शबे बरात की फजीलत और नवाफिल व वजाइफ

 

शबे बरात की फजीलत बेशुमार हैं शबे बरात यानि 15 शाबान में बख्शीश व मगफिरत वाली रात हैंहुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि शाबान की रात मैं अल्लाह तआला आसमान दुनिया पर तजल्ली फरमाता है और कबीला बनी कल्ब की तमाम बकरियां के बालों की तादाद से भी ज्यादा अल्लाह तआला  बन्दों की मगफिरत (बखशिश) फरमाता है।

कुरान करीम में अल्लाह जल्लाजलालहू व अम्मा नवालुदू इरशाद फरमाता  है। 

तरजुमा : इस (रात) में बांट दिया जाता है (हमारे हुक्म से) हर हिकमत वाला काम (पारा 25 सूरत अदुखान/2)  मतलब यह कि अल्लाह अल्लाह तआला  फरमाता है कि इस रात में हमारे हुक्म से हर हिकमत वाला काम बांट दिया जाता हैं|

हज़रत मुफससरीन किराम फरमाते हैं अल्लाह तबारक व तआला साल भर में होने वाले तमाम कामों (वाकयात व हादिसात) के अहकाम फिरिश्तों में तकसीम फरमा देता है  रिज्क, मौत, जिन्दगी इज्जत, जिल्लत, ज़लजले, सवाइक (बिजली की कड़क) आसमानी अज़ाब ख़स्फ व. मस्ख़ (जमीन का धसना सूरतें बदलना) सैलाब मुसीबतें परेशानियां   गर्ज कि सारे काम जो साल भर तक जाहिर होंगे वह मलायका में उनकी ड्यूटी के मुताबिक तकसीम फ़रमा देता है और तमाम ' इन्तजामी उमूर (हुक्म) लौहे महफूज़ से फरिशतो के सहीफ़ी में नकल, करके हर एक सहीफा उस महकें के फरिशते को दे दिया जाता है। जैसे मलिकुल मौत हज़रत इज़राइल अलवहिस्सलाम को तमाम मरने वालो की फहरिस्त व अहकाम वगैराह। 

इस आयत मुबारक से मालूम हुआ कि शबे बरात बहुत ख़ास रात है। अल्लाह तआला अपने बन्दों की रोज़ी और उनकी मौत और पैदाइश लड़ाईयाँ जलजले और हादिसात साल भर में होने वाले तमाम मामले और ख़ास वाकयात के अहकाम इसी रात अलग अलग बांट कर अलग अलग काम के फरिश्तो को उनका काम सौंप देता है जिस हुक्म के मुताबिक वह साल भर तक काम करते रहते हैं। (रुहुलबयान, सावी शरीफ)

हदीस शरीफ 01: हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदीअल्ला तआला अन्हु से 'रिवायत है फरमाया कि इरशाद फरमाया रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु आलैहि वसल्लम ने कि ऐ लोगों! शाबान की पन्दहवी रात को उठोबेशक शाबान की पन्द्रवीं रात लइलतुल मुवारकह (बरकत वाली)  हैपर बेशक अल्लाह तआला अन्जवजल्ता इस रात इरशाद 'फरमाता है क्या कोई मुझ से बख़शिश व मगफिरत का चाहने वाला है कि मैं उसकी मगफिरत कर दूँ।

हदीस शरीफ 02: रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया खुश खबरी है उस शख्स के लिए जो पन्द्रवीं रात लइलतुल मुवारकह (बरकत वाली) में अमल ए खैर करे।

हदीस शरीफ 03: बेशक अल्लाह तआला अज़्ज़ावजल्ला मेहरबानी फरमाता है मेरी उम्मत के गुनहगारों पर शाबान की पन्द्रहवीं रात (शबे बरात) में, कबीला बनी कल्ब व कबीला रबी  और मुदिर की बकरियों के बालों की तादाद के बराबर, लोगों की बख्शीश व मगफिरत फरमाकर।

फायदा:- बनी कल्ब, रबी और मुदिर यह अरब के तीन मशहूर कबीले हैं इन तीनों कबीलों के पास बहुत ज्यादा बकरियाँ थी, 'रिवायत है कि इन में के हर एक क॒बीले के लोगों की बकरियों की, तादाद बीस हज़ार से ज़्यादा थी। इस इरशाद से मुराद यह है कि इस  मुबारक रात की बरकात इस कदर ज़्यादा है कि अल्लाह ताला उम्मत के गुनहगारों की इतनी बड़ी तादाद को बखशिश व मगफिरत अता फरमाता है जो बेशुमार और बे हिसाब है।

