कोडिक्कल चेलप्पा (बैरिस्टर, अध्यक्ष-संविधान सभा)
के नज़र में इस्लाम
के नज़र में इस्लाम
‘‘…मानवजाति
के लिए अर्पित, इस्लाम
की सेवाएं महान हैं। इसे ठीक से जानने के लिए वर्तमान के बजाय 1400 वर्ष पहले की परिस्थितियों पर
दृष्टि डालनी चाहिए, तभी
इस्लाम और उसकी महान सेवाओं का एहसास किया जा सकता है। लोग शिक्षा, ज्ञान और संस्कृति में उन्नत
नहीं थे। साइंस और खगोल विज्ञान का नाम भी नहीं जानते थे। संसार के एक हिस्से के
लोग, दूसरे
हिस्से के लोगों के बारे में जानते न थे। वह युग ‘अंधकार युग’
(Dark-Age) कहलाता
है, जो
सभ्यता की कमी, बर्बरता
और अन्याय का दौर था, उस समय
के अरबवासी घोर अंधविश्वास में डूबे हुए थे। ऐसे ज़माने में, अरब मरुस्थलदृजो विश्व के
मध्य में है जहा (पैग़म्बर) मुहम्मद (सल्ल॰) पैदा हुए।’’
पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) ने
पूरे विश्व को आह्वान दिया कि ‘‘ईश्वर ‘एक’ है और सारे इन्सान बराबर हैं।’’ (इस एलान पर) स्वयं उनके अपने
रिश्तेदारों, दोस्तों
और नगरवासियों ने उनका विरोध किया और उन्हें सताया।’’
‘‘पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) हर
सतह पर और राजनीति, अर्थ, प्रशासन, न्याय, वाणिज्य, विज्ञान, कला, संस्कृति और समाजोद्धार में
सफल हुए और एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक, स्पेन से चीन तक एक महान, अद्वितीय संसार की संरचना
करने में सफलता प्राप्त कर ली।
इस्लाम का अर्थ है ‘शान्ति का धर्म’। इस्लाम का अर्थ ‘ईश्वर के विधान का आज्ञापालन’ भी है। जो व्यक्ति शान्ति-प्रेमी हो और क़ुरआन में अवतरित ‘ईश्वरीय विधान’ का अनुगामी हो, ‘मुस्लिम’ कहलाता है। क़ुरआन सिर्फ ‘एकेश्वरत्व’ और ‘मानव-समानता’ की ही शिक्षा नहीं देता बल्कि आपसी भाईचारा, प्रेम, धैर्य और आत्म-विश्वास का भी आह्नान करता है।
इस्लाम का अर्थ है ‘शान्ति का धर्म’। इस्लाम का अर्थ ‘ईश्वर के विधान का आज्ञापालन’ भी है। जो व्यक्ति शान्ति-प्रेमी हो और क़ुरआन में अवतरित ‘ईश्वरीय विधान’ का अनुगामी हो, ‘मुस्लिम’ कहलाता है। क़ुरआन सिर्फ ‘एकेश्वरत्व’ और ‘मानव-समानता’ की ही शिक्षा नहीं देता बल्कि आपसी भाईचारा, प्रेम, धैर्य और आत्म-विश्वास का भी आह्नान करता है।
इस्लाम के सिद्धांत और
व्यावहारिक कर्म वैश्वीय शान्ति व बंधुत्व को समाहित करते हैं और अपने अनुयायियों
में एक गहरे रिश्ते की भावना को क्रियान्वित करते हैं। यद्यपि कुछ अन्य धर्म भी
मानव-अधिकार व सम्मान की बात करते हैं, पर वे आदमी को, आदमी को गु़लाम बनाने से या
वर्ण व वंश के आधार पर, दूसरों
पर अपनी महानता व वर्चस्व का दावा करने से रोक न सके। लेकिन इस्लाम का पवित्र
