डॉ॰ बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर
(बैरिस्टर, अध्यक्ष-संविधान निर्मात्री सभा)
इस्लाम के बारे में विचार
— ‘दस स्पोक अम्बेडकर’ चौथा खंड—भगवान दास पृष्ठ 144-145 से उद्धृत
राजेन्द्र नारायण लाल (एम॰ ए॰ (इतिहास) काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय)
इस्लाम के बारे में विचार
इस प्रश्न या शंका का संक्षिप्त उत्तर तो यह है कि जिस काल में इस्लाम का उदय हुआ उन धर्मों के आचरणहीन अनुयायियों ने धर्म को भी भ्रष्ट कर दिया था। अतः मानव कल्याण हेतु ईश्वर की इच्छा द्वारा इस्लाम सफल हुआ और संसार में फैला, इसका साक्षी इतिहास है…।’’
‘‘…इस्लाम को तलवार की शक्ति से प्रसारित होना बताने वाले (लोग) इस तथ्य से अवगत
होंगे कि अरब मुसलमानों के ग़ैर-मुस्लिम विजेता तातारियों ने विजय के बाद विजित
अरबों का इस्लाम धर्म स्वयं ही स्वीकार कर लिया। ऐसी विचित्र घटना कैसे घट गई? तलवार की शक्ति जो विजेताओं के पास थी वह
इस्लाम से विजित क्यों हो गई…?’’
‘‘…मुसलमानों का अस्तित्व भारत के लिए वरदान ही सिद्ध हुआ। उत्तर और दक्षिण भारत
की एकता का श्रेय मुस्लिम साम्राज्य, और केवल मुस्लिम साम्राज्य को ही प्राप्त है।
मुसलमानों का समतावाद भी हिन्दुओं को प्रभावित किए बिना नहीं रहा। अधिकतर हिन्दू
सुधारक जैसे रामानुज, रामानन्द, नानक, चैतन्य आदि मुस्लिम-भारत की ही देन है। भक्ति
आन्दोलन जिसने कट्टरता को बहुत कुछ नियंत्रित किया, सिख धर्म और आर्य समाज जो एकेश्वरवादी और
समतावादी हैं, इस्लाम ही के
प्रभाव का परिणाम हैं। समता संबंधी और सामाजिक सुधार संबंधी सरकारी क़ानून जैसे
अनिवार्य परिस्थिति में तलाक़ और पत्नी और पुत्री का सम्पत्ति में अधिकतर आदि
इस्लाम से ही प्रेरित हैं…।’’
— ‘इस्लाम एक स्वयंसिद्ध ईश्वरीय जीवन व्यवस्था’
पृष्ठ 40,42,52 से उद्धृत
साहित्य सौरभ, नई दिल्ली, 2007 ई॰
पृष्ठ 40,42,52 से उद्धृत
साहित्य सौरभ, नई दिल्ली, 2007 ई॰
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