नमाज़ियों
की वजह से अज़ाब दूर हो जाता हे
1
हदीसे क़ुदसी : हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत हे की हमारे
गम ख़वार नबी सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की बे शक अल्लाह तआला ने
फ़रमाया की में जमीन वालो पर अज़ाब नाजिल करना चाहता हु मगर जब मस्जिदो को
आबाद करने वाले नमाज़ियों को देखता हूँ और मेरे लिया आपस
में मोहब्बत रखने वालो और पिछली रात में तोबा इस्तग़फ़ार करने वालो को देखता हु तो
अपना अज़ाब तमाम दुनिया वालो से उठा लेता हूँ
(बैहक़ी शरीफ
बहवाला अल अमनो वल उला स. 21 )
नेक
मुसलमानो की वजह से बला दूर हो जाती हे
2
हदीस शरीफ: हज़रात अब्दुल्लाह बिन उमर रजिअल्लाह हु अन्हु से रिवायत हे
फरमाते हे की हमारे नबी सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया बे शक अल्लाह तआला नेक मुसलमान की वजह से
उस के पड़ोस में सो घर वालो से बला दूर फरमा देता हे
(तबरानी
शरीफ बहवाला अल अमनो वाल उला स. 21 )
3 हदीस शरीफ
: हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत हे की रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने में दो भाई थे एक कसब करके रोज़ी कमाते और दूसरा भाई
हुज़ूर नबी सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में
हाज़िर रहते तो कमाने वाले भाई ने उस दूसरे भाई की शिकायत की जो खिदमत में लगे रहते
थे तो आप नबी पाक सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम शिकायत करने वाले से फ़रमाया की तुम को भी उस की खिदमत की बरकत
से रोज़ी मिलेगी !
( तिर्मिज़ी
शरीफ हाकिम बहवाला अल अमनो वल उला स. 22 )
हज़रात
अल्लाह तआला की किताब क़ुरआन मजीद और रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के अक़वाल और
सहाबा ए किराम के बयानात और आइमा व मोहद्दिसिन की रिवायत से साफ़ साफ़ जाहिर और
साबित हो गया की जब नमाज़ियों और नेको की बरकत से नफा पहुचता हे और बला और
मुसीबत दूर हो जाती हे तो महबूब ए ख़ुदा जनाब मोहम्मदुर रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम के जुदो नवाल करम व बख्शीश और अता व सख़ावत नफा पहुचने की
कुव्वत और बला व मुसीबत को दूर करने की ताकात का क्या अलाम होगा
( मोमिन
मुसलमान को चंद हदीसे काफी हे मगर मुनाफ़िक़ बदअकीदा पर
पुरे क़ुरआन का कुछ असर नहीं!)
वहाबी
देओबंदी का अक़ीदा की नबी और उम्मत सब बराबर हे
हज़रात!
मोमिन तड़प उठेगा मगर मुनाफ़िक़ पर कुछ असर नहीं होगा
1 सब इंसान
(नबी हो या उम्मती) आपस में भाई भाई हे जो बड़ा हो वह बड़ा भाई ओलिया व अम्बिया इमाम
जादा पीर व शहीद सब इंसान ही
हे और आजिज़(मजबूर ) बन्दे हे और हमारे भाई हे और उनकी ताज़ीम इंसानो की
तरह करनी चाहिए
(तक़वीयतूल
ईमान स. 131 )
2
रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को न किसी को कुछ देने की ताकात
हे न किसी से कुछ लेने की ताकात
हे इस वजह से सब बन्दे चाहे नबी हो या छोटे बन्दे
आम मकलूक सब बराबर हे और मजबूर है
(तक़वीयतुल
ईमान स. 59 )
3 हर मख्लूक़
बको अपना बुज़ुर्ग मानते है ड़ा हो या
छोटा अम्बिया ओलिया अल्लाह की शान के आगे चमार से भी जयादा जलील हे (तक़वीयतुल ईमान 41 )
4 अम्बिया
और ओलिया अल्लाह के रूबरू एक जर्रा ए नाचीज से भी कम तर हे (तक़वीयतुल ईमान स. 119
)
5 नबी की
तारीफ एक आम आदमी की तरह बल्कि उस से भी काम करो (तक़वीयतुल ईमान स. 136 )
6
मख्लूक़ होने में ओलिया व अम्बिया में और जिन व शैतान में और भूत व परी में कुछ
फर्क नहीं (तक़वीयतुल ईमान स. 30 )
7 दुनिया के
सारे काम अल्लाह ही के चाहने से होता हे रसूल के चाहने से कुछ
नहीं होता ( तक़वीयतुल ईमान स. 126 )
8 नबी
ऐसे हे जैसे गाँव के चौधरी ! ( तक़वीयतुल ईमान स. 64 )
9 उम्मती
अमल में नबी के बराबर हो सकता हे बल्कि नबी से बढ़ सकता हे ( तहज़ीरुन्नास स. 5 )
ईमान वालो का अक़ीदा हे हमारे नबी जुमला अम्बिया व रसूल से
अफज़ल हे
हज़रात !
