हज़रत ए इमा म आज़म अबू हनीफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु


 आपका नाम नोअमान वालिद का नाम साबित और कुन्नियत अबू हनीफा है, आप 80 हिजरी में पैदा हुए )खैरातुल हिसान,सफह 70(

हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि आपका ज़िक्र तौरैत शरीफ में भी यूं मौजूद है कि "मुहम्मद सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की उम्मत में एक नूर होगा जिसकी कुन्नियत अबू हनीफा होगी (तआर्रुफ फिक़ह व तसव्वुफ,सफह 225)

 

 खुद हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि "मेरी उम्मत में एक मर्द पैदा होगा जिसका नाम अबू हनीफा होगा वो क़यामत में मेरी उम्मत का चराग़ है (मनाक़िबिल मोफिक,सफह 50)

 

बुखारी व मुस्लिम शरीफ की हदीसे पाक है हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "अगर ईमान सुरैया के पास भी होता तो फारस का एक शख्स उसे हासिल कर लेता" इस हदीस की शरह में हज़रत जलाल उद्दीन सुयूती रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि उस शख्स से मुराद इमामे आज़म अबू हनीफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं  (तबयिदुल सहीफा,सफह 7)

 

सुरैया चौथे आसमान पर एक सितारे का नाम है

आप ताबईन इकराम के गिरोह से हैं क्योंकि आपने कई सहाबा इकराम की ज़ियारत की है,बाज़ ने 20 सहाबी से मुलाक़ात का ज़िक्र किया और बाज़ ने 26 और भी इख्तिलाफ पाया जाता है,मगर इसमें कोई इख्तेलाफ नहीं कि आपकी सहाबियों से मुलाक़ात ना हुई हो क्योंकि खुद बराहे रास्त आपने 7 सहाबा इकराम से हदीस सुनी है जिनमे सबसे अफज़ल सय्यदना अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं,फिर अब्दुल्लाह बिन हारिस,जाबिर बिन अब्दुल्लाह,मअकल बिन यसार,वासला बिन यस्क़ा,अब्दुल्लाह बिन अनीस,आयशा बिन्त अजरद रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन शामिल हैं (बे बहाये इमामे आज़म,सफह 62)

 

 हज़रत दाता गंज बख्श लाहौरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि एक मर्तबा आपने गोशा नशीन होने का इरादा फरमा लिया था,रात को हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ख्वाब में तशरीफ लाये और फरमाया कि "ऐ अबू हनीफा तेरी ज़िन्दगी अहयाये सुन्नत के लिए है तू गोशा नशीनी का इरादा तर्क कर दे" तो आपने ये इरादा तर्क कर दिया (कशफुल महजूब, सफह 162)

 

फिक़ह हनफी पर ऐतराज़ करने वालों और हर बात में बुखारी बुखारी की रट लगाने वालो देखो कि इमाम बुखारी ने इल्म किससे सीखा, इमाम बुखारी के उस्ताज़ हैं इमाम अहमद बिन हम्बल उनके उस्ताज़ हैं इमाम शाफई उनके उस्ताज़ हैं इमाम मुहम्मद उनके उस्ताज़ हैं इमाम अबू यूसुफ और आप के उस्ताज़ हैं इमामुल अइम्मा इमामे आज़म रिज़वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन (इमामे आज़म,सफह 195)

 

 आपसे बेशुमार करामतें ज़ाहिर है और बेशुमार वाक़ियात किताबों में मौजूद है,चन्द यहां ज़िक्र करता हूं:

क़ुरान मुक़द्दस को 1 रकात में पढ़ने वाले 4 हज़रात हैं जिनमे हज़रत उसमान ग़नी, हज़रत तमीम दारी, हज़रत सईद बिन जुबैर, और हमारे इमाम इमामे आज़म रिज़वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन हैं (क्या आप जानते हैं,सफह 211)

 

 इमाम ज़हबी रहमतुल्लाह तआला अलैही फरमाते हैं कि आपका पूरी रात इबादत करना तवातर से साबित है और 30 सालों तक 1 रकात में क़ुरान पढ़ते रहे और 40 सालों तक ईशा के वुज़ू से फज्र अदा की,आप रमज़ान में 61 कलाम पाक खत्म किया करते थे एक दिन में एक रात में और एक पूरे महीने की तरावीह में, आपने 55 हज किये (इमामे आज़म,सफह 75)