हदीस शरीफ 04: रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद 'फरमाया जिसने शाबान की पन्द्रवीं तारीख का रोज़ा रखा उसको कभी आग न छुएंगी। गर्ज कि शबे बरात की फज़ीलत जिक्र अजकार व मगफिरत और बख़शिश के एतबार से बहुत ज्यादा है। ऐ काश हमारे मुसलमान भाई इस रात की अजमत को समझते हुए अच्छे-अच्छे अमत की तरफ ध्यान दे और बुराइयों से बचे और उन लोगों के बहकवे में न आएं जो इस मुबारक रात की फज़ीलत और बरकतों का इनकार करते हैं और उनकी ज़बानें अल्लाह तआला अज़ज़वजल्ला के जिक्र की लज़्ज़त से ना आशना हैं।

शबे बरात में इबादत

उम्मुल मोमेनीन हज़रत आईशा रज़िअल्लाह अन्हा फ़रमाते हैं- हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सुबह तक मुसलसल क़याम व कअदा की हालत में रहे। हालांकि आपके पांव मुबारक फुल गए। मैंने अर्ज़ किया- आप पर मेरे मां-बाप कुरबान, आपको अल्लाह वो मुक़ाम व एजाज अ़ता फ़रमाया है कि आपके सदक़े आपके पहलूओं व बच्चों के गुनाह भी माफ़ कर दिए। (तो फिर इतनी मशक्कत करने की क्या ज़रूरत) तो आपने फ़रमाया- ऐ आईशा! तो क्या मैं अल्लाह का शुक्र अदा न करूं। क्या तुम जानती हो इस रात की क्या फ़ज़ीलत है। मैंने कहा- इस रात में क्या है ? आपने फ़रमाया- आइन्दा साल में होने वाले हर बच्चे का नाम, इस रात लिखा जाता है और इसी रात आइन्दा साल मरने वालों के नाम भी लिखे जाते हैं। इसी रात बंदों के रिज़्क उतरते हैं और इसी रात लोगों आमाल व अफआल उठाए जाते हैं।

हज़रत आईशा रज़िअल्लाह अन्हा फरमाती हैं- हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम (शबे बरात में) नमाज़ पढ़ने लगे, मुख़्तसर क़याम किया, सूरे फ़ातेहा व छोटी सूरे पढ़ी और (रूकू के बाद) आधी रात तक सजदारेज़ रहे। फिर दूसरी रकात में खड़े हुए और पहली रकात की तरह सूरे फ़ातेहा व छोटी सूरे पढ़कर (रूकू के बाद) फ़जर तक सजदारेज़ रहे। (यानी पूरी रात में दो रकात)।

हज़रत अकरमा रज़िअल्लाह अन्हो से मरवी है कि इस रात को हर हिकमत दाए काम का फैसला होता है। अल्लाह पूरे साल के उमूर की तदबीर फ़रमाता है। (यहां तक कि) हज करने वालों के नाम भी लिखे जाते हैं।

हज़रत हकीम बिन कीसान रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि शबे बरात में अल्लाह उन लोगों पर तवज्जो करता है जो इस रात अपने आप को पाक रखते हैं। अल्लाह उसे आइन्दा शबे बरात तक पाक रखता है।

हज़रत अबूहुरैरा रज़िअल्लाह अन्हो से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया- हज़रत जिबरईल रज़िअल्लाह अन्हो शाबान की 15वीं रात को मेरे पास आए और कहा- ऐ मुह़म्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम! आसमान की तरफ़ सर उठाएं। मैंने पूछा ये रात क्या है? फ़रमाया- ये वो रात है जिसमें अल्लाह रह़मत के दरवाज़ों में से 300 दरवाज़े खोलता है और हर उस शख़्स को बख़्श देता है, जो मुशरिक न हो, अलबत्ता जादूगर, काहिन, आदीशराबी, बार बार सूद खाने वाला और ज़िना करने वाले की बख़्शिश नहीं होगी जब तक वो तौबा न कर ले।