अल्लाह तआला ने अपने प्यारे रसूल मुस्तफा जान ए रहमत सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम को किस कदर शरफों
बुज़ुर्गी से सरफ़राज़ फ़रमाया
1
आयात ए करीमा : मुहम्मद तुम्हारे मर्दो में किसी के बाप नहीं हाँ अल्लाह के
रसूल हे और सुब नबियो में पिछले (कन्जुल ईमान पारा 22 रुकुह 2 )
अल्लाह
तआला ने कितने वाजहे अंदाज़ में इरशाद फ़रमाया की हमारे प्यारे रसूल सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को बाप की हैसियत से दर्जा व मक़ाम मत देना बल्कि मेरे महबूब
रसूल हे और आखरी नबी हे
यानि
अल्लाह तआला की मशीयत यह हे की मेरे हबीब सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को बड़ा भाई छोटा भाई या एक आदमी
दर्ज़ा तो क्या बाप के दर्ज़ा हैसियत
से भी न देखना बल्कि मेरा महबूब सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल और आखरी नबी हे
हज़रात ! अल्लाह तआला ख़ालिक़ और मालिक हे मगर अपने प्यारे
रसूल सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को रसूल और आखरी नबी फरमा रहा हे
मगर अफ़सोस
की वहाबी देओबंदी तब्लीगी लोग जर्रा ए नाचीज़ से भी काम तर और चमार से जयादा ज़लील
कह रहे हे माज़ल्लाह
हज़रात
इन्साफ की आँख से देखिए और फैसला कीजिए की एसा गन्दा अक़ीदा रखने वाले मोमिन
व मुसलमान हो सकते हे हर गिज नहीं
2 यह रसूल
हे हमने उन में से एक को दूसरे पर अफज़ल किया उन में किसी से अल्लाह ने कलाम फ़रमाया
और कोई वह हे जिसे सब पर दर्जो बुलन्द किया
(कन्जुल
ईमान पारा 3 रुकुह 1 )
हज़रात :
अल्लाह तआला अलीम व ख़बीर हे वह जानता था की कुछ लोग कलमा व नमाज़ पढ़ने वाले
और रोज़ा व दाढ़ी रखने वालेरसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को आम मख्लूक ही नहीं बल्कि जर्रा ए नाचीज से
भी कमतर और चमार से भी ज्यादा ज़लील कहेंगे और लिखेंगे की हम ने ऐसा जो कहा या लिखा
हे अल्लाह की मख्लूक़ होने के एतिबार से कहा हे की सब अल्लाह ही की मख्लूक़ हे
तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम के ख़ालिक़ व मालिक अल्लाह तआला ने क़ुरआन ए मजीद व
कलमा व नमाज़ पड़ने वाले मुनाफ़िक़ों और रोज़ा व दाढ़ी रखने
वाले बे ईमान को गया जवाब दिया हे की एक रसूल दूसरे रसूल के बराबर नहीं आम
मख्लूक़ और आम आदमी
तो कुजा ? बल्कि बाज़ रसूल से अफज़ल व आला है और सारे
अम्बिया और तमाम रसूलो से अफज़ल व आला जनाब ए मोहम्मदुर रसूलल्लाह रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम है !
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फ़ज़िले बरेलवी
रज़िअल्लहुअन्हु फरमाते हे
ख़ल्क़ से
औलिया औलिया से रुसूल
और रसूलो
से आला हमारा नबी
सब से आला
व औला हमारा नबी
सब से बाला
व आला हमारा नबी
नेअमत व
दौलत देने वाला हमारा नबी
हज़रात : अल्लाह तआला ने अपने महबूब रसूल रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को दोनों जहान की नेअमत व दौलत देने की ताक़त अता फ़रमाई
1 और
जो कुछ तुम्हे रसूल अता फरमाए वह लो और जिससे मना फरमाए बाज़ रहो (कन्जुल ईमान पारा
28 रुकुह 4 )
2 और
क्या अच्छा होता अगर वह उस पर राज़ी होते जो अल्लाह व रसूल ने उनको दिया और कहते
हमें अल्लाह काफी हे अब देता हे हमें अल्लाह अपने फज़ल से ओर अल्लाह का रसूल
(कन्जुल ईमान पारा 10 रुकुह 13 )
हज़रात : इन आयतो से अल्लाह तआला के फरमान से साफ़ तोर पर
जाहिर फरमा और साबित हो गया की अल्लाह तआला नेरसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को देने की ताक़त व कुव्वत अता फ़रमाई हे इसी लिया तो रब तआला
फ़रमाता हे की मेरा रसूल तुम्हे दे वह ले लो
और आयते
मुबारका से यह भी पता चला की अल्लाह तआला देता हे और अल्लाह तआला की अता से
व बख्शिस से उसके रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम भी देते है इसीलिए तो अल्लाह तआला फ़रमाता है
जो अल्लाह
और उसके रसूल ने उनको दिया (कन्जुल ईमान पारा 10 रुकुह 13 )
वहाबी
देओबंदी का अक़ीदा जो तक़वीयतुल ईमान स. 59 पर लिखा हे की रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम न किसी को कुछ देने की ताक़त हे न किसी से कुछ लेन की ताक़त हे
(माज़ल्लाह )
ईमान के
सात फैसला कीजिए की अल्लाह तआला फ़रमाता हे की जो अल्लाह व रसूल ने उनको दिया !
तो मालूम
हुआ क़ुरान ए करीम का दिया हुआ सच्चा अक़ीदा यह हे की रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम देते हे अता फरमाते हे और वहाबी देओबंदी का झूठा अक़ीदा की
रसूलल्लाह को कुछ देने की ताक़त नहीं यह खुला हुआ क़ुरान का इनकार जो यक़ीनन कुफ्र है
!
