक्ष रखे, जो आपके जीवन में उपयोगी हो। 

इत्र की बारिश

हुजुर सल्लल्लाहो अलेही व सल्लम के वालिद हज़रत
अब्दुल्ला आपको अम्मा हज़रत आमना के पेट में
ही छोड़कर दूनियाँ से रुखसत हो गये
सय्यदा आमना खातून अपनी जिन्दगी बसर कर रही हे
हज़रत की दादी ने हज़रत के दादा को एक दिन
इशारा करके बुलाया
और कहने लगी आपको पता हे ये बहु आमना इत्र
लगाती हे
हज़रत की दादी कहने लगी में तो बड़ी परेशान हु
क्या करू आप आमना से पुछिये
हज़रत के दादा ने जवाब दिया तू पूछ लेती तूने
क्यों ना पूछा
हज़रत की दादी कहने लगी हज़रत के दादा हज़रत
मुत्तलिब से में तुम्हे क्या बताऊ मेने कई
मरतबा इरादा किया मेने बुलाया लेकिन में जब
आमना बहु के चहरे पे नज़र डालती हु तो में
पसीना पसीना हो जाती हु.
आमना के चहरे पे इतनी चमक हे इतना रोब हे में तो इससे
पूछ नही सकती हू आप ही पूछो
हज़रत के दादा कहने लगे तू तो औरत जात हे घर में
बेठी रहती हे में तो मर्द हु बाहर रहता मक्का में कुरेश
का सरदार हु मुझसे जो भी मिलता हे मोहल्ले में ओ
पूछता हे ऐ अब्दुल मुत्तलिब तेरे घर में इत्र की बारिश
कहा से हो रही हे.
और अब्दुल मुत्तलिब ने हज़रत की दादी से कहा ये
जो खुशबु आती हे ये जिस कमरे में जाती वहा खुशबु
आती हे ये गुसलखाने में जाती हे वहा भी खुशबु आती हे
और ये थूकती हे तो थूक में भी खुशबु आती हे
(कुर्बान जाऊ आमना के बेटे हज़रत मोहम्मद
सल्लल्लाहो अलेही व सल्लम पर)
और हज़रत के दादा हज़रत की दादी से कहने लगे
तुझे एक और बात बताऊ ये जो खुशबु आती हे ये कोई मामूली इत्र नही है
ये ईराक का इत्र नही
ये पलस्तिन का इत्र नही
ये कीसी देश का इत्र नही
ये कोई ख़ास खुशबु हे
तो हज़रत की दादी कहने लगी फिर पूछ लो
हज़रत के दादा ने हिम्मत करके आवाज़
दी आमना बेटी इधर आओ
आपकी माँ आमना तशरीफ़ ले आई
(उस माँ की अज़मतो का क्या कहना जिसके पेट में 9
महीने इमामुल अम्बियाँ ने बसेरा किया हो)
आपके दादा आपकी माँ आमना से कहने लगे
बेटी आमना तुझे पता हे में बेतुल्ला का मुत्तल्ली हु
खाना ऐ काबा का मुत्तल्ली हु सरदार हु कुरेश
का मुखिया हु इज्ज़त वाला हु आबरू वाला हु पर में
जहा भी जाता हु लोग मुझसे पूछते हे अब्दुल मुत्तल्लिब
तेरे घर से इत्र की खुशबु आती हे
बेटी एक बात बता में इत्र नही लगाता तेरी माँ इत्र
नही लगाती फिर तू ये इत्र कहा से लाती हो और ये
भी में जानता हु ये कोई आम इत्र नही हे।
सय्यदा खातून आमना(र.अ.) की आखों से आसू शुरू
हो गये
और फरमाने लगी अब्बा क्या बताऊ मेने
सारी जिन्दगी में इत्र खरीदा नही मुझे लाके किसी ने
इत्र दिया नहीं मुझे अच्छे बुरे इत्र की पहचान नही मेने
इतर वाले की दूकान देखी नही में बाज़ार कभी गई
नही मुझे किसी सहेली ने लाके नही दिया मुझे
किसी मुलाजिम ने लाके नही दिया मेरे घर वालो ने
लाके नही दिया मेने सारी जिन्दगी में
खरीदा कभी नही
पर अब्बा इक बात बताती हु न तुमने खरीदा न मेने
खरीदा
न किसी और ने लाके दिया
ऐसा मालुम होता हे(अपने पेट पे हाथ रख के कहा)
इस आने वाले मेहमान की बरकत हे।
और कहने लगी अब्बा तुमने तो सिर्फ खुशबु सुंगी हे
अगर में कुछ और बताऊ तो दीवानी कहोगे
फरमाती हे ऐ अब्बा ये सूरज कई मरतबा मुझे सलाम
करता हे
ये चाँद मुझे सलाम करता हे
जब में सोती हु ऐसी औरते जो ना तुमने देखी ना मेने
देखी खड़ी होकर मुझे पंखा झलती हे
सुब्हान अल्लाह.