जब रात का चौथा हिस्सा हुआ तो हज़रत जिबरईल रज़िअल्लाह अन्हो ने अर्ज़ किया- ऐ मुह़म्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम! अपना सर उठाइये। आपने सर उठाया तो देखा कि जन्नत के दरवाज़े खुले थे और पहले दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता निदा दे रहा है- इस रात को रूकू करने वालों के लिए खुशखबरी है। दूसरे दरवाज़े पर फ़रिश्ता पुकार रहा है- इस रात में सजदा करने वालों के लिए खुशखबरी है। तीसरे दरवाज़े पर निदा हो रही है- इस रात में दुआ करने वालों के लिए खुशखबरी है। चौथे दरवाज़े पर खड़ा फ़रिश्ता निदा दे रहा था- इस रात में ज़िक्रे खुदावंदी करने वालों के लिए खुशखबरी है। पांचवे दरवाज़े से फ़रिश्ता पुकार रहा था- अल्लाह के ख़ौफ़ से रोने वाले के लिए खुशखबरी है। छठे दरवाज़े पर फ़रिश्ता कह रहा था- इस रात तमाम मुसलमानों के लिए खुशख़बरी है। सातवें दरवाज़े पर मौजूद फ़रिश्ता की ये निदा थी कि क्या कोई साएल है जिसके सवाल के मुताबिक़ अ़ता किया जाए। आठवें दरवाज़े पर फ़रिश्ता कह रहा था- क्या कोई बख़्शिश का तालिब है जिसको बख़्श दिया जाए। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने पूछा- ऐ जिबरईल रज़िअल्लाह अन्हो! ये दरवाज़े कब तक खुले रहेंगे। उन्होंने कहा- रात के शुरू से तुलूअ आफ़ताब तक। फिर कहा- ऐ मुह़म्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम! इस रात अल्लाह कबीला बनू कलब की बकरियों के बालों के बराबर लोगों को (जहन्नम) से आज़ाद करता है।

हज़रत अ़ली रज़िअल्लाह अन्हो फ़रमाते हैं- मुझे ये बात पसंद है कि इन 4 रातों में आदमी ख़ुद को (तमाम दुनियावी मसरूफ़ियात से इबादते इलाही के लिए) फ़ारिग़ रखे। (वो चार रातें हैं) 1. इदुल फितर की रात, 2. ईदुल इज़हा की रात, 3. शाबान की पंद्रहवीं रात (शबे बरात) और 4. रजब की पहली रात। (इब्ने जौज़ी, अत्तबस्सुरा, 21/2)

हज़रत ताउस यमानी फ़रमाते हैं कि मैंने हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम से शबे बरात व उसमें अमल के बारे पूछा तो आपने फ़रमाया- मैं इस रात को तीन हिस्सों में तक़सीम करता हूं। एक हिस्से में नाना जान (हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) पर दरूद पढ़ता हूं। दूसरे हिस्से में अपने रब से इस्तग़फ़ार करता हूं और तीसरे हिस्से में नमाज़ पढ़ता हूं। मैंने अर्ज़ किया कि जो शख़्स ये अमल करे उसके लिए क्या सवाब है। आपने फ़रमाया मैंने वालिद माजिद (हज़रत अ़ली रज़िअल्लाह अन्हो) से सुना और उन्होंने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से सुना- ये अमल करने वालों को मुक़र्रेबीन लोगों में लिख दिया जाता है।

एक रवायत में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि जो शख़्स शबे बरात की मग़रिब से पहले 40 मरतबा लाहौल वला कुव्वता इल्ला बिल्ला हिल अलिय्यिल अज़ीमऔर 100 मरतबा दरूद शरीफ़ पढ़े तो अल्लाह उसके 40 बरस के गुनाह माफ़ फ़रमा देता है।

6 रकात नफ़िल और सूरे यासीन की तिलावत

बाद नमाज़ मग़रिब 6 रकात नफ़िल इस तरह पढ़ें-

2 रकात नमाज़ नफ़िल दराज़िये उम्र (उम्र में बरकत) के लिए

2 रकात नमाज़ नफ़िल कुशादगीये रिज़्क (कारोबार व आमदनी में बरकत) के लिए

2 रकात नमाज़ नफ़िल दाफए अमरोज व बलियात (आफ़तों से बचने) के लिए

हर सलाम के बाद सूरे यासीन की तिलावत करें।

फिर दुआए निस्फ़ शाबान पढ़ें।

दुआए निस्फ़़ शाबान

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि जो कोई ये दुआ शबे बरात में पढ़ेगा, हक़ तआला उसे बुरी मौत से महफ़ूज़ रखेगा।

बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम० अलाहुम्मा या ज़ल् मन्नि वला यु-मन्नु अ़लैहि ० या ज़ल्-जलालि वल् इक्रामि 0 या ज़त्तोलि वल् इन्अ़ामि ० ला इलाहा इला अन्त ज़ह्-रल्लाजी-न ० वजारलमुसत-जीरीना व अमा-न-अलखाइफ़ीना 0 अल्लाहुम्म इन् कुन्त क-तब् तनी इन्द-क फ़ी उम्मिल् किताबि शक़िय्यन् औ मह्रू-मन् औ मत्रु-दन् औ मु-क़त्त-रन् अ़लय्य फ़िर्रिजि़्क 0 फ़म्हु अल्लाहुम्म बि फ़जा़लि-क शक़ावती व हिरमानी व तर्दी वक्तिता-र रिज़क़ी 0 व-अस्बित्नी इन्द-क फ़ी उम्मिल् किताबि सई-दम्मरजू-कम मुवफ्फिकल लिल्ख़ैराति 0 फ इन्नका कुल्ता व कौलु-कल् हक़्कु 0 फी किताबि-कल् मु-नज़्ज़लि 0 अला लिसानि नबीय्यि-कल् मुर्-सलि 0 यम्हुल्लाहु मा यशाउ वयुस्बितु व इन्दहू उम्मुल किताबि 0 इलाही बित्तजल्लि यल् आज़मि 0 फ़ी लै-लतिन्निस्फि मिन शह्रि शअबा-नल् मुकर्रमि अल्लती युफ़ रकु फ़ीहा कुल्लु अम्रिन हकीमिंव व युब्रमु 0 अन् तक्शि-फ़ अ़न्ना मिनल् बलाइ वल् बल्वाई मा नअ्-लमु वमा ला नअलमु वमा अन्ता बिही आलमु 0 इन्नका अन्तल अअज़्जुल अक-रमु 0 वसल्ललाहो तअ़ाला अ़ला सय्यिदिना मुहम्मदिव व अ़ला आलिही व सहबिही व सल्लम 0 वल हम्दु लिल्लाहि रब्बिल्  अ़ालमीन 0

नोट :- जो हज़रात अरबी दुआ न पढ़ सके या लफज़ो की सही अदाएगी न कर सके वह इस दुआ का तरजुमा इस तरह पढ़े जैसे दुआ माँगते है।

तरजुमा : ऐ अल्लाह  तू ही सब पर एहसान करने वाला है तुझ पर कोई अहसान नहीं कर सकता ऐ बुजुर्गी वाले और महरबानी करने वाले और ऐ बखशिश और इनाम वाले तेरे सिवा कोई माअबूद नहीं तू ही गिरतो को थामने वाला हैबे सहारो को पनाह देने वाला है और डरने वालो का सहारा है। ऐ अल्लाह अगर तूने मुझे अपने पास उम्मूल किताब में भटका हुआ या कम नसीब या मरहूम लिख दिया हैतो ऐ अल्लाह अज्जावजल अपने फज़्ल से मेरी ख्वारी कम नसीबी रान्दगी और रोज़ी की कमी को मिटादे और अपने पास मुझे उम्मुल किताब मे खुश नसीब कुशादा रिज्क  और नेक कर दे बेशक तेरा यह इरशाद तेरी किताब में जो तेरे नबी मुर्सल सल्लल्लाहो अलय वसल्लम पर उतारी गई सच है कि अल्लाह तआला जो चाहता है मिटाता है  और जो चाहता है वना देता है और उसी के पास उम्मुल्कि ताब है। या इलाहि तजल्‍ली ए आजम का सदका इस निस्फ शाबान मुक्रम की रात में जिसमें तमाम हिकमत वाले कामों की तकसीम और उनका निफाज होता है  मेरी बलाओ को दर कर दे मैं उनको जानता हूँ या न जानता हूँ और जिनसे तू वाकिफ है बेशक तू ही सबसे बेहतर और बढ़कर अहसान करने वाला है  अल्लाह तआला की रहमत और सलामती हो हमारे आका मुहम्मद सल्लल्लाहो अलय वसल्लम पर और उनकी आल और उनके सिहाबा पर आमीन सुम्मा आमीन |

फायदा : और जो चाहें दोनों जहान की बहतरी भलाई और कामयाबी की दुआ मैँगें ।

शबे बरात की नमाज़ें

सलातुल ख़ैर

सौ रकात इस तरह पढ़ी जाए कि 1000 मरतबा सूरे इख़्लास पढ़ी जाए, यानी हर रकात में 10-10 मरतबा। इस नमाज़ से बरकत फैल जाती है। पहले के दौर में बुज़ुर्ग इस नमाज़ के लिए जमा होते और बाजमाअत अदा करते। इसकी फ़ज़ीलत ज़्यादा और सवाब बेशुमार है।

हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है, आपने फ़रमाया- मुझे 30 सहाबा ने बयान किया कि जो शख़्स इस शबे बरात में ये नमाज़ पढ़े, तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त 70 मरतबा नज़रे रह़मत फ़रमाता है और हर नज़र के बदले उसकी 70 हाजात पूरी करता है। सबसे कम दरजे की हाजत मग़फ़िरत है। 14वीं को ये नमाज़ पढ़ना भी मुस्तहब है। क्योंकि इस रात को (इ़बादत के साथ) ज़िंदा रखना भी मुस्तहसन है।

सलातुत तस्‍बीह

सलातुत तस्‍बीह पढें : दीनो दुनिया के बे शुमार फाएदे हासिल करने का बेहतरीन ज़रीआ सलातुल तस्बीह है, इसकी अदाएगी का मखसूस वक्त नहीं है । बल्कि हर मौसम और वक़्त में अदा की जा सकती है सिर्फ मकरुह औकात में न पढे, हुजूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने चचा कोतालीम फ़रमाई तो फ़रमाया इसे रोजाना या हफ्ते में या महीने में या साल में ! वरना उम्र भर में एक बार जरूर अदा करें  दीगर नवाफिल के अलावा फजीलत वाले दिन व रात में सलातुल तस्बीह अदा करना इकसीर है (बेहद बे इन्तिहा फायदे मन्द है

        सलातुल तस्बीह का आसान तरीका

निय्यत की मेंने चार रकअत नमाज़ नफ़्ल सलातुत तस्वीह की, वास्ते अल्लाह तआला के, मुंह मेरा काबे शरीफ़ की तरफ़, अल्लाहु अकबर और सना पढने के बाद यह तस्बीह

सुब्हानल्लाहि वलहम्दु लिल्लाहि 

व लाइलाहा इल्ललाहु वल्लाहु अकबर

15 बार तस्वीह पढ़ें,

फिर किरत के बाद रुकूअ से पहले 10  बार,

फिर रुकूअ में सुब्हाना रब्बियल अजीम के बाद 10  बार,

फिर रुकूअ से खड़े होकर समिअल्लाहुलिमनहमिदह के बाद 10  बार,

फिर सजदे में सुब्हाना रब्बियल अअला के बाद 10 बार,

फिर दोनों सजदों के दरमियान जल्से में 10  बार,

फिर दूसरे सजदे  में 10 बार, इस तरह हर रकअत में 75 बार तस्बीह पढ़ें।

नोट- रुकूअ व सजदे में हमेशा पढी जाने वाली तस्बीह भी पढ़ें।

हिदायत:-  दूसरी और चौथी रकअत तस्बीह से शुरू करे ! क़अदा ऊला में अत्तहिय्यात के बाद दुरूद शरीफ़ व दुआ पढ कर खड़े होतीसरी रकअत मे पहले सना पढ़ें फिर तस्बीह पढ़ें। किसी रुक्न की तस्बीह रह जाए तो अगले रुक्न में पूरी कर लें, तस्बीह का शुमार उंगली दबाकर करें, जो सूरह चाहे पढ़ सकते हैं, हॉ सूरए तकासुर, सूरए अस्र, सूरए काफिरून और  सूरए इख़्लास पढ़ना बेहतर है।

 दीगर इबादतें:

4 रकात नमाज़ 1 सलाम से इस तरह पढ़ें कि सूरे फ़ातेहा के बाद सूरे इख़्लास (कुलहो वल्लाहो अहद) 50 मरतबा पढ़ें। फ़ायदा- गुनाहों से मग़फ़िरत।

2 रकात नमाज़ में सूरे फा़तेहा के बाद 1 मरतबा आयतल कुर्सी (अल्लाहो लाइलाहा इल्ला) और 15 बार सूरे इख़्लास पढ़ें और सलाम फरने के बाद 100 मरतबा दरूद शरीफ़ पढ़ें। फ़ायदा- रिज़्क में कुशादगी, मुसीबत से निजात और गनाहों से मग़फ़िरत।

2-2 करके 14 रकात नमाज़ पढें। उसके बाद 100 बार दरूद पढ़ें। फ़ायदा- दुआ की मकबुलियत।

2-2 करके 8 रकात नमाज़ नफ़िल पढ़ें, हर रकात में सूरे फ़ातेहा के बाद सूरे क़दर (इन्ना अन्ज़लना) 1 बार और सूरे इख़्लास 25 बार पढ़ें। फ़ायदा- गुनाह से मग़फ़िरत व बख़्शिश।