ग्रंथ स्पष्ट रूप से कहता है कि किसी इन्सान को दूसरे इन्सान की पूजा करनी, दूसरे के सामने झुकना, माथा टेकना नहीं चाहिए।
हर व्यक्ति के अन्दर क़ुरआन द्वारा दी गई यह भावना बहुत गहराई तक जम जाती है। किसी के भी, ईश्वर के अलावा किसी और के सामने माथा न टेकने की भावना व विचारधारा, ऐसे बंधनों को चकना चूर कर देती है जो इन्सानों को ऊँच-नीच और उच्च-तुच्छ के वर्गों में बाँटते हैं और इन्सानों की बुद्धि-विवेक को गु़लाम बनाकर सोचने-समझने की स्वतंत्रता का हनन करते हैं। बराबरी और आज़ादी पाने के बाद एक व्यक्ति एक परिपूर्ण, सम्मानित मानव बनकर, बस इतनी-सी बात पर समाज में सिर उठाकर चलने लगता है कि उसका ‘झुकना’ सिर्फ अल्लाह के सामने होता है।
हर व्यक्ति के अन्दर क़ुरआन द्वारा दी गई यह भावना बहुत गहराई तक जम जाती है। किसी के भी, ईश्वर के अलावा किसी और के सामने माथा न टेकने की भावना व विचारधारा, ऐसे बंधनों को चकना चूर कर देती है जो इन्सानों को ऊँच-नीच और उच्च-तुच्छ के वर्गों में बाँटते हैं और इन्सानों की बुद्धि-विवेक को गु़लाम बनाकर सोचने-समझने की स्वतंत्रता का हनन करते हैं। बराबरी और आज़ादी पाने के बाद एक व्यक्ति एक परिपूर्ण, सम्मानित मानव बनकर, बस इतनी-सी बात पर समाज में सिर उठाकर चलने लगता है कि उसका ‘झुकना’ सिर्फ अल्लाह के सामने होता है।
बेहतरीन मौगनाकार्टा (Magna
Carta) जिसे
मानवजाति ने पहले कभी नहीं देखा था, ‘पवित्र क़ुरआन’ है। मानवजाति के उद्धार के
लिए पैग़म्बर मुहम्मद द्वारा लाया गया धर्म एक महासागर की तरह है। जिस तरह नदियाँ
और नहरें सागर-जल में मिलकर एक समान, अर्थात सागर-जल बन जाती हैं
उसी तरह हर जाति और वंश में पैदा होने वाले इन्सान—वे जो भी भाषा बोलते हों, उनकी चमड़ी का जो भी रंग हो—इस्लाम ग्रहण करके, सारे भेदभाव मिटाकर और
मुस्लिम बनकर ‘एक’ समुदाय (उम्मत), एक अजेय शक्ति बन जाते हैं।’’
‘‘ईश्वर की सृष्टि में सारे
मानव एक समान हैं। सब एक ख़ुदा के दास और अन्य किसी के दास नहीं होते चाहे उनकी
राष्ट्रीयता और वंश कुछ भी हो, वह ग़रीब हों या धनवान।
‘‘वह सिर्फ़ ख़ुदा है जिसने सब को बनाया है।’’
ईश्वर की नेमतें तमाम इन्सानों के हित के लिए हैं। उसने अपनी असीम, अपार कृपा से हवा, पानी, आग, और चाँद व सूरज (की रोशनी तथा ऊर्जा) सारे इन्सानों को दिया है। खाने, सोने, बोलने, सुनने, जीने और मरने के मामले में उसने सारे इन्सानों को एक जैसा बनाया है। हर एक की रगों में एक (जैसा) ही ख़ून प्रवाहित रहता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी इन्सान एक ही माता-पिता आदम और हव्वा की संतान हैं अतः उनकी नस्ल एक ही है, वे सब एक ही समुदाय हैं। यह है इस्लाम की स्पष्ट नीति। फिर एक के दूसरे पर वर्चस्व व बड़प्पन के दावे का प्रश्न कहाँ उठता है?