हज़रात
:वहाबी देओबंदी का अक़ीदा हे की अगर कोई यह कहे की अल्लाह व रसूल ने दिया तो
वो मुशरिक हो जाता हे जब की आयात ए करीमा अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है
जो अल्लाह
व रसूल ने उन को दिया (कन्जुल ईमान पारा 10 रुकुह 13 )
हदीसे बुखारी की नबी बाटते है
हज़रात : हम
अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदा हे और ईमान हे की अल्लाह तआला की अता से हमारे नबी
देते है और मांगने वाले का सवाल पूरा
फरमाते हे
हदीस शरीफ
: इमाम बुखारी रहमतुल्लाह तआला अलैहि ने लिखा की हमारे नबी हुज़ूर क़सीमे नेअमत व
दौलत रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया
अल्लाह
तआला देने वाला और में बांटने वाला हु (सहीह बुखारी शरीफ जिल्द 1 स. 16 )
वहाबी देओबंदी का अक़ीदा की नबी के चाहने
से कुछ नहीं होता
वहाबी
देवबंदी का अक़ीदा तक़वीयतुल ईमान स, 126 पर
लिखा हे की रसूल के चाहने से कुछ नहीं होता
ईमान वालो का अक़ीदा की नबी के चाहने से
क़िबला बदल गया
और सहाबा किराम से ले कर आज तक तमाम मोमिन मुसलमनो का अक़ीदा
हे की नबी अल्लाह तआला की मर्ज़ी से ही हमारे प्यारे रसूल सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम के चाहने से अल्लाह तआला उसको पूरा फरमा देता हे !
तो जरूर हम
तुम्हे फैर देगे उस क़िब्ला की तरफ जिसमे तुम्हारी खुशी है (कन्जुल ईमान पारा 2
रुकुह 1 )
आला हज़रत
इमाम अहमद रज़ा फ़ज़िले बरेलवी रज़िअल्लहुनहु फरमाते हे
खुदा की
रज़ा चाहते हे तो आलम
खुद चाहता
हे रज़ा ए मुहम्मद ( सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम)
ए
ईमान वालो इन्साफ से काम लीजिए और फैसला कीजिए की वहाबियों देवबंदियों ने
किस क़द्र अल्लाह तआला के हबीब मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम की शाने अक़दस में खुलकर बेअदबी और गुस्ताखी की इस तरह गुस्ताखी
व बेअदबी तो इब्लीस शैतान ने भी नहीं सोचा होगा जो ये मुनाफ़िक़ कलमा नमाज़ व दाढ़ी की
आड़ में कर रहे हे और अपनी किताब में लिख कर छाप रहे हे उन्ही गुस्ताखी और बेअदबी
की वजह से वहाबी देवबंदी काफिर और मुर्तद है
लिहाज़ा हर
हाल में इनसे दूर रहना हे और उनको अपने से दूर रखना फ़र्ज़ हे यह मर जाय तो
उनकी नमाज़ ए जनाज़ा में
शरीक होना उनके पीछे नमाज़ पड़ना उनके
यहाँ शादी करना और उनके सात खाना पीना और उठना बैठना
सख्त मना हे सख्त
मना हे सख्त
मना हे और हराम
हे इन उमूर को जाइज़ किया तो कुफ्र है
आला हज़रत इमाम
अहमद रज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हे
सुना जंगल रात अंधेरी छाई
बदली काली हे
सोने वालो जागते रहियो चोरो की रखवाली
हे
वहाबी देवबंदी का अक़ीदा की मजलिसे मिलाद
शरीफ हर हाल में हराम
बहुत ही
गुर फ़िक्र के सात कलेजा थाम कर सुनिए ! और अपने ईमान और इस्लाम की फ़िक्र कीजिए और
वहाबी देवबंदी तब्लीगी किस कद्र बे अदब और गुस्ताख़ हे
मोलवी रशीद
अहमद गंगोही लिखता हे ! मजलिसे
मिलाद हर हाल में हराम हे (फतवा रशीदिया जिल्द 2 स. 83 )
वहाबी देवबंदी का अक़ीदा मिलाद कन्हैया
के जनम की तरह हे
मश्हूर
देवबंदी मोलवी खलील अहमद अम्बेठवी लिखता हे !