ग़ौस-उल-आलम महबूब यज़्दानी सैयद सुल्तान मखदूम अशरफ़ जहाँगीर समानानी फरमाते हैं कि शबे बारात में सो रकत नमाज़ अदा करें पचास सलाम के साथ इस की हर रकत में सूरह फातिहा के बाद दस बार सूरह इखलास पढ़ें जब नमाज़ से फारिग हो जाएँ तो सजदा में सर रख कर यह दुआ पढ़ें

بسم اللّٰہ الرحمن الرحیم اعوذ بنور وجھک الذی بصارت بہ السموات والارض السبع وکشف بہ الظلمات وصلح علیہ امر من الاولین و الآخرین من فجاء نعمتک ومن تحویل عاقبتک ومن شر کتاب سبق۔ اعوذ بعفوک من عقابک واعوذ برضاک من سخطک اعوذبک منک جل ثناء ک وما ابلغ ولا احصی ثناء علیک انت کما اثنیت علی نفسک۔

इसके बाद बैठ जाएँ और दुरूद शरीफ पढ़ कर यह दुआ मांगे 

اللھم ھب لی قلبا نقیا من الشرک بریاو لا شقیا

इसके बाद अल्लाह से मुरादें मांगे इन शा अल्लाह क़ुबूल होगी (लताइफ अशरफी हिस्सा २ सफ़्हा ३४६)

शबे बरात की दुआ

हज़रत उमर रज़िअल्लाह अन्हो से मरवी है कि हज़रत आईशा रज़िअल्लाह अन्हा फ़रमाती हैं, 15 शाबान की रात हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सजदे में ये दुआ मांगी-

سَجَدَ لَکَ سَواَدِیْ وَجَنَانِیْ وَاٰمَنَ بِکَ فُوَادِیْ اَبُوْئُ لَکَ بِالنِّعَمِ وَاَعْتَرِفُ لَکَ بِالذُّنُوْبِ ظَلَمْتُ نَفْسِیْ فَاغْفِرْلِیْ اِنَّہٗ لَایَغْفِرُ الذُّنُوْبَ اِلَّا اَنْتَ اَعُوْذُ بِعَفُوِکَ مِنْ عَقُرْ بَتِکَ وَاَعُوْذُ بِرَحْمَتِکَ مِنْ نِّعْمَتِکَ وَاَعُوْذُ بِرِضَاکَ مَنْ سَخَطِکَ وَاَعُوْذُ بِکَ مِنْکَ لَا اُحْصِیْ ثَنَائً عَلَیْکَ اَنْتَ کَمَا اَثْنَیْتَ عَلٰی نَفْسِکَ

(या अल्लाह) मेरे जा़हिर व बातिन ने तेरे लिए सजदा किया और मेरा दिल तुझ पर ईमान लाया, मैं तेरे इनाम का मोअतरिफ़ हूं और गुनाहों का भी इक़रार करता हूं, पस मुझे बख़्श दे, क्योंकि तेरे सिवा कोई बख़्शने वाला नहीं। मैं तेरे अफ़ू के साथ तेरे अज़ाब से पनाह चाहता हूं। तेरी रह़मत के साथ तेरे अज़ाब से पनाह का तालिब हूं। तेरी रज़ा के साथ तेरे ग़ज़ब से पनाह चाहता हूं। मैं कमा हक्कहू तेरी तारीफ़ नहीं कर सकता। तू ऐसा है जैसे तूने खुद अपनी तारीफ़ बयान फ़रमाई है। इस रात को गुनाह में गुज़ारना बड़ी ना महरूमी की बात है। आतिशबाजी के बारे में प्रसिद्ध बात यह है कि इसका आविष्कार नमरूद बादशाह ने किया था, जब उन्होंने हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को आग में फेंका और आग गुलज़ार हो गयी, तो उसके आदमीयों ने बारूद के आनर (पटाखे) में आग लगाकर कर हज़रत इबराहीम खलीलुल्लाह अलैहिस्सलाम की ओर फेंके, हिंद-पाक में मुसलमानों ने यह रस्म हिंदुओं से सीखी, लेकिन दुर्भाग्य से हिंदुओं ने इसे छोड़ दिया है लेकिन हर साल इस रस्म में मुसलमानों के लाखों रुपये बर्बाद हो जाते हैं। मालूम हो कि इसका खरीदना, खरीदवाना, बेचना, बेचवाना सब हराम है


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