एक आम मुसलमान का तन्हा नमाज़ पढ़न गोया 1 बड़ी फौज से जंग करने से भी बड़ा है क्युंकि नमाज़ के तमाम उसूल उसको अकेले हीदेखने होंगे मसलन शरायत फ़रायज़ वाजिबात सुन्नत मुस्तहिबात मकरूहे तहरीमी मकरूहे तनज़ीही फासिदाते नमाज़ और ख़ासकर क़ुरान पढ़ने में मख़रज की अदायगी और इन तमाम शरायतों का पूरा कर पाना एक आम मुसलमान के लिए बहुत मुश्किल और तक़रीबन ना मुमकिन है
लेकिन अगर इमाम के पीछे यानि बा जमात नमाज़ पढ़ते है तो सिर्फ कुछ खास बातों को ही नज़र में रखे और उसपर अमल करने से ही उसकी नमाज़ हो जायेगी इंशा अल्लाह
* इमाम कैसा हो *
1. सबसे पहले ये देखें कि इमाम सुन्नी सहिउल अक़ीदा है कि नहीं क्यूंकि वहाबी देवबंदी क़ादियानी खारजी शिया अहले हदीस जमाते इस्लामी व दीगर बदमज़हब के मानने वालों को इमाम बनना हराम है और माज़ अल्लाह अगर उन्हें मुसलमान जाने जब तो काफिर है
फतावा रज़,जिल्द 3,सफह 234-240
2. सुन्नी सहिउल अक़ीदा इमाम होने के बावजूद इमाम के अंदर इमामत की शरायत पाया जाना बेहद ज़रूरी है जो हस्बे ज़ैल हैं
! सूद खाने वाला
! बे उज़्र शरई रोज़ा न रखने वाला
! जानबूझकर नमाज़ छोड़ने वाला
! झूठ बोलने वाला
! धोखा देने वाला
! फहश कलामी करने वाला
! नाच गाना देखने वाला
! नजूमी यानि एस्ट्रोलॉजर
! बाद मज़हबो से मेल जोल रखने वाला
! दाढ़ी एक मुश्त तक न रखने वाला
! सुन्नतों का अलल एलान इंकार करने वाला
! अपनी बीवी को बेपर्दा निकलने पर न रोकने वाला
हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ इमाम नहीं बन सकता अगर ऐसे इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ वाजिबुल इयादा होगी यानि उस नमाज़ को दोबारा पढ़ना वाजिब होगा
फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 151-158-257-204-208-217-255-269-266-201-215-219
3. इसके अलावा वो सहिउल क़िरात व मसाइले नमाज़ से अच्छी तरह वाक़िफ हो
फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 264
4. अगर सुन्नी सहिउल अक़ीदा इमाम के अंदर ये तमाम खराबी मौजूद हो तो तनहा नमाज़ पढ़ें और अगर इमाम ये सारे गुनाह करता तो है मगर अवाम में मशहूर नहीं है यानि छिपकर ये गुनाह करता है तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ लें
फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 253
* मुक़्तदी क्या न करे *
5. उल्टा कपड़ा पहनकर,जानदार तस्वीर वाला,या कपड़ा होते हुए हाफ शर्ट पहनकर या आस्तीन या जीन्स मोड़कर,या लोहा पीतल तांबा सोने की अंगूठी पहनकर या चांदी की 4.3 ग्राम से ज्यादा की 1 अंगूठी या चांदी की 2 अंगूठी पहनकर,चैन या चैनदार घड़ी पहनकर नमाज़ पढ़ना मकरुहे तहरीमी है यानि वाजिबुल इयादा है
फतावा रज़विया,जिल्द 3,सफ़ह 438-48
6. मर्द को जूडा बांधना मकरुहे तहरीमी है नमाज़ वाजिबुल इयादा है
फतावा रज़विया, जिल्द 3,सफ़ह 417
7. सजदे में पैर की 1 उंगली का पेट ज़मीन से लगना यानि की मोड़कर ज़मीन पर रखना फ़र्ज़ है व दोनों पैरों की 3,3 ऊँगली का पेट लगना वाजिब है अगर फ़र्ज़ छूट गया तो नमाज़ सिरे से होगी ही नहीं और वाजिब छूटा तो नमाज़ वाजिबुल इयादा है
फतावा रज़विया, जिल्द 1,सफ़ह 556
8. कुछ लोग सजदे में जाते वक़्त दोनों हाथ से पैजामा या जीन्स ऊपर खींचते हैं ऐसा करना मकरुहे तहरीमी है उस नमाज़ को दोहराना वाजिब है
फतावा रज़विया, जिल्द 3,सफ़ह 416
9. 1 रुक्न में 3 बार हाथ हटाने या खुजाने से नमाज़ फ़ासिद हो जायेगी यानि जैसे ही तीसरी बार हाथ हटाया तो फ़ौरन नमाज़ से बाहर हो गया
बहारे शरीअत,हिस्सा 3,सफह 132
10. रुकू की तस्बीह में अज़ीम के माने बड़ा और अजीम के माने गूंगा तो जिन लोगों से रुकू में सुबहाना रब्बियल अज़ीम न बने तो वो सुबहाना रब्बियल करीम पढ़ें अजीम हरगिज़ न पढ़ें वरना नमाज़ तो होगी ही नहीं उल्टा गुनहगार अलग से होगा
मोमिन की नमाज़ सफह 107
11. रुकू से उठने के बाद और दोनों सजदो के बीच में कमर को एक दम सीधा करना वाजिब है अगर इसको तर्क किया तो नमाज़ मकरुहे तहरीमी होगी
बहारे शरीअत,हिस्सा 3,सफह 132
12. कपडा व दाढ़ी से खेलना,उंगलिया चटखाना,सजदे से उठते वक़्त दामन को सीधा करना,कन्धा या सीना खुला रखना,मर्द का सजदे में कलाई को ज़मीन पर बिछाना इमाम से पहले कोई रुक्न अदा करना ये सब मकरुहे तहरीमी है
बहारे शरीअत,हिस्सा 3,सफह 165-205-167
एतिकाफ़ की दो किस्में हैं
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1- फ़र्ज़,
2- सुन्नत
#फ़र्ज़ वह है कि जो मन्नत मानकर अपने ज़िम्मे लाज़िम कर ले यह कहे कि अल्लाह के वास्ते एतिकाफ़ करूंगा तो उसका अदा करना फ़र्ज़ है।हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस्लाम से पहले एतिकाफ़ की मन्नत मानी थी।रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से दर्याफ़्त किया तो आपने फ़रमाया कि तुम अपनी मन्नत पूरी करो।रमज़ान शरीफ़ के आख़िरी अशरे में (दस दिनों में)एतिकाफ़ सुन्नत है।हज़रत आएशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमातीं हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हमेशा रमज़ान शरीफ़ के आख़िरी अशरे में विसाल तक एतिकाफ़ किया।
(बुख़ारी)