1
रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम की मिलाद कन्हैया की जनम की तरह हे (बहारिने
कतिया स. 148 मतबूआ देवबंदी )
2 अहले हदीस
कहलाने वाले मोहद्दिस मिया नज़ीर हुसैन देहलवी के शार्गिद अबु यहया मुहम्मद शाहजहाँ
पूरी लिखता हे मिलाद शरीफ कयाम वगेरह बिदअत और शिर्क है ! ( अल इरशाद इला
सबिलीइरशाद स. 48)
3 मिलादे
मोहम्मदी के वाक़ियात जो बयां किये जाते हे सरासर झूठे है और किसी दज्जाल के गढ़े
हुआ है !( अखबारे मोहम्मदी देहली स. 3 15 जनवरी 1940 )
4
12 रबीउल अव्वल के दिन दुकाने बंद रखना
मौलूद करना गुनाह है ! ( अहले हदीस अमृतसर स. 6 20 मई 1938 )
6 जिस
मस्जिद में महफिले मिलाद व क़याम हों तो ऐसी मस्जिद में नमाज़ न पड़ना वाजिब हे ( फतवा
सत्तरीया जिल्द 1 स. 57 )
हज़रात
वहाबियों के पीर मोलवी रशीद अहमद गंगोई का फतवा आप हज़रात पढ़ लिया हे की महबूबे
ख़ुदा सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की मिलाद
हराम है मगर यही वहाबी के पीर मोलवी रशीद अहमद गंगोई का फतवा हे की बच्चो का
जन्म दिन सालगिरह मनाना दुरुस्त है
7
बच्चो की सालगिरह मनाना और उसकी खुशी में खाना खिलाना जाइज़ दुरुस्त है ! (
फतवा रशीदिया जिल्द 1 स. 74 )
हज़रात
वहाबियों देवबंदियों के ईमान के सात अक़्ल भी बर्बाद हो चुकी है बच्चो का
जन्म दिन मनाना दुरुस्त और महबूबे ख़ुदा सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम की मिलाद नाजायज़ व हराम
ख़ुदा दीन लेता हे तो
अक़्ल भी छीन लेता हे
अहले हदीस
कहलाने वाले मिया नज़ीर हुसैन लिखते है
ल इलाहा
इल्लल्लाहु मोहम्मदुर्रसूलल्लाह का वजीफा जाइज़ नहीं ( फतवा नज़ीरिया जिल्द 1
स, 449 मतबूआ देहली )
जिस मुसलमां के घर ईदे मिलाद हों
उस मुसलमां की किस्मत पे
लाखो सलाम
ईमान वालो
का अक़ीदा की जिक्रे मिलाद शरीफ कारे खैर और महबूब अमल है
ए ईमान
वालो ! मुनाफ़िक़ों और गुस्ताख ने मिलादे पाक के बारे में इस कद्र देरीदा दहनी
और बेअदबी का मुज़ाहरा किया है की इस कद्र बेबाक और निडर तो यहूद और नसारा भी नहीं
थे लिहाज़ा इन बेअदबो को पहचाने और इनसे दूर रहे और अपने ईमान की हिफाज़त करे और
यकीं रखिये की हमारे प्यारेआका रसूलल्लाहसल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम के मिलाद शरीफ का ज़िक्र करना नाजायज़ व हराम नहीं बल्कि
क़ुरआन व सुन्नत और सहाबा ए किराम बुज़ुर्गाने दीन के अक़वाल व अहकाम से जाहिर और
साबित हे
1 जब
अल्लाह तआला ने सब नबियो से अहद लिया (हमारे हुज़ूर के तशरीफ़आवरी
के बारे में)(कन्जुल ईमान पारा 3 रुकुह 17 )
इस आयत ए
करीमा में अल्लाह तआला ने हुज़ूर सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम की मिलाद का तज्किरा फ़रमाया
2
बेशक तुम्हारे पास तशरीफ़ लाए तुम में से वो रसूल जिन पर तुम्हारा मशक्क़त में
पड़ना गिरा है तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले मुसलमानो पर कमाल मेहरबान
मेहरबान ! (कन्जुल ईमान पारा 11 रुकुह 17 )
3 बेशक
तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ से एक नूर आया और रोशन किताब (कन्जुल ईमान पारा 6
रुकुह 7 )
4 बेशक
अल्लाह का बड़ा अहसान हुआ मुसलमानो पर की उन में उन्ही में से एक रसूल भेजा!(कन्जुल
ईमान पारा 4 रुकुह 8 )
5और हम ने
तुम्हे न भेजा मगर रहमत सारे जहाँ के लिए (कन्जुल ईमान पारा 17 रुकुह 7 )
रसूलल्लाह
ने खुद अपने मिलाद
का बयान फ़रमाया
हदीस शरीफ!
यानि में उस वक़्त भी नबी था जब आदम अलैहि सलाम मिटटी और खमीर में थे
और में तुम्हे अपनी इब्तिदा की खबर देता हु में दुआ ए इब्राहिम का नतीजा हु
और में बशारते ईसा हू और में अपनी वालिदा का ख्वाब हु जो मरी वालिदा
ने मरी विलादत के वक़्त देखा था वालिदा माजिदा से मरी विलादत के वक़्त एसा नूर
जाहिर हुआ था जिस की रौशनी से मुल्क शाम के मोह्हलात रोशन हो गए थे ( मिश्कात शरीफ
स. 505 )
हज़रात ! इस हदीस शरीफ से साबित हुआ की खुद रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी मिलाद का जिक्र फ़रमाया और इसी हदीस शरीफ में सरकार सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी विलादत का वक़्त रुनुमा होने वाले वाक़ियात और जाहिर होने
वाले नूर का तज्क़िरा भी फरमा दिया तो
साफ़ तोर पर पता चला
की महफिले मिलाद को कन्हैया के जन्म की तरह कहने वाला काफिर व मुर्तद
है और के नूरानी वाक़ियात को झूठा साबित करना और दज्जाल का गढ़ा हुआ कहना
अल्लाह व रसूल सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को झूठा और दज्जाल कहना हुआ इस तरह की बात मुनाफ़िक़ और
मुर्तद जहनमी ही कह सकता है !
हज़रात!