 

आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर रूए ज़मीन के आधे इंसानो के साथ इमामे आज़म की अक़्ल को तौला जाए तो इमामे आज़म की अक़्ल भारी होगी ( फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 123)

 

आप जब रौज़ए अनवर पर हाज़िरी देते और सलाम पेश करते तो जाली मुबारक से आवाज़ आती व अलैकुम अस्सलाम या इमामुल मुस्लेमीन  (तज़किरातुल औलिया,सफह 165)

 

एक मर्तबा एक दहरिये (नास्तिक यानि खुदा का मुनकिर) से आपका मुनाज़रा तय हुआ,आप मुनाज़रे में काफी देर से पहुंचे तो उसने देर से आने की वजह पूछी तो आप फरमाते हैं कि अगर मैं ये कहूं कि अभी अभी मैंने एक बड़ी ही अजीब बात देखी ये कि मैं एक जंगल की तरफ निकल गया वहां एक नदी थी अचानक एक पेड़ खुद से कटकर गिर गया फिर उसकी लकड़ी से फौरन ही कश्ती बन गयी फिर वो कश्ती नदी में खुद ही चलने लगी और मुसाफिरों को इधर से उधर छोड़ने लगी और पैसा भी खुद वसूल करती तो क्या तुम मान लोगे,ये सुनकर वो हंसने लगा कि आप इतने बड़े इमाम होकर ऐसी बात करते हैं क्या कहीं खुद से पेड़ भी कट सकता है और क्या खुद से कश्ती बन सकती है ये तो मुमकिन ही नहीं तो इमामे आज़म फ़रमाते हैं कि सोचो जब एक कश्ती खुद से नहीं बन सकती तो फिर इतनी बड़ी दुनिया ये ज़मीन आसमान ये सूरज चांद सितारे ये सब खुद बखुद कैसे बन सकते हैं,अब जब दहरिये ने ये सुना तो उसकी दिल की दुनिया बदल गई फौरन आपके क़दमों में गिरा और मुसलमान हो गया ( तफसीरे कबीर,जिल्द 1,सफह 221)

 

एक शादी में दो भाईयों की शादी दो बहनों से हुई,मगर इत्तेफाक ये हुआ कि एक दूसरे की दुल्हनें बदल गयी छोटे की दुल्हन बड़े के पास और बड़े की दुल्हन छोटे के पास चली गयी,जब दूसरे दिन लोगों को मालूम हुआ तो घर वाले सब परेशान हाल हज़रत सूफियान के पास पहुंचे और उनसे सारी बात बताई उन्होंने कहा कोई बात नहीं ये गलती से हुआ है लिहाज़ा सोहबत की वजह से महर वाजिब हो गया है वो अदा कर दें और आज रात जिसकी शादी जिसके साथ हुई है वो उसी के साथ रहे,जब हज़रत इमामे आज़म से पूछा गया तो आपने दोनों लड़कों को बुलाया और पूछा कि रात तुमने जिसके साथ गुज़ारी क्या वो तुम्हे पसंद है दोनों ने हां कहा,तो आप फरमाते हैं कि इसका बेहतरीन रास्ता ये है कि दोनों अपनी अपनी बीवियों को तलाक़ दे दें चुंकि बीवी से सोहबत हुई ही नहीं इसलिए इद्दत इन पर वाजिब नहीं और जिसके साथ रात गुज़री उनसे निकाह कर ले फौरन ही दोनों ने अपनी अपनी बीवियों को तलाक़ दिया और रात जिसके साथ गुज़ारी थी उनसे निकाह हो गया ( जवाहिरूल बयान,सफह 86)

 

विसाल: आपका विसाल 2 शाबान 150 हिजरी में हुआ,6 बार आपकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी गयी और क़ब्र पर तो 20 दिन तक नमाज़ होती रही,आपके विसाल पर जिन्नात भी रो पड़े थे (इमामे आज़म,सफह 132)