इस्लाम ऐसे दावों का स्पष्ट रूप में खंडन करता है। अलबत्ता, इस्लाम इन्सानों में एक अन्तर अवश्य करता है,
‘अच्छे’ इन्सान और ‘बुरे’ इन्सान का अन्तर; अर्थात्, जो लोग ख़ुदा से डरते हैं, और जो नहीं डरते, उनमें अन्तर। इस्लाम एलान करता है कि ईशपरायण व्यक्ति वस्तुतः महान, सज्जन और आदरणीय है। दरअस्ल इसी अन्तर को बुद्धि-विवेक की स्वीकृति भी प्राप्त है। और सभी बुद्धिमान, विवेकशील मनुष्य इस अन्तर को स्वीकार करते हैं।
इस्लाम किसी भी जाति, वंश पर आधारित भेदभाव को बुद्धि के विपरीत और अनुचित क़रार देकर रद्द कर देता है। इस्लाम ऐसे भेदभाव के उन्मूलन का आह्वान करता है।’’
‘‘वर्ण, भाषा, राष्ट्र, रंग और राष्ट्रवाद की अवधारणाएँ बहुत सारे तनाव, झगड़ों और आक्रमणों का स्रोत बनती हैं। इस्लाम ऐसी तुच्छ, तंग और पथभ्रष्ट अवधारणाओं को ध्वस्त कर देता है।’’
— ‘लेट् अस मार्च टुवर्ड्स इस्लाम’ पृष्ठ 26-29, 34-35 से उद्धृत‘‘वह सिर्फ़ ख़ुदा है जिसने सब को बनाया है।’’
ईश्वर की नेमतें तमाम इन्सानों के हित के लिए हैं। उसने अपनी असीम, अपार कृपा से हवा, पानी, आग, और चाँद व सूरज (की रोशनी तथा ऊर्जा) सारे इन्सानों को दिया है। खाने, सोने, बोलने, सुनने, जीने और मरने के मामले में उसने सारे इन्सानों को एक जैसा बनाया है। हर एक की रगों में एक (जैसा) ही ख़ून प्रवाहित रहता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी इन्सान एक ही माता-पिता आदम और हव्वा की संतान हैं अतः उनकी नस्ल एक ही है, वे सब एक ही समुदाय हैं। यह है इस्लाम की स्पष्ट नीति। फिर एक के दूसरे पर वर्चस्व व बड़प्पन के दावे का प्रश्न कहाँ उठता है?
इस्लाम ऐसे दावों का स्पष्ट रूप में खंडन करता है। अलबत्ता, इस्लाम इन्सानों में एक अन्तर अवश्य करता है,
‘अच्छे’ इन्सान और ‘बुरे’ इन्सान का अन्तर; अर्थात्, जो लोग ख़ुदा से डरते हैं, और जो नहीं डरते, उनमें अन्तर। इस्लाम एलान करता है कि ईशपरायण व्यक्ति वस्तुतः महान, सज्जन और आदरणीय है। दरअस्ल इसी अन्तर को बुद्धि-विवेक की स्वीकृति भी प्राप्त है। और सभी बुद्धिमान, विवेकशील मनुष्य इस अन्तर को स्वीकार करते हैं।
इस्लाम किसी भी जाति, वंश पर आधारित भेदभाव को बुद्धि के विपरीत और अनुचित क़रार देकर रद्द कर देता है। इस्लाम ऐसे भेदभाव के उन्मूलन का आह्वान करता है।’’
‘‘वर्ण, भाषा, राष्ट्र, रंग और राष्ट्रवाद की अवधारणाएँ बहुत सारे तनाव, झगड़ों और आक्रमणों का स्रोत बनती हैं। इस्लाम ऐसी तुच्छ, तंग और पथभ्रष्ट अवधारणाओं को ध्वस्त कर देता है।’’
इस्लामिया एलाकिया पानमनानी, मैलदुतुराइ, तमिलनाडु, 1990 ई॰
(श्री कोडिक्कल चेलप्पा ने बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था)
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