इमाम नव्वी के उस्ताद इमाम अबु शामह मश्हूर मुहद्दिस इमाम सखावी ने मिलाद शरीफ के
बे शुमार बरकात ब्यान किए और अल्लामा जोज़ी का कॉल मन्क़ूल है की महफिले मिलाद की
खुसूसी बरकते में से यह हे की जो इनको मुनाक़िद करता है इसकी बरकतों से सारा
साल अल्लाह की हिफ़्ज़ो अमान में रहता है और वो अपने मक़सद व मतलूब में जल्दी हुसूल
के लिए यह बसारत है (जीयउन्नबी जिल्द 2 स. 48 )
वहाबी देवबंदी का अक़ीदा की नबी को सिफारशी और
वकील जानने वाला मुशरिक है
ऐ ईमान वालो ! ठन्डे दिल से सोचो और बाद अक़ीदा से हर हाल में
परहेज़ को लाजिम कर लो
1 अहले हदीस
कहलाने वाले के ईमान वहाबी देवबंदी तब्लीगी जमाअत के पेशवा मोलवी इस्माइल देहलवी
अल्लाह की
बारगाह में नबी को सिफारशी ओए वालिक जानने वाले मुशरिक है (तक़वीयतुल ईमान स. 64 )
2 नबी कुढ़
अपना बचाव नहीं जानते तो दुसरो को क्या बचाएगे (तक़वीयतुल ईमान स. 64 )
3 किसी
मुश्किल में नबी या वाली को पुकुरने वाला मुशरिक हो जाता है (तक़वीयतुल ईमान स. 76
)
4 रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम अपनी बेटी फातिमा को क़यामत के दिन नहीं बचा सकते (तक़वीयतुल ईमान
स. 79 )
5
जिसका नाम मुहम्मद या अली है वह किसी चीज़ का मालिक व मुख्तार नहीं (तक़वीयतुल
ईमान स, 89 )
6
मोलवी इस्माइल ग़ज़नवी लिखता हे की जो सख्श या रसूलल्लाह या अब्दुल क़ादिर
जिलानी पुकारे वह मुशरिक हॅ वह सख्स शिक़े अकबर का मुर्तक़िब है अगरचे उसका अक़ीदा
यही हो की फाईले हक़ीक़ी फ़क़त रब्बुल इज्जत है एसे लोगो का खून बहाना जाएज़ है और उनका
माल को लूट लेना मुबाह है (तोहफाए वहबिया 59
)
7 यह कहना
खुदा व रसूल चाहे तो फलां काम हो जाएगा कुफ्र व शिर्क है ( बेहिश्ती जेवर हिस्सा
अव्वल स. 45 )
8
मोलवी अशरफ अली थानवी लिखता हे किसी के सामने झुक्ना सेहरा बाँधना अली बख्श , हुसैन बख्श ,अब्दुल्नबी
,नाम रखना शिर्क व कुफ्र है ( बहिश्ती जेवर
हिस्सा अव्वल स. 45 )
9
मोलवी अशरफ अली थानवी के बड़े पेशवा देवबंदी जमाअत के पीर मोलवी रशीद अहमद
गंगोही का खानदानी सजरह किताब तजकिरतुरसीद स. 13 पर लिखता हे पिदरी
नसब नामा : रशीद अहमद बिन हिदायत अहमद बिन पीर बख्श बिन गुलाम हसन बिन गुलाम
अली
मादरी नसब
नामा : रशीद अहमद बिन करीमुनिशा बिन्त फरीद बख्श क़ादिर बिन मुहम्मद सालेह
बिन गुलाम मुहम्मद
हज़रात! गौर
कीजिए की रशीद अहमद गंगोही के दादा का नाम पीर बख्श था नाम फरीद बख्श
है इसी तरह वहाबी देवबंदी के पीर रशीद अहमद गंगोही के आबा व अज्दाद में कितने एसे
हे जो मोलवी अशरफ अली थानवी के फतवे के मुताबिक काफिर और मुशरिक हुए !
वहाबी मज़हब के बानी मुहम्मद बिन
अब्दुल वहाब नज्दी का अक़ीदा
नबी अकरम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम से तवस्सुल करने
वाला काफिर हो जाता है (अद्दरुसुन्निया स. 39 )
वहाबी नजदियो का अक़ीदा है की या
रसूलल्लाह कहने वाला काफिर है
1 या
रसूलल्लाह कहने वाला काफिर है (तोहफा ए वहबिया स. 68 )
2 फौत शुदा
अम्बिया व ओलिया को पुकारना और उनसे दुआ व सफाअत की इल्तिज़ा करना शिर्क है
(किताबुल वसीला स. 63 )
3 या
रसूलल्लाह का नारा लगाना शिर्क व हराम है (सहीफ़ा ए अहले हदीस कराची स. 23.
15 मुहर्रम 1374 हि.)
