Jism Mubaarak


बिस्मिल्लाहिर्रह्मानिर्रहीम
अस्सलातु वास्सलामु अलै क या रसूलल्लाह
                                                                 
क्या हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का पवित्र शरीर भी नूरी था ?
हज़रत अल्लामा सय्यद अहमद शाह काज़मी अलिहिर्रह्मा "रिसाला मीलादुन्नबी" के पृष्ठ नम्बर १५ पर फरमाते हैं कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम का शरीर भी नूर था | इस विषय पर आज कल के नवजात देवबंदिया संगठन से संबंध रखने वाले, बात बात पर शिर्क एवं कुफ्र का फ़तवा दागने वाले विरोध करते हैं और अहले सुन्नत व जमात के अभद्र शब्द का निशाना बनाते हैं इस लिए इस मुद्दे का सुबूत विद्वान अहले सुन्नत के पुस्तक से और खुद देवबंदीयूँ की पुस्तक से प्रस्तुत किया जा रहा है | यह लेख मुजाहिदे अहले सुन्नत अबू कलीम मुहम्मद सादिक फ़ानी अलैहिर्रहमा की पुस्तक "आईना अहले सुन्नत" से लिया गया है | अल्लाह तआला लेखक को करवट करवट जन्नत पर्दान करे और विरोधीयूँ को अल्लाह तआला सत्य कुबूल करने की तौफीक़ दे आमीन |
प्रस्तावना : शाने रज़ा क़ादरी
अबू कलीम मुहम्मद सिद्दीक़ फ़ानी साहब मरहूम, अल्लामा अहमद सईद शाह काज़मी अलैहिर्रहमा की उपर वाली लेख नक़ल करने के बाद फरमाते हैं कि
"अगर इस अक़ीदा की बिना पर कि "हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम का शरीर भी नूर था" आप (विरोधीयूँ) ने अल्लामा काज़मी अलैहिर्रहमा की व्यक्तित्व को अभद्र शब्द का निशाना बनाया है तो उन विद्वान अहले सुन्नत और देवबंदी विचार धारा के गुरुऔं के संबंधित भी आदेश जारी करें जिन के भाषण अल्लामा अहमद सईद शाह काज़मी अलैहिर्रहमा की समर्थन एवं पुष्टि करते हैं ताकि आप की सत्यता एवं वीरता का अनुमान हो सके की आप सत्य बात कहने में किस क़दर बे बाक हैं | 
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वह क़त्ल  भी करते  हैं तो चर्चा  नहीं होता
१.      मुफ़्ती इनायत अहमद काकोरवी रहमतुल्ला हि अलैह (मृत्यु १२७९ हिज्री) फ़रमाते हैं : आप का शरीर नूर - इस वजह से आपका छाया ना था |
(तारीखे हबीबे इलाह पृष्ठ १६१ प्रकाशित भारत, द्वारा मुफ़्ती इनायत अहमद रहमतुल्ला हि अलैह)
२.      हज़रत शाह अहमद सईद मुहद्दिस देहलवी सुम्म अल मदनी रहमतुल्ला हि अलैह (मृत्यु १२७७ हिज्री) फरमाते हैं :
"छाया आपका का ना था, शरीर आपका नूरी था"
(सईदुल बयान फ़ी मौलिद सय्येदुल इन्स व जान पृष्ठ ११३ प्रकाशित गोजर नुवाला १९८२ द्वारा : शाह अहमद सईद रहमतुल्ला हि अलैह)
३.      हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्ला हि अलैह (मृत्यु १०५२ हिज्री) फरमाते हैं :
"आँ हजरत सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम सिर अक़दस से पैर मुबारक तक सरासर नूर थे"
(मदरिजुन नुबुव्वा फारसी पृष्ठ १३७ भाग प्रथम)
४.      अल्लामा जलाल उद्दीन सियूती अश-शाफ़ई (मृत्यु ९११ हिज्री) फरमाते हैं :
इब्न सबअ ने हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम की व्यक्तित्व के संबंध में कहा कि आपका छाया धुप एवं चांदनी दोनों में इस वजह से ना था कि आप सर ता पा (सिर अक़दस से पैर मुबारक तक) नूर थे |
(खसा ऐ से कुबरा पृष्ठ १६९ प्रकाशित कराची पाकिस्तान १९७६ द्वारा : इमाम जलाल उद्दीन सियूती अश-शाफ़ई रहमतुल्ला हि अलैह)
५.      मुल्ला अली क़ारी रहमतुल्ला हि अलैह (मृत्यु १०१४ हिज्री) फरमाते हैं :
 हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम का हृदय मुबारक और शरीर नूर था और सभी नूर इसी नूर से प्रकाशित एवं लाभ आभारी हैं |
(शरह शिफ़ा बर हाशिया नसीमुर्रियाज़ पृष्ठ २१५ भाग प्रथम प्रकाशित मुल्तान द्वारा : मुल्ला अली क़ारी रहमतुल्ला हि अलैह)
६.      काज़ी अयाज़ मालकी उन्दुलिसी रहमतुल्ला हि अलैह (मृत्यु ५४४ हिज्री) फरमाते हैं :
आप सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के पवित्र शरीर का छाया ना धूप में होता और ना चाँदनी में क्यूंकि आप नूर थे |
(अश्शिफा अनुवादित पृष्ठ ५५२ भाग प्रथम प्रकाशित लाहौर)
७.      अल्लामा इब्ने हजर मक्की रहमतुल्ला हिअलैह (मृत्यु ९७३ हिज्री) फरमाते हैं :
हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम पाबन्दी के साथ यह दुआ फरमाते थे कि ईलाही मेरे तमाम इन्द्रियों एवं अंगें सारे शरीर को नूर कर दे और इस दुआ से लक्ष्य यह नहीं कि नूर होना अभी हासिल ना था कि इसका अधिग्रहण माँगते थे बल्कि यह दुआ इस बात के प्रकट करने के लिए थे कि हकीक़त में हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम का तमाम का शरीर नूर था और यह कृपा अल्लाह त आला ने हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम पर कर दिया जैसा कि हमें हुक्म हुवा कि सुरह बकरा शरीफ के अंत की प्रार्थना करें वोह भी इस गुणवत्ता के प्रकट अल्लाह त आला के कृपा के है और हुजुर अलैहिस्सलातु व सलाम के मात्र नूर हो जाने की पुष्टि इससे होती है कि धूप या चाँदनी में हुजुर का छाया पैदा न होता | इसलिए कि छाया तो क्सीफ (गढ़ा) होता है और हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम को अल्लाह त आल़ा ने तमाम शारीरिक कसाफ़तों से शुद्ध करके सरापा नूर कर दिया लिहाज़ा हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के लिए छाया असलन न था |
(अफ्ज़लुल क़ र उल कुर्रा उम्मुल कुर्रा शरह उम्मुल कुर्रा शरह नम्बर २ पृष्ठ १२८,१२९, भाग प्रथम प्रकाशित अबू ज़हबी)
८.      मौलाना अब्दुलहई लखनवी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं :
बेशक नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब धूप और चाँदनी में चलते थे तो आपका छाया जमीन पर नहीं पड़ता था क्यूंकि छाया कसीफ (गढ़ा) होता है और आप की व्यक्तित्व सर से क़दम तक नूर है |
(अत्तालीक अल अल अजीब पृष्ठ १३, ब हवाला अल अल अनवा रुल मुहम्मदिया पृष्ठ १६३)
९.      मुफ़्ती शफ़ी देवबंदी का फ़तवा :
प्रशन : वह हदीस कौन सी  है जिस में कि रसूले मकबूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का छाया जमीन पर स्थित नहीं होता था ?
उत्तर : इमाम सियूती ने खसा ए से कुबरा में आँ हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का छाया ज़मीन पर स्थित ना होने के बारे में यह हदीस नक़ल फरमाई है "اخرج الحکیم الترمذی عن ذکوان ان رسول ﷺ لم یکن یری لہ ظل فی الشمس ولا قمر الخ"   और “तावारिखे हबीबे इलाह” में इनायत अहमद काकोरवी रहमतुल्ला हि अलैह लिखते हैं कि आप का शरीर नूर इसी वजह से आपका छाया ना था | मौलाना जामी रहमतुल्ला हि अलैह ने आप के छाया ना होने का खूब नुक्ता लिखा है इस कत-आ में :
पैगम्बर   मा   न  दाश्त   साया
ताशक बदिल यकीन नी फ   तनद
यानि हर  कस  कि  पीर दे उसत
पैदास्त कि या ज़मीन नीफ़ त नद
(फ़तवा दारुल उलूम देवबंद पृष्ठ १६३ भाग प्रथम प्रकाशित दारुल अशा अत कराची)
१०.  मौलवी अशरफ़अली देवबंदी लिखता है:
हमारे हुजुर (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) सर ता पा नूर थे हुजुर (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) मैं जुल्मत (अंधेर) नाम को भी ना थी इसलिए आप का छाया ना था |
(शुक्रून नि अ म त बि ज़िक्रे रह्मतुर्रह्मा पृष्ठ ३१ प्रकाशित कराची)
११.  कारी मुहम्मद तय्येब देवबंदी लिखता है:
कि आप (नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) के पवित्र शरीर जमाल मुबारक और हकीक़त पाक सब ही में नूरानियत और आकर्षित नज़र आती है |
(आफ़ताबे नुबूवत पृष्ठ ४९ प्रकाशित लाहौर १९८० ई.)
१२.  मौलवी आबिद मियां देवबंदी :
अपनी लेखन रहमतुल लिल आ ल मीन (डाभेल) में लिखता है :
आँ हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का पवित्र शरीर नूरानी था जिस समय आप धूप और चाँदनी रात मैं आमद व रफत (चलते-फिरते) फरमाते थे तो बिलकुल छाया प्रकट न होता |
(रहमतुल लिल आ ल मीन पृष्ठ ५३ प्रकाशित कराची)
इस पुस्तक पर निम्नलिखित देवबंदी विचार धारा के विद्वान की प्रस्तावना एवं समर्थन दर्ज हैं |
१. मुफ़्ती किफायतुल्ला देहलव
२. मौलवी अनवर शाह कश्मीरी
३. मौलवी असगर हुसैन
४. मौलवी शब्बीर अहमद उस्मानी     
५. मौलवी हबीबुर्रहमान
६. मौलवी एअ ज़ाज़ अली
७. मौलवी अब्दुश्शाकूर लखनवी
८. मौलवी अहमद सईद (देवबंदी)



(अनुवादक : आले रसूल अहमद अल-अशरफ़ी अल-क़ादरी)