स्वामी विवेकानंद (विश्व-विख्यात धर्मविद्)
इस्लाम के बारे में विचार
हमारा अनुभव है कि यदि किसी धर्म के अनुयायियों ने इस (इन्सानी) बराबरी को दिन-प्रतिदिन के जीवन में व्यावहारिक स्तर पर बरता है तो वे इस्लाम और सिर्फ़ इस्लाम के अनुयायी हैं। … मुहम्मद साहब ने अपने जीवन-आचरण से यह बात सिद्ध कर दी कि मुसलमानों में भरपूर बराबरी और भाईचारा है। यहाँ वर्ण, नस्ल, रंग या लिंग (के भेद) का कोई प्रश्न ही नहीं। … इसलिए हमारा पक्का विश्वास है कि व्यावहारिक इस्लाम की मदद लिए बिना वेदांती सिद्धांत—चाहे वे कितने ही उत्तम और अद्भुत हों विशाल मानव-जाति के लिए मूल्यहीन (Valueless) हैं …”
— टीचिंग्स ऑफ विवेकानंद, पृष्ठ-214, 215, 217, 218) अद्वैत आश्रम, कोलकाता-2004
तरुण विजय सम्पादक, हिन्दी साप्ताहिक ‘पाञ्चजन्य’
(राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ पत्रिका)
इस्लाम के बारे में विचार
‘‘…क्या इससे इन्कार मुम्किन है कि पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) एक ऐसी जीवन-पद्धति बनाने और सुनियोजित करने वाली महान विभूति थे जिसे इस संसार ने पहले कभी नहीं देखा? उन्होंने इतिहास की काया पलट दी और हमारे विश्व के हर क्षेत्र पर प्रभाव डाला। अतः अगर मैं कहूँ कि इस्लाम बुरा है तो इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया भर में रहने वाले इस धर्म के अरबों (Billions) अनुयायियों के पास इतनी बुद्धि-विवेक नहीं है कि वे जिस धर्म के लिए जीते-मरते हैं उसी का विश्लेषण और उसकी रूपरेखा का अनुभव कर सके। इस धर्म के अनुयायियों ने मानव-जीवन के लगभग सारे क्षेत्रों में बड़ा नाम कमाया और हर किसी से उन्हें सम्मान मिला…।’’
‘‘हम उन (मुसलमानों) की किताबों का, या पैग़म्बर (सल्ल॰) के जीवन-वृत्तांत का, या उनके विकास व उन्नति के इतिहास का अध्ययन
कम ही करते हैं… हममें से
कितनों ने तवज्जोह के साथ उस परिस्थिति पर विचार किया है जो मुहम्मद के, पैग़म्बर बनने के समय, 14 शताब्दियों पहले विद्यमान थे और जिनका
बेमिसाल, प्रबल मुक़ाबला
उन्होंने किया? जिस प्रकार से
एक अकेले व्यक्ति के दृढ़ आत्म-बल तथा आयोजन-क्षमता ने हमारी ज़िन्दगियों को
प्रभावित किया और समाज में उससे एक निर्णायक परिवर्तन आ गया, वह असाधारण था। फिर भी इसकी गतिशीलता के
प्रति हमारा जो अज्ञान है वह हमारे लिए एक ऐसे मूर्खता के सिवाय और कुछ नहीं है
जिसे माफ़ नहीं किया जा सकता।’’
‘‘पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) ने अपने बचपन से ही बड़ी कठिनाइयाँ झेलीं। उनके पिता
की मृत्यु, उनके जन्म से
पहले ही हो गई और माता की भी, जबकि वह सीर्फ़ छः (६) वर्ष के थे। लेकिन वह बहुत ही बुद्धिमान थे और अक्सर लोग
आपसी झगड़े उन्हीं के द्वारा सुलझवाया करते थे। उन्होंने परस्पर युद्धरत क़बीलों के
बीच शान्ति स्थापित की और सारे क़बीलों में ‘अल-अमीन’ (विश्वसनीय) कहलाए जाने का सम्मान प्राप्त
किया जबकि उनकी आयु मात्रा 35 वर्ष थी।
इस्लाम का मूल-अर्थ ‘शान्ति’ था…। शीघ्र ही ऐसे अनेक व्यक्तियों ने इस्लाम ग्रहण कर लिया, उनमें ज़ैद जैसे गु़लाम (Slave) भी थे, जो सामाजिक न्याय से वंचित थे। मुहम्मद (सल्ल॰) के ख़िलाफ़ तलवारों का निकल आना कुछ आश्चर्यजनक न था, जिसने उन्हें (जन्म-भूमि ‘मक्का’ से) मदीना प्रस्थान करने पर विवश कर दिया और उन्हें जल्द ही 900 की सेना का, जिसमें 700 ऊँट और 300 घोड़े थे मुक़ाबला करना पड़ा। 17 रमज़ान, शुक्रवार के दिन उन्होंने (शत्रु-सेना से) अपने 300 अनुयायियों और 4 घोड़ों (की सेना) के साथ बद्र की लड़ाई लड़ी। बाक़ी वृत्तांत इतिहास का हिस्सा है। शहादत, विजय, अल्लाह की मदद और (अपने) धर्म में अडिग विश्वास!’’
— आलेख (‘Know Thy Neighbor, It’s Ramzan’
अंग्रेज़ी दैनिक ‘एशियन एज’, 17 नवम्बर 2003 से उद्धृत
इस्लाम का मूल-अर्थ ‘शान्ति’ था…। शीघ्र ही ऐसे अनेक व्यक्तियों ने इस्लाम ग्रहण कर लिया, उनमें ज़ैद जैसे गु़लाम (Slave) भी थे, जो सामाजिक न्याय से वंचित थे। मुहम्मद (सल्ल॰) के ख़िलाफ़ तलवारों का निकल आना कुछ आश्चर्यजनक न था, जिसने उन्हें (जन्म-भूमि ‘मक्का’ से) मदीना प्रस्थान करने पर विवश कर दिया और उन्हें जल्द ही 900 की सेना का, जिसमें 700 ऊँट और 300 घोड़े थे मुक़ाबला करना पड़ा। 17 रमज़ान, शुक्रवार के दिन उन्होंने (शत्रु-सेना से) अपने 300 अनुयायियों और 4 घोड़ों (की सेना) के साथ बद्र की लड़ाई लड़ी। बाक़ी वृत्तांत इतिहास का हिस्सा है। शहादत, विजय, अल्लाह की मदद और (अपने) धर्म में अडिग विश्वास!’’
— आलेख (‘Know Thy Neighbor, It’s Ramzan’
अंग्रेज़ी दैनिक ‘एशियन एज’, 17 नवम्बर 2003 से उद्धृत
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