4 या अल्लाह
के सात या मुहम्मद शिर्क है (सहीफ़ा ए अहले हदीस कराची स. 23 . 15 मुहर्रम 1374 हि
)
5 अहले हदीस
कहलाने वाले वहाबी मोहद्दिस अब्दुल्ला रोपडी लिखता है
अस्सलातो
वस्सलामो अलैका या रसूलल्लाह
अस्सलातो
वस्सलामो अलैका या हबीब अल्लाह
पड़ना हर
हाल में बुरा हे (रिसाला सिमाअ मोता स. 15 )
6 हमारे
हाथ की लाठी सरवरे क़ायनात सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम से जयादा नफा देने वाली है हम
इस (लाठी ) से कुत्ते को दफा कर सकते हे (अस्साहबुकसिम स. 47 )
7
मने रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को देखा की आप मेरे को पुल सिरात पर
ले गए और मने देखा की आप पल सिरात से गिर रहे हे तो मने आप को गिरने से बचा लिया
(मुबशिराते )
ईमान वालो
का अक़ीदा की नबी सिफारशी और वकील है
हदीस शरीफ
: महबूबे ख़ुदा सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते है
यानि
अल्लाह तआला ने जब अर्श बनाया तो उस पर नूर के कलम से जिसका तूल मशरिक से मगरिब तक
था
अल्लाह
तआला के सिवा कोई मअबूद नहीं मुहम्मद सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल है इन्ही के वास्ते से लूगा और इन्ही के
वास्ते से दूगा (अल अम्नो वल उला स. 33 )
हमारे नबी
की शफाअत से गुनाहगार जहन्नम से निकाल लिया जाएगा
हदीस शरीफ:
हज़रत उबादह बिन सामित रज़िअल्लहुअन्हु से रिवायत है की रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हे
यानि बेशक
मै रोजे क़ियामत तमाम जहान वालो का सरदार हूँ और मेरे
हाथ में लिवॉउल हम्द होगा कोइ एसा न होगा जो मेरे झंडे के
नीचे न होगा में चलुंगा और लोग मेरे साथ होगे यहाँ तक की जन्नत के दरवाजे पर पहुंच
कर दरवाजा खुलवाऊगा सवाल होगा कौन हे में फ़रमाउगा मुहम्मद ( सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम ) मरहबा मुहम्मद सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को फिर जब में रब तआला को देखुंगा तो उसकी बारगाह में सज्दा
करुगा हुकुम होगा ए महबूब ( सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम ) कहो तुम्हारी मानी जाएगी शफ़ाअत करो तुम्हारी शफ़ाअत कुबूल होगी
पस जो लोग जहनम में जा चुके थे वह अल्लाह की रहमत और मेरी शफ़ाअत से दोजक से निकाल
दिए जाएंगे ।(अल अमनो वल उला स. 87 बा हवाला मुस्तदरिक लिल हाकिम )
हज़रात! वहाबियों पर अल्लाह की लअनत जिनका अक़ीदा हे की मने
रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को पुल सिरात पर गिरने से बचाया माज़ अल्लाह सद बार माज़ल्लाह
हज़रात :इन दोनों हदीस से जाहिर और साबित होता हे की खुद
अल्लाह तआला अपने महबूब रसूल सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के वसीले से अता फ़रमाता हे
और अल्लाह तआला की अता से रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम जहनम से बचते हे और जन्नत अता फरमाते है तो साबित हुआ की
जो रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम अपनी उम्मत को अज़ाब से बचाय गए वह आक़ा
क्या अपनी बेटी फ़तिमातुर्ज़ेहरा रज़िअल्लहुअन्हा को न बचाय गे उनके लिए तो आक़ा सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की मेरी बेटी फातिमा जन्नती ओरतो की सरदार है !
हमारे नबी जन्नत बाटते है
हदीस शरीफ : हमारे आक़ा सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत राबिया बिन कबह अस्लमी से इरशाद फ़रमाया ए राबिया मुज़से
जो मांगना हो माग लो हज़रत राबिया अर्ज़ करती है में जन्नत में आप का साथ मांगती हु
(सहीह मुस्लिम शरीफ,अबु दाऊद
शरीफ,इब्ने माज़ा मुअज्जम कबीर तबरानी अल अमनो वल उला
स. 110 )
हदीस शरीफ से साफ़ जाहिर हो गया की हुज़ूर सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम खुद फरमाते हे मुज़से मागो और सहाबी हज़रत राबिया रजिअल्लाह अन्हो
ने मालिके जन्नत रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम से जन्नत भी माग ली और जन्नत में सरकार सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम की रिफाकत तालाब की और दोनों नेअमतें उनको हासिल भी हो गई
तो मालूम हुआ की रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम से मांगना शिर्क व बिदअत नहीं बल्कि सहाबी की सुन्नत हे जो हदीस
से साबित हे
या रसूलल्लाह कहना कुफ्र नहीं है बल्कि
सहाबा की सुन्नत हे
हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने एक नाबीना को
दुआ तालीम फ़रमाई
ए अल्लाह में तुज से मागता हूँ और तेरी तरफ तव्वजो
करता हु तेरे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के वसीले से जो
रहमत वाले नबी हे या रसूलल्लाह में हुज़ूर के वसीले से अपने रब की तरफ अपनी हाजत
में तव्वजो करता हू ताकि मेरी हाजत पूरी हो ए अल्लाह उन्हें मेरा सफ़ीअ कर उनकी
सफ़ात मरे लिया क़ुबूल फरमा (नसाई तिर्मिज़ी इब्ने खुज़ैमा तबरानी हाकिम बेहकी अल अमनो
वल उला स. 113 )
हज़रात ! इस हदीस शरीफ से साफ़ तोर पर मालूम हुआ की सहाबा ए
किराम हुज़ूर के वसीले से दुआ करते थे और या मुहम्मद या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम पुकारना शिर्क व
बिदअत नहीं बल्कि सहाबा की सुन्नत है
बादे विसाल भी सहाबा या रसूलल्लाह कहते
थे
हदीस शरीफ : यानि सहाबा किराम जब रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की कब्रे अनवर पर
हाजिर होते तो अस्सलामो अलैका या रसूलल्लाह कहते (मोसन्नफ अब्दुलरज़ाक जिल्द 3 स.
576 )
हज़रात! इस हदीस शरीफ से मालूम हुआ की महबूबे ख़ुदा रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के विसाल शरीफ के
बाद भी सलाम करना और या रसूलल्लाह कहना सहाबा ए किराम की सुन्नत है
शाह
वलीयुल्लाह मोहद्दिसए देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है
मुसीबतो
में या अली. या अली, या अली पुकारोगे तो उन्हें अपना मददगार पाओगे (अल
अमनो वल उला स. 13 )
हज़रात:
गैर मुकलिद वहाबी देवबंदी यह सब के सब हज़रत शाह वालीयुल्लाह मोहद्दिस देहलवी को
अपना बुज़ुर्ग मानते है तो उनसे कहो शाह साब ने या अली या अली पुकारने की तालीम दी
है तो उन पर कुफ्र और शिर्क का हुकुम लगाए
अस्सलातो अस्सलामो अलैका या रसूलल्लाह कहना हदीस से साबित है
हदीस शरीफ : मश्हूर मोहद्दिस हज़रत अल्लामा काजी इयाज़
रहमतुल्लाह अलेही नक़ल फरमाते है की अमीरुल म मोमिनीन मौला अली शेरे ख़ुदा
रज़ियल्लाहु अन्हु रावी है वह फरमाते है मुज़े वह पत्थर अभी तक याद है जिसके पास से
में हुज़ूर सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम के साथ गुजरा करता था और पत्थर बुलंद आवाज़ से कहते थे
अस्सलातो
वस्सलामो अलैका या रसूलल्लाह
अस्सलातो
वस्सलामो अलैका या हबीब अल्लाह
(शिफ़ा
शरीफ)
हज़रात: इस
हदीस से साफ़ तोर पर जाहिर और साबित होता है की
अस्सलातो
वस्सलामो अलैका या रसूलल्लाह
अस्सलातो
वस्सलामो अलैका या हबीबल्लाह
पड़ना बुरा
अमल नहीं है अगर बुरा अमल होता तो शेरे ख़ुदा मौला अली न पड़ते और न रिवायत फरमाते
और मोहद्दिसे किराम हदीस की किताबो में लिखते भी नहीं
तो मालूम
हुआ की वहाबी देवबंदी का मज़हब ही बुरा है
अस्सलातो
वस्सलामो अलैका या रसूलल्लाह
अस्सलातो
वस्सलामो अलैका या हबीबल्लाह
पड़ना हर
हाल में अच्छा अमल हे और सहाबा की सुन्नत है
हज़रात:
हिन्द के राजा हमारे प्यारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुतुबुल अक़ताब
हुज़ूर गौसे आज़म रज़ियल्लाहु अन्हु की शाने गौसियत को यूँ बयान फ़रमाया
या गोसे
मुअज़्ज़म नूरे हुदा मुख्तारे नबी मुख्तारे ख़ुदा (अहले सुन्नत की आवाज़ सन 2008 स.
295 )
वहाबी देवबंदी का अक़ीदा की रसूलल्लाह मर
कर मिट्टी में मिल गए
अहले हदीस
कहलाने वाले वहाबी देवबंदी के पेशवा मोलवी इस्माइल देल्हवी लिखता है
1
रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम मर कर मिट्टी में मिल गए (तक़वीयतुल ईमान स. 133 )
2 नबी मर
गया वह भी कभी जिन्दा था और ब शरीयत की कैद में गिरफ्तार (तक़वीयतुल ईमान स. 132 )
3
हमारा अक़ीदा है की आँ हज़रत सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम दूसरे इंसानो की तरह वफ़ात पा
गए (अखबार अहले हदीस अमृतसर 25 अप्रैल 1941 )
4
वहाबी देवबंदी मोलवी हुसैन अहमद मदनी टांडवी लिखता है रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम का वफ़ात के बाद
हम पर अब कोई हक़ नहीं और न कोई अहसान न कोई फायदा है (अश्शहाबुस्साकिबस. 47 )
ए ईमान
वालो इन्साफ से फैसला करके बताओ की क्या इसी अंदाज़ और तरीका से महबूबे ख़ुदा सय्यदे
आलम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम को याद किया जाता
है इस अंदाज़ से भाई और दोस्त व अहबाब यहाँ तक की नौकर व गुलाम के लिया भी नहीं
बोला जाता
आप समझ गए होगे की
वहाबी देवबंदी अल्लाह व रसूल सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह के बड़े ही बे अदब और गुस्ताख़ है
ईमान वालो अक़ीदा नबी जिन्दा है
हज़रात: नबीए रहमत व बरकत सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम को मुर्दा कहने
वालो का ईमान व इस्लाम मर चूका है
हमारे प्यारे आक़ा नबी ए रहमत व बरकत सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह तआला की
अता से जिन्दा थे जिन्दा है और जिन्दा रहेंगे
आला हज़रत
इमाम अहमद रज़ा रज़ियल्लाहु अन्हि फरमाते है
तू जिन्दा
हे वल्लाह तू जिन्दा हे वल्लाह
मेरे
चश्मे आलम से छुप जाने वाले
हदीस शरीफ : हज़रत अबु दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है
की रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
बेशक
अल्लाह तआला ने जमीन पर हराम कर दिया है कि अम्बिया किराम के जिस्मो को खाए
लिहाज़ा अल्लाह के नबी जिन्दा हे रिज्क दिए जाते है (अबु दाऊद शरीफ जिल्द 1 स. 157
इब्ने माज़ह स. 76 मिश्कात शरीफ स. 121 )
रसूलल्लाह बादे विसाल उम्मत को देख रहे है
हदीस शरीफ
: मश्हूर मोहद्दिस इमाम मुहम्मद इब्ने हाज मक्की और जलिलुल्क़द्र मोहद्दिस इमाम
अहमद कस्तलानी रहमतुल्लाह अलैह लिखते है
रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लमकी हयात और वफ़ात में कुछ फर्क
नहीं की वह अपनी उम्मत को देख रहे है और उनकी हालतो उनकी नियतो और उनके इरादो और
उनके दिलो के ख़यालो को पहचानते है यह सब हुज़ूर सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम को एसा रोशन है जिसमे कुछ भी पोशीदगी नहीं ( मुद्खल जिल्द 1 स.
215 शरह मवाहिब जिल्द 8 स. 348 )
मश्हूर
बुज़ुर्ग हज़रत शेख अब्दुल हक़ मोहद्दिसे देहलवी रजिअल्लाहहु अन्हु फरमाते है
रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम दुनियावी जिंदगी
की हक़ीक़त के साथ है `(अशिअतुल
लम्आत जिल्द 1 स. 576 )
मश्हूर
मोहद्दिस हज़रत अल्लामा मुल्ला अली कारी रामतुल्लाह अलैह फरमाते है यानि
अम्बिया किराम की दुनियावी जिंदगी और विसाल के बाद की जिंदगी में कोई फर्क नहीं
इसीलिए कहा जाता है की ओलिया किराम मरते नहीं बल्कि एक घर से दूसरे घर की तरफ
मुन्तक़िल हो जाते है (मिरक़ात ज़िल्द 2 स. 212 )
कौन
कहता हे की मोमिन मर गया
कैद से
छूटा वह अपने घर गया
ईमान वालो का अक़ीदा की रसूलल्लाह का
एहसान हर मख्लूक़ पर है
ए ईमान वालो ! महबूबे ख़ुदा सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लमके सदके तुफैल में
सारा आलम पैदा किया गया इस लिए आलम के जर्रे जर्रे पर महबूबे खुद रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम का एहसान अज़ीम है और अव्वलीन और आखिरिन ने इस इस अज़ीम एहसान को
माना और तस्लीम किया
जलिलुल्क़द्र मोहद्दिस हज़रात अल्लामा मुल्ला अली कारी
रहमतुल्लाह फरमाते है महबूबे ख़ुदा सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम का एहसान व
महरबानी हर मख्लूक़ पर है ख़ास तोर पर हर मोमिन पर है (मिरकात शरह ज़िल्द 1 स. 64 )
इस हदीस शरीफ से मालूम हुआ की हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम का एहसान हर
मख्लूक़ पर हे ख़ास तोर पर मोमिन पर मगर रहीमो करीम नबी सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम का एहसान मोमिन मानता है काफिर और मुनाफ़िक़ नहीं मानते
वहाबी का अक़ीदा की नबी की कब्र बूत है
अदल और इन्साफ की आँख से और ईमान की रौशनी में दिल को थाम
कर बगोर पढ़िए वहाबी नज्दी के नजदीक महबूबे ख़ुदा सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की कब्रे अनवर
मज़ारे अक़दस की हक़ीक़त व हैसियत क्या है
1 हुज़ूर
अकरम सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लम की कब्रे मुक़दस हर लिहाज़ा से बुत है ( हाशिया शरहुस्सुदूर स. 25
मतबूआ सऊदी )
2
वहाबी इमाम मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब नज्दी के पोते अब्दुल रहमान नज्दी
ने अपने दादा की किताब अतौहीद की शरह फत्हुल मजीद में लिखा की नबी सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम का रोज़ा शिर्क व
इल्हाद का बहुत बड़ा ज़रिया है !(फ़तहुल मजीद शरह कितबुतौहीद स. 209 )
वहाबी का अक़ीदा नबी की कब्र गिरा देना
वाजिब है
1 पगैम्बरे
इस्लाम सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लमकी कब्र को गिरा देना वाजिब है ( उरफ़ुल जादी स. 61 )
2
रसूलल्लाह और अम्बिया किराम की जियारत के लिए जाने वाला मुशरिक है (फ़तहुल
मजीद शरह कितबुतौहीद स. 215 )
3 कस्दन
कब्रे नबवी पर सलाम के लिए जाना मना है ( हिदायतुल मुस्तफ़ीद जिल्द 1 स. 811 )
4 गैर
मुकलिद के मुहद्दिस हाफिज अब्दुल्लाह रोपडी लिखता है
रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की कब्र या रोज़े
की जियारत के लिए जाना
सराहतन मना है (सफ़िहे अहले हदीस कराची स. 23 )
5
रसूलल्लाह सल्लल्लाहो
तआला अलैहि वसल्लमकी कब्रे मुबारक के पास अपने लिया दुआ मांगना बिदअत है (नहजुल
मक़बूल फार्सी स. 43 )
ईमान वालो का अक़ीदा की नबी की कब्र पर
गुम्बंद हदीस से साबित है
प्यारे
सुन्नी मुसलमान भाइयो होशियार ! यानि जिस हदीस शरीफ में यह हुकुम हे की पक्की
कब्रो को गिरा दो इससे मुश्रिकीन की कब्रो को गिराने का हुकुम है न की अम्बिया व
ओलिया की कब्रो को गिराने का हुकुम दिया मगर वहाबी देवबंदी इस हदीस शरीफ को
अम्बिया व ओलिया की कब्रो और मज़ारों पर चस्पा करते नज़र आते है
हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के जाहिरी ज़माने
में अम्बिया किराम और ओलिया इजाम की कब्रो पर कुब्बे और गुम्बंद बने हुए थे
1 हदीस
शरीफ : हज़रात अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते है
रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत आदम अहलेहिसलाम के
कुब्बे से टेक लगा कर हमको खिताब फ़रमाया तो इरशाद फ़रमाया जन्नत के सिवाए मुसलमान
आदमी के कोई सख्स दाखिल नहीं होगा ( सहीह मुस्लिम शरीफ जिल्द 1 स. 117 )